2024 के चुनाव के लिए चिदंबरम का अपना आकलन आया सामने, कांग्रेस के लिए इस चीज को बताया जरूरी

रूपक प्रियदर्शी

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P Chidambram
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NewsTak: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम बीजेपी की तारीफ नहीं करते. अपनी पार्टी कांग्रेस के खिलाफ भी नहीं बोलते. वो ये भी नहीं कह रहे कि विपक्ष का कोई भविष्य नहीं है लेकिन अब उन्होंने जो कहा है कि उससे बीजेपी की तारीफ भी हुई. कांग्रेस की आलोचना भी हुई और विपक्ष पर सवाल भी उठे.

कांग्रेस को हाइपर नेशनलिज्म का जवाब ढूंढ़ना होगा- पी. चिदंबरम

पांच राज्यों के चुनावों के बाद चिदंबरम ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को इंटरव्यू दिया है. इंटरव्यू में चिदंबरम ने तीन बड़ी बातें कही. पहली बात- छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में जीत 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी का मनोबल बढ़ाने वाली है. दूसरी बात कि हवा बीजेपी के पाले में है, लेकिन हवाएं दिशा बदल सकती हैं. बीजेपी कभी भी चुनाव को हल्के में नहीं लेती है. ऐसे लड़ती है जैसे ये आखिरी लड़ाई हो. विपक्ष को भी ऐसा करना चाहिए. तीसरी बात छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की हार के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. कांग्रेस नेतृत्व को मंथन करना चाहिए. कांग्रेस को ध्रुवीकरण और बीजेपी के हाइपर नेशनलिज्म का जवाब खोजना होगा. कांग्रेस ऐसा कर पाई तो ये बीजेपी को करारा जवाब होगा.

जातीय जनगणना से चुनाव नहीं जीता जा सकता – चिदंबरम

पांच राज्यों में कांग्रेस की हार के बाद भी इस बात की बहुत चर्चा है कि कांग्रेस को बीजेपी से 10 लाख ज्यादा वोट मिले लेकिन तीन राज्यों का जीतता हुआ चुनाव कांग्रेस हार गई. चिदंबरम भी मान रहे हैं कि चार बड़े राज्यों में कांग्रेस का 40 परसेंट वोट शेयर बरकरार रहा लेकिन चिदंबरम संभावनाएं देख रहे हैं कि ये 45 परसेंट तक जा सकता है.

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पांच राज्यों के चुनावों में राहुल गांधी ने जातीय जनगणना का मुद्दा बहुत जोर-शोर से उठाया था. एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ की हार से साफ है कि कांग्रेस के लिए जातीय जनगणना जैसे मुद्दों ने काम नहीं किया. चिदंबरम की सोच है कि ये बड़ा मुद्दा है लेकिन इससे चुनाव नहीं जीता जा सकता. चिदंबरम के हिसाब से बेरोजगारी और महंगाई दो ऐसे मुद्दे हैं जिनसे लोग प्रभावित हैं और कांग्रेस को भी इन पर ध्यान देना चाहिए.

चुनावों में कांग्रेस तेलंगाना जीती लेकिन एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ की हार ने तेलंगाना की जीत को फीका कर दिया. चुनावों के बाद इंडिया गठबंधन में भी बिखराव दिखा है. हालांकि 19 दिसंबर को दिल्ली में एक बैठक होनी है जिससे तय होगा कि 2024 तक इंडिया की ताकत कितनी रहेगी. चिदंबरम इस बात पर सहमत हैं कि पीएम का चुनाव बाद में हो सकता है लेकिन इंडिया गठबंधन को ऐसे उम्मीदवार ढूंढने होंगे जो कम से कम 400 सीटों पर बीजेपी को टक्कर दे सकें.

चिदंबरम का इंटरव्यू कांग्रेस या विपक्ष का नहीं बल्कि बीजेपी का हौसला बढ़ाता है. हालांकि कांग्रेस के बेहद वरिष्ठ नेता होने के बाद भी चिदंबरम कांग्रेस के उन नेताओं में नहीं है जो पार्टी के लिए पॉलिसी बनाने या पॉलिसी डिसीजन लेते हैं. उनका कहा पार्टी की ऑफिशियल लाइन से अलग दिखता है लेकिन बीजेपी के लिए माहौल वाली बात बहुत सारे लोग कह रहे हैं. वही चिदंबरम भी कह रहे हैं.

