अपनी ही सीट पर बुरे फंसे थे बीजेपी के दिग्गज, वसुंधरा राजे ने भी बिगाड़ा खेल? लोकसभा में पार्टी की हार के पीछे रही ये वजह
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद अब राजस्थान बीजेपी में हार को लेकर मंथन शुरू हो चुका है. राजस्थान ही नहीं, बल्कि देशभर में माहौल ऐसा है कि मानो बीजेपी जीतकर भी हार गई हो. ये अलग बात है कि इस बार भी अपने दम पर बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है. ऐसा कहा जा रहा है कि इस तरह के परिणाम की किसी को उम्मीद नहीं थी. जिसके बाद सारे राजनीतिक पंडित अपने-अपने स्तर पर इस रह रहस्य को समझने में लगे हैं.
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लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद अब राजस्थान बीजेपी में हार को लेकर मंथन शुरू हो चुका है. राजस्थान ही नहीं, बल्कि देशभर में माहौल ऐसा है कि मानो बीजेपी जीतकर भी हार गई हो. ये अलग बात है कि इस बार भी अपने दम पर बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है. ऐसा कहा जा रहा है कि इस तरह के परिणाम की किसी को उम्मीद नहीं थी. जिसके बाद सारे राजनीतिक पंडित अपने-अपने स्तर पर इस रह रहस्य को समझने में लगे हैं. भले ही सीधे तौर पर कारण स्पष्ट करना मुश्किल है, लेकिन हाल ही में दिये गए अपने बयान में राजस्थान के कैबिनेट मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा कि राजस्थान में 11 सीटें हारने के पीछे एक नहीं बल्कि कई कारण है. 400 पार के नारे को लेकर कांग्रेस ने जो भ्रम फैलाया हम उसे दूर नहीं कर पाए, किसान आंदोलन का असर रहा और टिकट बंटवारे के गलतियों का असर रहा.
उन्होंने कहा कि बहुत सी बातें थी, जिनका असर रहा. विश्लेषकों का कहना है कि राजस्थान (Rajasthan News) में किसी लोकप्रिय चेहरे की गैरमौजूदगी और बड़े चहरे की सक्रियता में कमी का बीजेपी (BJP) को नुकसान तो हुआ ही है, साथ ही बीजेपी का जातियों के गणित में उलझे रह जाना और अपने ही नेताओं को ठिकाने लगाने में बीजेपी ने कई सीटें गंवा दी.
इसके उलट गहलोत-पायलट की मतभेद के बावजूद कई मायनों में कांग्रेस बीजपी से ज्यादा एकजुट दिखी. 6 महीने पहले राजस्थान में सरकार बनाने वाली बीजेपी को लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने उस तरह का समर्थन नहीं दिया है. जिसके चलते दो बार से 25 सीटें लाने वाली एनडीए इस बार हैट्रिक नहीं बना पाई.
सीपी जोशी चित्तौड़ तक तो राजे झालावाड़ तक रहीं सीमित
वजह यह भी बताई जा रही है कि बीजेपी का प्रदेश संगठन एकजुट नहीं दिखा. खुद प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी भी अपने निर्वाचन क्षेत्र चित्तौड़गढ़ से बाहर नहीं निकले. संगठन महामंत्री और प्रदेश प्रभारी के पद खाली है. पहली बार विधायक और मुख्यमंत्री बने भजनलाल शर्मा ने सभी सीटों के दौरे जरूर किए. लेकिन करिश्माई चेहरे के अभाव में शायद मतदाताओं के बीच पकड़ बनाने में सफल नहीं दिखे.
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इसके अलावा पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अपने बेटे दुष्यंत सिंह के संसदीय क्षेत्र झालावाड़ तक ही सीमित रहीं. ये बात खुद बीजपी के सांसद ही कहने लगे हैं. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और गजेन्द्र सिंह शेखावत जैसे दिग्गज भी खुद की सीटों पर फंस गए और कडडा मुकाबला झेलना पड़ा. वहीं, बीजेपी पर आरक्षण विरोधी सोच का विपक्ष का आरोप भी बड़ा मुद्दा बन गया.
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