नेमप्लेट विवाद को राजदीप सरदेसाई ने कोविड काल से जोड़ा, बताया कैसे होता मुसलमानों को नुकसान
नेमप्लेट कॉन्ट्रोवर्सी पर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने दी अपनी प्रतिक्रया, कहा- 'कोर्ट ने सही समय पर लिया फैसला नहीं तो कोविड 19 में जिन हालातों का मुसलमानों ने किया सामना फिर कुछ वैसा देखने को मिलता.
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Kanway Yatra Name Plate Row: सु्प्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के उस आदेश पर अंतिरम रोक लगा दी है जिसमें यूपी में कांवड यात्रा के रास्ते आने वाली दुकान/ठेलों पर नेम प्लेट लगाना अनिवार्य बताया था. कोर्ट ने इस मामले में यूपी सरकार को नोटिस भेजकर जवाब भी मांगा था. योगी सरकार ने कोर्ट के नोटिस का जवाब देते हुए कहा कि प्रेस विज्ञप्ति पूरी तरह से कांवड यात्रा के शांतिपूर्ण समापन को सुनिश्चित करने के लिए जनहित में जारी की गई थी. सरकार के अनुसार, इसमें सालाना औसतन 4.07 करोड़ से अधिक कांवडिया भाग लेते हैं. उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि वह किसी भी धर्म के लोगों की धार्मिक भावनाओं की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है.
दरअसल, जब से योगी सरकार ने ये आदेश जारी किया था इसको लेकर लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रिया सामने आ रही हैं. ये मामला सोशल मीडिया से लेकर न्यूज की हेडलाइन में बना हुआ है. इस बीच वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने भी इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है. नेमप्लेट विवाद को लेकर उन्होंने कहा कि यह एक सामाजिक रंगभेद है, जो जमीन पर धार्मिक ध्रुवीकरण को तेज़ करने के लिए बनाया गया है. आइए जानते हैं उन्होंने इस मामले को लेकर और क्या प्रतिक्रिया जाहिर की है.
'रेस्तरां की क्वालिटी मालिक के नाम से नहीं भोजन से होनी चाहिए'
इंडिया टूडे के कंसलटिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई ने नेमप्लेद विवाद पर कहा कि मैं पिछली कई सालों से टीवी शो कर रहा हूं- 'इलेक्शन्स ऑन माई प्लेट', जो दर्शकों को एक अलग रूप में भोजन के साथ चुनाव अभियान पर ले जाता है. दरअसल, भोजन शो का 'स्टार' है. दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जो भारत की उल्लेखनीय भोजन विविधता से मेल खा सके. रेस्तरां का मूल्यांकन उनके मालिकों के नाम से नहीं बल्कि भोजन की क्वालिटी से किया जाता है.
इसके आगे उन्होंने कहा कि भारत के अलावा आपको मदुरै के प्रतिष्ठित मीनाक्षीपुरम मंदिर के पास अम्मा किचन नामक एक बेहतरीन रेस्तरां कहां मिलेगा जो अद्भुत चेट्टीनाड मांसाहारी भोजन परोसता है? आपको पुराने जयपुर में एक मुस्लिम परिवार द्वारा पीढ़ियों से चलाया जा रहा तीन मंजिला रेस्तरां कहां मिलेगा जो शुद्ध शाकाहारी भोजनालय के ठीक बगल में सबसे स्वादिष्ट मुगलई भोजन परोसता है? आपको पुणे-सोलापुर राजमार्ग पर जय तुलजा भवानी नाम का एक सड़क किनारे ढाबा कहां मिलेगा जहां धनगर - एक गहरा धार्मिक लेकिन मांसाहारी ओबीसी समुदाय - परिवार सबसे स्वादिष्ट मटन पकाता है? और भारत के अलावा विजयवाड़ा के मध्य में आपके पास ऐसी फूड स्ट्रीट कहां होगी, जहां इडली-डोसा की दुकान के बगल में आधा दर्जन प्रकार की आंध्र बिरयानी बेचने वाला स्टॉल लगा हो?
'सरकार कर रही फूड पॉलिटिक्स'
शांति हमेशा से ही इस देश की यात्रा का मार्ग रहा है. सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश पुलिस को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देना कि प्रत्येक रेहड़ी-पटरी वाले या सड़क किनारे रेस्तरां पर मालिक का नाम लिखा हो, जानबूझकर विभाजन के बीज बोना है. यूपी सरकार का यह दावा कि यह आदेश केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि यात्रा मार्ग पर कोई कानून-व्यवस्था की गड़बड़ी न हो. वरिष्ठ पत्रकार ने सरकार की प्रक्रिया को कपटी भरा बताया. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में कांवड़ यात्रियों के सफर में खाने को लेकर किसी विवाद में फंसने का शायद ही कोई सबूत मिला है. यह सरकार द्वारा भेदभावपूर्ण फूड पॉलिटिक्स है जो परेशानी पैदा कर सकती है.
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'पैदा होगा सामाजिक अलगाववाद'
कावंडियों की यात्रा सफर में रेहड़ी-दुकानों पर नेमप्लेट सामाजिक अलगाव को पैदा करता है. उन्होंने कहा कि यह फैसला एक सामाजिक रंगभेद है. जो जमीन पर धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ाने के लिए बनाया गया है. ग्राहकों की चाहत में कौन सा स्टॉल मालिक कांवड़ यात्रियों को उनकी धार्मिक मान्यताओं के विपरीत कोई भी भोजन परोसेगा?
वरिष्ठ पत्रकार आगे कहते हैं कि मामले को और भी भयावह बनाने के लिए सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाया गया जिसमें मुस्लिमों की दुकानों और रेहड़ी को अशुद्ध और अस्वच्छ दिखाने की भी कोशिश की गई है. यह एक सांप्रदायिक झूठ है. FSSAI का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रॉडक्ट क्वालिटी को बनाए रखा जाए, न कि किसी खाने की जगह की स्वच्छता को उसके मालिक की धार्मिक पहचान के आधार पर आंका जाए.
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राजदीप सरदेसाई ने इस दौरान कोविड काल को याद करते हुए कहा कि इस मामले को उस जहरीले अभियान के साथ भी देखा जा सकता है जब राष्ट्रीय राजधानी में तब्लीगी जमात की बैठक के दौरान कोविड मामलों में बढ़ोतरी के कारण मुसलमानों को दोषी ठहराया गया था. वो इतना प्रभावी था कि मुस्लिम सब्जी विक्रेताओं को कई इलाकों में आर्थिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा. अगर अदालत ने तुरंत मामले में हस्तक्षेप नहीं किया होता और नेमप्लेट आदेश को स्पष्ट रूप से असंवैधानिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं घोषित किया होता तो कांवड़ यात्रा विवाद ने भी यही हासिल किया होता.
ओपिनियन- राजदीप सरदेसाई
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