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केंद्र की राजनीति करते रहे हैं चिदंबरम

चिदंबरम का होम स्टेट तमिलनाडु है लेकिन उनकी राजनीति केंद्र की राजनीति वाली रही है. वो कभी सीएम बनने के चक्कर में पड़े भी नहीं, मौका मिला भी नहीं. चार बार देश के वित्त मंत्री रहे. यूपीए सरकार में करीब 4 साल तक गृह मंत्री रहे. फिलहाल राज्यसभा के सांसद हैं. राजीव गांधी, नरसिम्हा राव, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह के बाद अब राहुल गांधी की टीम में हैं. शायद देश के बड़े वकील होने के कारण लॉजिकल पॉलिटिकल बातें कहते हैं. हमेशा वो बातें नहीं कहते जो कांग्रेस हाईकमान को सूट करें या गांधी परिवार को खुश करे. खुशामद की राजनीति नहीं करने के बाद भी हर दौर में कांग्रेस में प्रासंगिक बने रहते हैं.

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यूथ कांग्रेस से की अपनी राजनीति की शुरुआत

चिदंबरम कांग्रेस के उन नेताओं में हैं जो ग्रास रूट लेवल से शुरू करके टॉप तक पहुंचे. यूथ कांग्रेस से राजनीति शुरू करके चिदंबरम यहां तक पहुंचे. सत्ता की शुरूआत राजीव गांधी की सरकार से हुई जहां वो 1984 में डिप्टी कॉमर्स और पर्सनल मिनिस्टर बने. नरसिम्हा राव की सरकार में प्रमोशन पाकर कॉमर्स मिनिस्ट्री के MoS स्वतंत्र प्रभार बने.

नरसिम्हा राव के समय कांग्रेस में बहुत उथल-पुथल रही. कांग्रेस कई हिस्सों में टूटी थी. 1996 में तमिलनाडु के नेता जीके मूपनार ने कांग्रेस तोड़कर तमिल मनीला कांग्रेस (TMC) बनाई थी. तमिल मनीला कांग्रेस संयुक्त मोर्चा सरकार में शामिल हुई. वहीं चिदंबरम का सबसे बड़ा प्रमोशन हुआ. मोर्चा सरकार में पहली बार वित्त मंत्री बने लेकिन मोर्चा सरकार का प्रयोग असफल रहा. न मोर्चा टिक सका न तमिल मनीला कांग्रेस चल पाई.

गृहमंत्री रहते अमित शाह को भेजा जेल

2001 में चिदंबरम ने एक और प्रयोग किया. अपनी पार्टी कांग्रेस जननायक पेरावई बनाई. चिदंबरम की अपनी पार्टी भी 3-4 साल में फेल हो गई. उस दौर में बीजेपी बहुत मजबूत हो चुकी थी लेकिन चिदंबरम कांग्रेस का मोह छोड़ नहीं पाए. कांग्रेस में वापसी की टाइमिंग सही रही. मान इज्जत भी मिला और रुतबा भी बढ़ा. 1996 के शॉर्ट टर्म वित्त मंत्री चिदंबरम को मनमोहन सिंह जैसे इकोनॉमिस्ट ने 2004 में अपनी यूपीए सरकार में वित्त मंत्रालय सौंप दिया.

यूपीए सरकार के रहते 2008 में जब मुंबई में आतंकी हमला हुआ तो शिवराज पाटिल को गृह मंत्रालय से जाना पड़ा. पहली बार चिदंबरम को इंटनरल सिक्योरिटी के लिए आजमाया गया.

2008 से 2012 तक पी चिदंबरम देश के गृहमंत्री रहे. उसी दौरान 2010 में अमित शाह को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. शाह करीब तीन महीने तक जेल में और 2 साल तक गुजरात से बाहर भी रहे.

2014 में सत्ता और राजनीति पलट गई. मोदी सरकार आई तो अमित शाह गृह मंत्री बने तो वित्त मंत्री रहते हुए आईएनएक्स घोटाले में सीबीआई ने चिदंबरम को जेल भेज दिया. शाह और चिदंबरम-दोनों की गिरफ्तारियों को उनकी पार्टियों ने बदले की भावना करार दिया था. राजनीति आज भी पलटी है. कांग्रेस की राजनीति कर रहे चिदंबरम जैसे नेताओं को दिख रहा है कि हवा बीजेपी की है.

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