MP की इस मस्जिद में है उंगली से भी छोटी कुरान, आंखों से पढ़ पाना भी है मुश्किल
Eid 2023: आज देशभर में ईद का त्यौहार मनाया जा रहा है. ये महीना इस्लाम धर्म में पवित्र माना गया है. इस मौके पर आज हम आपको मध्यप्रदेश के रीवा में मौजूद एक खास कुरान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे सिर्फ रमजान के महीने में बाहर निकाला जाता है. ये कुरान शरीफ […]
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Eid 2023: आज देशभर में ईद का त्यौहार मनाया जा रहा है. ये महीना इस्लाम धर्म में पवित्र माना गया है. इस मौके पर आज हम आपको मध्यप्रदेश के रीवा में मौजूद एक खास कुरान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे सिर्फ रमजान के महीने में बाहर निकाला जाता है. ये कुरान शरीफ दुनिया की सबसे छोटी कुरानों में शामिल है. ये इतनी छोटी है कि इसे पढ़ने के लिए मैग्नीफाइंग लैंस का सहारा लेना पड़ता है.
रीवा की मस्जिद में मौजूद दुनिया की सबसे छोटी कुरानों में से एक इस खास कुरान शरीफ को बाबा मन्नान ने 1994 में मस्जिद में रखा था. बघेल रियासत के करीबी माने जाने वाले मन्नान बाबा के पास एक नहीं, बल्कि एक जैसी 2 दुर्लभ कुरान शरीफ थी. ये दोनों कुराने अनवारुल हक़ के परिवार में आज भी मौजूद है.
मैंग्नीफाइंग लैंस से पढ़ते हैं
रीवा शहर के मन्नान मस्जिद में दुनिया की सबसे छोटी कुरानों में से एक कुरान मौजूद है. इस कुरान को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते है. इसकी लंबाई 2.5 सेंटीमीटर, चौड़ाई 1.5 सेंटीमीटर और मोटाई मात्र 1 सेंटीमीटर है. 30 पारे की इस कुरान में सभी आयतें सोने के पारे से हस्तलिखित हैं. इस कुरान को केवल मैग्नीफाई लैंस से पढ़ा जा सकता है, क्योंकि इसमें लिखे गए अक्षर काफी बारीक हैं.
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रमजान के महीने में निकाली जाती है
मन्नान मस्जिद में मौजूद ये खास कुरान अरबी भाषा में लिखी गई है. इसमें कुल 258 पेज हैं. जबकि इसमें सभी सूरह, रुकू, सज्दा और आयतें हैं, जो एक बड़ी कुरान मे मौजूद होती हैं. दावा किया जाता है की यह दुनिया की सबसे छोटी कुरान शरीफ में से एक है. कुरान के मालिक अनवारुल हक़ के परिवार में यह 7 पीढ़ियों से मौजूद है. मन्नान मस्जिद में रमजान के पवित्र मौके पर कुरान को निकाला जाता है
कहां से आई इतनी छोटी कुरान
कहा जाता है कि वर्ष 1904 में बनी मन्नान मस्जिद में मन्नान बाबा ने कुरान शरीफ को रखा था. मन्नान के बाद अनवारुल हक़ को यह कुरान शरीफ विरासत में मिली. अनवारुल के बाद इसका परिवार पीढ़ी-पीढ़ी कुरान शरीफ को संभाल कर रखे हुए हैं. यह कब और कैसे कहां से आई इसकी जानकारी किसी को नहीं है. अपने पुरखों की इस धरोहर को वह सहेजते आ रहे है.
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