बीजेपी के मिशन 2024 को ओडिशा से लगा बड़ा झटका, नवीन पटनायक का साथ नहीं मिलेगा
कई दिनों के सस्पेंस के बाद बीजेपी की ओर से एलान हो गया कि बीजेपी-बीजेडी एक साथ नहीं आएंगे. 2024 में मित्र दलों में बीजेडी पहली पार्टी है जिसने बीजेपी की शर्तों पर ना कहने की हिम्मत जुटाई है. खबर में आगे जानिए इसके सियासी मायने...
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Naveen Patnaik News: लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक और पीएम मोदी ने एक-दूसरे के लिए जमकर सम्मान दिखाया. एक-दूसरे की तारीफ की. चांस बनने लगे कि चुनावों में बीजेपी-बीजेडी का अलायंस हो जाएगा. बातचीत शुरू भी हुई लेकिन कई दिनों के सस्पेंस के बाद बीजेपी की ओर से एलान हो गया कि बीजेपी-बीजेडी एक साथ नहीं आएंगे. 2024 में मित्र दलों में बीजेडी पहली पार्टी है जिसने बीजेपी की शर्तों पर ना कहने की हिम्मत जुटाई है. ऐसा कुछ होगा, इसके चांस बन रहे थे क्योंकि नवीन पटनायक के सबसे करीबी वीके पांडियन ने बयान दिया था कि नवीन पटनायक को चुनाव जीतने के लिए बीजेपी की जरूरत नहीं है. मोदी-नवीन पटनायक की दोस्ती है लेकिन किसी और मकसद के लिए.
अलायंस क्यों रहा था, किन शर्तों पर हो रहा था, किन शर्तों के कारण अलायंस नहीं हो पाया, इसकी क्लियर पिक्चर किसी ने नहीं दिखाई. सुनने में आ रहा है कि सीट शेयरिंग के सवाल पर बातचीत टूट गई. बात हो रही थी कि लोकसभा में बीजेपी ज्यादा सीटों पर लड़ेगी और विधानसभा सीटों पर बीजेडी सबसे ज्यादा सीटों पर लड़ेगी लेकिन दोनों चुनावों के लिए दोनों पार्टियों के बीच कोई सहमति नहीं बनी.
ओडिशा बीजेपी अध्यक्ष मनमोहन सामल शुरू से अलायंस के पक्ष में नहीं थे. हाईकमान को समझाने में लगे थे कि बीजेपी को अकेले लड़ना चाहिए लेकिन हाईकमान को 400 से ज्यादा सीटों की गरज थी. बीजेडी के साथ अलायंस से 21 सीटों का इंतजाम एक झटके में हो जाता.
मनमोहन सामल ने कई मुद्दों पर मोदी सरकार का समर्थन देने के लिए नवीन पटनायक का आभार जताया. डबल इंजन की सरकार का फायदा भी समझाया. ये सब लिखते हुए उन्होंने नवीन पटनायक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. अलायंस तोड़ने का एलान करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट में मनमोहन सामल ने बेधड़क लिखा दिया कि ओडिशा में मोदी सरकार की अनेक कल्याणकारी योजनाएं जमीन पर नहीं पहुंच पा रही हैं, जिससे ओडिशा के गरीब बहनों-भाइयों को उनका लाभ नहीं मिल पा रहा है. ओडिशा-अस्मिता, ओड़िसा-गौरव और ओडिशा के लोगों के हित से जुड़े अनेकों विषयों पर हमारी चिंताएं हैं.
मोदी ने पिछले दिनों दो बड़े दौरे किए ओडिशा के. 25 साल से बीजेडी, नवीन पटनायक की सरकार होने के बाद भी एक शब्द खिलाफ में नहीं बोले. उन्होंने ओडिशा की जनता को ये याद दिलाते रहे कि 25 साल पहले जब कांग्रेस की सरकार थी तो कितना बर्बादी हुई ओडिशा में. ऐसी ही रैलियों में मोदी ने नवीन पटनायक को कभी मित्र तो कभी लोकप्रिय मुख्यमंत्री कह सम्मानित किया.
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बीजेपी बीसियों साल से ओडिशा जीतने में लगी है. कांग्रेस की जगह लेकर नंबर 2 पर तो आ गई लेकिन नंबर 1 की हसरत दूर दिख रही है. ओडिशा के पिछले 10 साल के चुनाव के ट्रेंड ये हैं कि कांग्रेस का कुछ बचा नहीं तो ओडिशा में बीजेपी धीरे-धीरे बीजेडी के वोट खा रही थी. तरक्की बीजेपी की हुई. नुकसान बीजेडी का हुआ लेकिन इतना नहीं कि लोकसभा या विधानसभा जीतने के लाले पड़े हो.
2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए भी अनुमान है कि बीजेडी नंबर 1 पर रहेगी. बीजेपी को नंबर 2 से संतोष करना पड़ेगा. अगर सचमुच ऐसा ही हुआ तो मिशन 400 में ओडिशा का कन्ट्रीब्यूशन कम रहेगा और ये बीजेपी के लिए कोई अच्छे संकेत नहीं हैं.
2009 तक नवीन पटनायक और बीजेपी का अलायंस हुआ करता था. फिर नवीन पटनायक एनडीए से निकल आए. अकेले ही चुनाव लड़ते और जीतते रहे. इतना जरूर किया कि अपने मित्र मोदी की सरकार को जब भी समर्थन की जरूर पड़ी, साथ खड़े रहे. मोदी के थर्ड टर्म की सबसे पहली भविष्यवाणी करने वाले नवीन पटनायक ही थे. यहां तक कि जीतने लायक नंबर नहीं होने के बाद भी समर्थन देकर अश्वनी वैष्णव को ओडिशा से राज्यसभा चुनाव जीता दिया. नवीन पटनायक ने राजनीतिक शिष्टाचार के लिए सब कुछ किया लेकिन चुनाव जीतने की बात आई तो कन्नी काट लिए.
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