बारामती में पवार Vs पवार! ननद-भौजाई के बीच लड़ाई में चाचा शरद या भतीजे अजित, किसका गुट भारी?

फिर असली खेल हुआ 2023 में जब शरद पवार और अजीत पवार के बीच मतभेद हुआ और जुलाई 2023 में अजीत पवार ने बीजेपी के गठबंधन NDA का रुख किया. फिर चाचा शरद पवार की बनाई हुई पार्टी NCP पर भी कब्जा जमा लिया.

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अभिषेक

23 Apr 2024 (अपडेटेड: 23 Apr 2024, 11:30 AM)

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Pawar Vs Pawar in Baramati: शरद पवार या अजित पवार? जब आप ये सवाल बारामती में पूछते हैं, तो बहुत कम लोगों के पास सीधा जवाब होता है लेकिन ज्यादातर लोग एक-दूसरे को देखते हैं और फिर बस मुस्कुरा देते हैं. आपको उनके झुकाव का स्पष्ट अंदाजा कभी नहीं मिल पाता. 1985 के बाद से कुछ मौकों को छोड़कर इस लोकसभा सीट ने पवार के अलावा किसी और को नहीं देखा है. गांधी परिवार के लिए जो अमेठी या रायबरेली थी वही पवारों के लिए बारामती. इस चुनाव से पहले बारामती के मतदाताओं के लिए चुनाव आसान था क्योंकि यह से उम्मीदवार या तो पवार परिवार से कोई होता था या फिर पवार परिवार का समर्थित कोई व्यक्ति. लेकिन इस बार उन्हें पवार परिवार के सबसे बड़े सदस्य शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार के बीच किसी एक का चुनाव करना होगा. इसकी वजह ये है कि, इस चुनाव में जहां शरद परिवार की ओर से सुप्रिया सुले मैदान में हैं वहीं अजीत पवार की ओर से उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार मैदान में हैं. यानी फाईट ननद-भौजाई के बीच होनी है और चाचा-भतीजे का रसूख दाव पर लगा है. 

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क्या बारामती में बीजेपी के मास्टरप्लान के तहत हो रहा मुकाबला?

बारामती के 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के समर्थन से समर्थित राष्ट्रीय समाज पार्टी (RSP) के महदेव जानकर मैदान में थे. उस चुनाव में महदेव ने मोदी लहर और जातिगत समीकरण के आधार पर सुप्रिया सुले को कड़ी चुनौती दी लेकिन फिर भी वो 67000 वोटों से हार गए. वैसे इस चुनाव में पवार परिवार के किसी सदस्य के जीत के मार्जिन में सबसे कम मार्जिन बारामती में ही मिला था. 2019 लोकसभा चुनाव में सुप्रिया सुले को डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों से आसान जीत मिली. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने दम पर प्रयास किया लेकिन दोनों बार पार्टी को हार ही मिली. यही वजह है कि बीजेपी बारामती में शरद पवार और उनकी विरासत को चुनौती देने के लिए पवार परिवार से ही किसी को लाने के लिए प्रयासरत थी जो अब देखने को मिल रहा है. 

फिर असली खेल हुआ 2023 में जब शरद पवार और अजीत पवार के बीच मतभेद हुआ और जुलाई 2023 में अजीत पवार ने बीजेपी के गठबंधन NDA का रुख किया. फिर चाचा शरद पवार की बनाई हुई पार्टी NCP पर भी कब्जा जमा लिया.

 मुकाबला 'पवार बनाम पवार' नहीं, 'राहुल बनाम मोदी'

बारामती में दोनों पवारों के बीच लड़ाई को मीडिया 'पवार बनाम पवार' बता रहा है जबकि अजित पवार और बीजेपी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि, यह मामला पवार बनाम पवार नहीं है. वे चाहते हैं कि इस मुकाबले को मोदी बनाम राहुल गांधी के रूप में देखा जाए. ऐसा करने के पीछे की वजह ये बताई जा रही है कि, इससे शरद पवार की भावनात्मक अपील कमजोर हो जाएगी. हालांकि दूसरी तरफ अपनी पत्नी को उम्मीदवार बनाने के बावजूद अजित पवार मतदाताओं से अपील कर रहे हैं कि, वे यह समझें कि वही चुनाव लड़ रहे हैं.

