International Tiger Day 2024: पृथ्वी का सबसे सुंदर प्राणी बाघ है, बाघों का मध्य प्रदेश में डेरा है, इस बात पर मध्य प्रदेश के लोगों को गर्व है. ठीक उसी प्रकार जैसे भारत देश को बाघों की 3682 संख्या पर गर्व है, यह दुनिया में बाघों की कुल संख्या का 75 प्रतिशत हैं. वहीं बाघ के मामले में मध्य प्रदेश का देश में पहला स्थान है, यही वजह है कि मध्य प्रदेश को बाघ प्रदेश कहा जाता है.
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मध्यप्रदेश में बाघों की आबादी 526 से बढ़कर 785 पहुंच गई है, यह देश में सर्वाधिक है. प्रदेश में चार-पांच सालों में 259 बाघ बढ़े हैं. यह वृद्धि 2010 में कुल आबादी 257 से भी ज्यादा है. वन विभाग के अथक प्रयासों और स्थानीय लोगों के सहयोग से जंगल का राजा सुरक्षित है. बाघों की पुनर्स्थापना का काम एक अत्यंत कठिन काम था, जो मध्यप्रदेश ने दिन-रात की मेहनत से कर दिखाया.
बाघ प्रदेश बनने के कारण
मध्य प्रदेश के बाघ प्रदेश बनने के चार मुख्य पहलू है. पहला गांवों का वैज्ञानिक विस्थापन. वर्ष 2010 से 2022 तक टाइगर रिजर्व में बसे छोटे-छोटे 200 गांव को विस्थापित किया गया. सर्वाधिक 75 गांव सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से बाहर किए गए. दूसरा है, ट्रांसलोकेशन. कान्हा के बारहसिंगा, बायसन और वाइल्ड बोर का ट्रांसलोकेशन कर दूसरे टाइगर रिजर्व में उन्हें बसाया गया, इससे बाघ के लिए भोजन आधार बढ़ा. तीसरा है, हैबिटेट विकास. जंगल के बीच में जो गांव और खेत खाली हुए, वहां घास के मैदान और तालाब विकसित किए गए, जिससे शाकाहारी जानवरों की संख्या बढ़ी और बाघ के लिए आहार भी उपलब्ध हुआ. सुरक्षा व्यवस्था में अभूतपूर्व बदलाव हुआ. पन्ना टाईगर रिज़र्व में ड्रोन से सर्वेक्षण और निगरानी रखी गई. वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल कर अवैध शिकार को पूरी तरह से रोका गया. क्राइम इन्वेस्टीगेशन और पेट्रोलिंग में तकनीकी का इस्तेमाल बढ़ाया गया.
तेंदुओं की संख्या में भी एमपी सबसे आगे
वन्यजीव सुरक्षा के कारण तेंदुओं की संख्या में भी मध्यप्रदेश देश में सबसे आगे है. देश में 12 हजार 852 तेंदुए हैं. जिनमें अकेले मध्यप्रदेश में यह संख्या 4100 से ज्यादा है. देश में तेंदुओं की आबादी औसतन 60% बढ़ी है, जबकि प्रदेश में यह 80% है. देश में तेंदुओं की संख्या का 25% अकेले मध्यप्रदेश में है.
एमपी कैसे बना टाइगर स्टेट
बाघों की गणना हर 4 साल में एक बार होती है. वर्ष 2006 से बाघों की संख्या का आंकड़ा देखें तो वर्ष 2010 में बाघों की संख्या 257 तक हो गई थी. इसे बढ़ाने के लिए बाघों के उच्च स्तरीय संरक्षण और संवदेनशील प्रयासों की आवश्यकता थी. मध्यप्रदेश को बाघ प्रदेश बनाने के लिए कड़ी मेहनत शुरु हुई, जिसके बाद एमपी ने सबसे ज्यादा बाघों की संख्या का रिकॉर्ड बनाकर टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल कर लिया.
रीजनल रेस्क्यू स्क्वाड बनाए गए
मानव और वन्यप्राणी संघर्ष के प्रभावी प्रबंधन के लिए 16 रीजनल रेस्क्यू स्क्वाड और हर जिले में जिला स्तरीय रेस्क्यू स्क्वाड बनाए गए. वन्यप्राणी अपराधों की जांच के लिए वन्यप्राणी अपराध की खोज में विशेषज्ञ 16 श्वान दलों का गठन किया गया. अनाथ बाघ शावकों की रिवाल्विंग की गई है. विभिन्न प्रजातियां विशेष रूप से चीतल, गौर और बारहसिंगा का उन स्थानों पर पुनर्स्थापना किया गया, जहां वे संख्या में कम थे या स्थानीय तौर पर विलुप्त जैसे हो गए थे. राज्य स्तरीय स्ट्राइक फोर्स ने पिछले आठ वर्षों में वन्यप्राणी अपराध करने वाले 550 अपराधियों को 14 राज्यों से गिरफ्तार किया, इसमें से तीन विदेशी थे.
