बिहार में अब मां और बच्चों के स्वास्थ्य का हाल पहले जैसा नहीं रहा. कुछ साल पहले तक जहां बच्चे और मां की जान बचाना मुश्किल लगता था, वहीं अब बिहार देश के उन राज्यों में शुमार हो गया है, जहां सुरक्षित प्रसव और टीकाकरण को बड़ी प्राथमिकता मिली है. यह बदलाव अचानक नहीं हुआ, बल्कि लगातार कई वर्षों के प्रयासों का नतीजा है .
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पहले था चिंता का विषय, अब है राहत की बात
पहले बिहार में सिर्फ 20 फीसदी महिलाएं ही अस्पताल में जाकर बच्चे को जन्म देती थीं. बाकी ज्यादातर महिलाएं घर पर ही जन्म देती थीं, जिससे जच्चा-बच्चा दोनों की जान खतरे में रहती थी . मगर अब स्थिति पूरी तरह बदल गई है. जागरूकता बढ़ाने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू कीं, जैसे कि मुफ्त दवाइयां, एम्बुलेंस सेवा, और प्रशिक्षित स्टाफ की उपलब्धता. इन सबके कारण अब लगभग 80 फीसदी से ज्यादा महिलाएं अस्पताल में बच्चे को जन्म देती हैं.
टीकाकरण का सफर भी कमाल का रहा
बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण बहुत जरूरी होता है. बिहार में पहले सिर्फ 18 फीसदी बच्चे ही पूरी तरह टीकाकरण कराते थे. आज यह संख्या 90 फीसदी के करीब पहुंच गई है . इसे एक बड़ी सफलता माना जा रहा है. मिशन इंद्रधनुष, आशा कार्यकर्ता, और स्वास्थ्य शिविरों ने इस अभियान को जन आंदोलन बना दिया है.
स्वास्थ्य सेवा पहुंची गांव-गांव तक
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में स्वास्थ्य सेवा को गांव-गांव तक पहुंचाने पर खास ध्यान दिया गया. नए अस्पताल और मेडिकल कॉलेज बने, डॉक्टर और नर्सों की संख्या बढ़ाई गई, और आधुनिक जांच सुविधाएं शुरू हुईं. टेलीमेडिसिन जैसे नवाचारों से इलाज का अधिकार हर किसी तक पहुंचा है, जिससे गरीब से गरीब परिवार भी बेहतर इलाज पा रहे हैं.
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कहानी
- संस्थागत प्रसव 2005 में मात्र 19.9 फीसदी था, जो अब 2020 में 76 फीसदी से ऊपर पहुंच गया.
- टीकाकरण 2002 में 18 फीसदी था, जो अब 90 फीसदी तक पहुंच चुका है.
- हेल्थ सेंटर और महिला स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या भी काफी बढ़ी है.
बिहार की इस सफलता ने कई परिवारों की जिंदगी बचाई है और माताओं तथा बच्चों को सुरक्षित रहने का अधिकार दिया है. आज बिहार की यह स्वास्थ्य व्यवस्था पूरे देश के लिए मिसाल बन चुकी है. हर गांव में बेहतर इलाज, हर बच्चे को सुरक्षा, और हर मां को सम्मान मिल रहा है. यही असली बदलाव है, जो बिहार को स्वास्थ्य क्षेत्र में नए मुकाम तक ले गया है.
बच्चों और माताओं की ये जीत हमें यह दिखाती है कि सही नीतियां और मेहनत से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है. बिहार ने यह साबित कर दिया है कि जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार को मजबूत बनाना कोई दूर की बात नहीं, बल्कि एक संभव हकीकत है.
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