बारामती में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में चला आ रहा है ये पैटर्न 

NCP अजित पवार गुट के नेता ने बताया कि, बारामती में एक पेच यह है कि जब लोकसभा और विधानसभा के चुनाव की बात आती है तो मतदाता वर्षों से विभाजन करते हैं. विभाजन यह है कि, शरद पवार के लिए लोकसभा और अजित पवार के लिए विधानसभा के चुनाव में वोट देना है. 1991 में जब शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने अजीत पवार को बारामती से लोकसभा उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा था जब शरद पवार को नरसिंहराव सरकार में रक्षा मंत्री बनाया गया तो अजित पवार ने यह सीट शरद पवार के लिए खाली कर दी. इसके बाद अजित पवार ने बारामती विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, जहां से पवार 1967 से चुनाव लड़ते आ रहे थे. यही से साल 1991 के बाद बारामती के मतदाताओं के लिए विभाजन स्पष्ट हो गया. 2009 में शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले के लिए बारामती सीट खाली कर दी, तब से सुप्रिया सुले ही बारामती से लोकसभा में पवार परिवार का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.

अब बारामती का चुनावी गणित भी जान लीजिए 

बारामती लोकसभा सीट पर लड़ाई 'पवार बनाम पवार' से भी परे है. 22 लाख मतदाताओं वाले इस निर्वाचन क्षेत्र में 80 और 90 के दशक की स्थिति और अब की स्थिति में बहुत बदलाव हो गया है. 2000 की शुरुआत से बारामती लोकसभा की जनसांख्यिकी भी तेजी से बदली है. ग्रामीण प्रकृति वाली बारामती लोकसभा सीट ने पुणे शहर का विस्तार शुरू होने के बाद अपना स्वरूप बदल लिया. 2009 के परिसीमन के बाद बारामती में शहरी क्षेत्र भी आ गए है. जैसे बारामती लोकसभा में हडपासर विधानसभा क्षेत्र है जिसमें 5 लाख से अधिक मतदाता हैं और 2014 से यहां बीजेपी की मजबूत पकड़ मानी जाता है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में हडपसार ने NDA उम्मीदवार को सबसे अधिक बढ़त दी थी.

बारामती में हडपसर सहित 6 विधानसभा क्षेत्र है जिनमें से भोर और पुरंदर में 2019 में कांग्रेस ने जीत हासिल की, लेकिन यहां शिवसेना की भी ठीक-थक स्थिति है. 2019 में इंदापुर और बारामती विधानसभा राकांपा ने जीती और दोनों निर्वाचन क्षेत्र अब NCP-अजित पवार के पास हैं और हड़पसर और दौंड बीजेपी के पास है. दौंड सीट पर कुछ सौ वोटों के साथ NCP उम्मीदवार के खिलाफ बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. इन आंकड़ों को देखें तो अजित पवार ने सुप्रिया सुले पर बढ़त बना ली है लेकिन शरद पवार का भावनात्मक कनेक्ट होने से उन्हें बारामती विधानसभा क्षेत्र में अपनी पकड़ खोनी पड़ सकती है, इसी क्षेत्र की बदौलत 2014 और 2019 में सुप्रिया सुले को भारी बढ़त मिली थी, जिससे वह विरोधियों को पीछे छोड़ने में कामयाब हो सकीं थीं. 

वैसे कुल मिलाकर देखें तो बारामती में पवारों की लड़ाई बहुत दिलचस्प होने वाली है. यह लड़ाई न केवल यह तय करेगी कि, वर्तमान में बारामती का बॉस कौन है? बल्कि इस लड़ाई से महाराष्ट्र की सियासत किस ओर रुख करेगी इसकी दिशा भी तय होगी. 
 

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