संरक्षित क्षेत्र के बाहर वन्यप्राणी प्रबंधन के लिए बजट की व्यवस्था की गई. वन्य प्राणी पर्यटन से होने वाली आय की स्थानीय समुदाय के साथ साझेदारी की गई. इन सब प्रयासों के चलते बाघ संरक्षण के प्रयासों को मजबूती मिली.
राष्ट्रीय उद्यानों का बेहतर प्रबंधन
वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग बाघ सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले 13 देशों ने वादा किया था कि वर्ष 2022 तक वे बाघों की आबादी दोगुनी कर देंगे. इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मध्यप्रदेश में बाघों के प्रबंधन में निरंतरता एवं उत्तरोत्तर सुधार हुआ. बाघों की संख्या में 33% की वृद्धि चक्रों के बीच अब तक की सबसे अधिक दर्ज की गई है, जो 2006 से 2010 के बीच 21% और 2010 और 2014 के बीच 30% थी. बाघों की संख्या में वृद्धि, 2006 के बाद से बाघों की औसत वार्षिक वृद्धि दर के अनुरूप थी. मध्य प्रदेश में 526 बाघों की सबसे अधिक संख्या है. इसके बाद कर्नाटक में 524 बाघों की संख्या 442 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे नंबर पर था. मध्यप्रदेश के लिए गर्व का विषय है कि वर्ष 2022 की समय-सीमा से काफी पहले यह उपलब्धि हासिल कर ली है.
बाघों के लिए गांवों का विस्थापन
प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में राष्ट्रीय उद्यानों के बेहतर प्रबंधन की मुख्य भूमिका है. राज्य शासन की सहायता से 50 से अधिक गाँवों का विस्थापन किया. बहुत बड़ा भू-भाग जैविक दबाव से मुक्त कराया गया है. संरक्षित क्षेत्रों से गांवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के रहवास क्षेत्र का विस्तार हुआ है. कान्हा, पेंच, और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गांवों को विस्थापित किया जा चुका है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का 90 प्रतिशत से अधिक कोर क्षेत्र भी जैविक दबाव से मुक्त हो चुका है. विस्थापन के बाद घास विशेषज्ञों की मदद लेकर स्थानीय प्रजातियों के घास के मैदान विकसित किये जा रहे हैं, ताकि शाकाहारी वन्य-प्राणियों के लिये वर्ष भर चारा उपलब्ध होता रहे.
बाघों के भोजन के लिए चीतल की संख्या में वृद्धि
इसके अलावा समस्त संरक्षित क्षेत्रों में रहवास विकास कार्यक्रम चलाया जा रहा है. सक्रिय प्रबंधन से विगत एक वर्ष के भीतर 500 से अधिक चीतलों को अधिक जनसंख्या वाले भाग से कम जनसंख्या वाले एवं चीतल विहीन क्षेत्रों में सफलता से स्थानांतरित किया गया है. इससे चीतल जो कि बाघों का मुख्य भोजन है, उनकी संख्या में वृद्धि होगी और पूरे भू-भाग में चीतल फैल जायेंगे.
यूनेस्कों में शामिल हुआ सतपुड़ा टाइगर रिजर्व
मध्यप्रदेश ने टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में शीर्ष स्थान प्राप्त किया. सतपुडा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है.
पेंच को मिली सर्वोच्च रैंक
भारत सरकार की टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में सर्वोच्च रैंक हासिल की है. बांधवगढ़, कान्हा, संजय, और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वाले टाइगर रिजर्व माना गया है. इन राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है.
पन्ना टाइगर रिजर्व ने बनाया रिकॉर्ड
पन्ना टाइगर रिजर्व ने बाघों की आबादी बढ़ाने में पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया है. यह भारत के वन्यजीव संरक्षण इतिहास में एक अनूठा उदाहरण है. सतपुड़ा बाघ रिजर्व में सतपुड़ा नेशनल पार्क, पचमढ़ी और बोरी अभ्यारण्य से 42 गांवों को सफलतापूर्वक दूसरे स्थान बसाया गया है. यहां सोलर पंप और सोलर लैंप का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है.
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