SC-ST रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद NDA में पड़ी फूट? चिराग-चंद्रबाबू ने पकड़ी अलग-अलग राह
SC-ST रिजर्वेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एनडीए में फूट पड़ती नजर आ रही है. बीजेपी ने अभी तक कोर्ट के फैसले पर अपना कोई स्टैंड क्लीयर नहीं किया है लेकिन टीडीपी और चिराग पासवान ने इसपर अपनी अलग-अलग प्रतिक्रिया जाहिर कर दी है.
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SC-ST Reservation: कोटा के अंदर कोटा आरक्षण पर बीजेपी ने अपना कोई स्टेंड क्लीयर नहीं किया है लेकिन एनडीए के अंदर फूट पड़ती नजर आ रही है. बीजेपी की सहमति या असहमति का इंतजार किए बिना एनडीए की दो पार्टियों ने एक-दूसरे से अलग राह पकड़ ली है. लोजपा के चिराग पासवान सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण आदेश के खिलाफ रिव्यू पीटिशन लगाने जा रहे हैं तो टीडीपी चीफ और आंध्र प्रदेश सीएम चंद्रबाबू नायडू आरक्षण देने का काम शुरू कर रहे हैं.
लंबे समय से आरक्षण के पक्ष में रहे हैं सीएम नायडू
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण का दायरा बढ़ाने के लिए अब जो आदेश दिया था उस पर चंद्रबाबू नायडू ने 30 साल पहले काम शुरू किया था. 1998-99 में जस्टिस पी रामंचद्र राजू की अध्यक्षता में आयोग बनाया था. आयोग का काम था अनुसूचित जातियों में ऐसी जातियों की पहचान करना जिसे आरक्षण जैसी सुविधाओं की जरूरत है. आयोग ने आबादी के हिसाब के आरक्षण देने के लिए नायडू सरकार को सिफारिश दी थी कि अनुसूचित जातियों को ABCD चार कैटेगरी में बांटा जाए.
डेक्कन क्रॉनिकल की रिपोर्ट के मुताबिक सीएम के दूसरे कार्यकाल में चंद्रबाबू नायडू ने अध्यादेश लाकर आरक्षण लागू कर दिया था. 2000 से 2004 तक आरक्षण लागू रहा. 24 हजार से ज्यादा लोगों को आरक्षण से सरकारी नौकरी मिली लेकिन कोर्ट से रोक लगने के बाद मामला फंस गया. 20 साल तक मामला लटके रहने के बाद फिर आरक्षण का रास्ता खुला है.
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माडिगा समाज को मिलेगा आरक्षण
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना अब दो अलग राज्य भले बन गए हों लेकिन दोनों की सामाजिक-जातियां परिस्थितियां एक जैसी हैं. जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया, तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी ने माडिगा को आरक्षण देने का ऐलान कर दिया. बीजेपी की तरह कांग्रेस ने भी अभी क्लियर नहीं किया है कि वो आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश का स्वागत करती है या विरोध.
आरक्षण के नए आदेश पर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा फायदा माडिगा जाति को मिलने जा रहा है. दोनों हाथों में लड्डू हैं. तेलंगाना में भी आरक्षण मिलेगा और आंध्र प्रदेश में भी. तेलंगाना की 54 लाख अनुसूचित जाति आबादी में से माडिगा की आबादी 32 लाख से ज्यादा मानी जाती है. आंध्र प्रदेश में माडिगा आबादी करीब 34 लाख मानी जाती है. माडिगा आरक्षण आंदोलन जिस प्रकाशम जिले से शुरू हुआ था वो अब आंध्र प्रदेश की सीमा में आता है. कर्नाटक तीसरा राज्य है जहां माडिगा आबादी करीब 10 लाख है. हालांकि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने साफ नहीं किया है कि आरक्षण की नई व्यवस्था पर उसकी क्या लाइन होगी.
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माडिगा समाज ने किया बीजेपी-टीडीपी का समर्थन
माडिगा रिजर्वेशन पोराता समिति ने जब आरक्षण के लिए आंदोलन शुरू किया था तब आंध्र प्रदेश यूनाइटेड होता था. 2023 में तेलंगाना विधानसभा चुनाव की रैली में मोदी ने माडिगा समिति के मंदा कृष्णा माडिगा को गले लगाकर आरक्षण का वादा किया था. हालांकि माडिगा को सरकार से आरक्षण मिला नहीं. आरक्षण सुप्रीम कोर्ट से मिला. फिर भी माडिगा समिति ने क्रेडिट मोदी और चंद्रबाबू नायडू को दिया है. YSRCP आरक्षण के खिलाफ है, ऐसा मानकर लोकसभा चुनाव ने माडिगा रिजर्वेशन पोराता समिति ने खुलकर बीजेपी-टीडीपी-जेएसपी अलायंस का समर्थन किया था. तेलंगाना में भी बीजेपी का साथ दिया था.
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चिराग कर रहे SC के आदेश का विरोध!
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को ये अधिकार दिया है कि वो नई अनुसूचित जाति-जनजातियों की पहचान करके आरक्षण के दायरे में ला सकती है. दलित-पिछड़ों की राजनीति करने वाली कई पार्टियों ने विरोध किया है. पार्टी की लाइन इस बात पर निर्भर है कि आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था से उसके वोट बैंक को कितना फायदा मिलता है. जिनके वोट बैंक को अब तक आरक्षण का सुख नहीं मिला उनकी खुशी का ठिकाना नहीं. टीडीपी ने फटाफट इसलिए आरक्षण का एलान कर दिया कि क्योंकि माडिगा जाति को आरक्षण मिलेगा. बिहार में एलजेपी का वोट बैंक पासवान को, आरजेडी का वोट बैंक यादव को और यूपी में बीएसपी का वोट बैंक जाटव को माना जाता है. इन जातियों को सबसे ज्यादा आरक्षण का फायदा मिल रहा है. नई जातियों को आरक्षण के दायरे में लाने का आदेश आते ही ये सारे नेता विरोध में गए हैं.
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