Bihar Election: दलितों का बदल रहा मन? बिहार चुनाव से पहले सर्वे में सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े

Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले दलित वोटरों के रुझान ने सियासी माहौल को गर्म कर दिया है. दरअसल, नेशनल कॉन्फेडेरसन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन और द कन्वर्जेंट मीडिया ने दलित वोटरों के बीच एक सर्वे किया था, जिसमें चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. इस सर्वे में महागठबंधन को बढ़त और नीतीश कुमार की लोकप्रियता में कमी का दावा किया जा रहा है.

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सांकेतिक तस्वीर

विजय विद्रोही

21 Jul 2025 (अपडेटेड: 21 Jul 2025, 12:56 PM)

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Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो रही हैं. इस बीच अब नेशनल कॉन्फेडेरसन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन और द कन्वर्जेंट मीडिया ने दलित वोटरों को लेकर एक सर्वे किया है. इस सर्वे में दलित वोटरों के रुझान को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. इसने सियासी गलियारों में हलचल बढ़ा दी है. राज्य की कुल आबादी में दलिताें की 19.65% हिस्सेदारी है. ऐसे में लगातार ये सवाल पूछे जा रहे हैं कि दलितों का झुकाव किस तरफ होगा? अब इसी को लेकर सर्वे किया गया है.

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इस सर्वे में करीब 18,581 मतदाताओं के सैंपल लिए गए हैं. आंकड़ों में ये सामने निकलकर आया है कि इस बार दलित वोटर महागठबंधन की ओर झुकते नजर आ रहे हैं. वहीं, पहले के मुकाबले एनडीए की पकड़ कमजोर होती दिख रही है. सर्वे के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दलितों के बड़े नेता बने हुए हैं. वहीं, राहुल गांधी इसमे दूसरे नबंर पर हैं. 

दलितों का रुझान किस तरफ?

सर्वे के अनुसार, 46.13% दलित वोटर महागठबंधन के साथ हैं. वहीं, 31.93% ने एनडीए कर समर्थन किया. दोनाें के बीच का 14% का ये अंतर बिहार के लिए एक बड़ा इशारा कर रहा है. बता दें कि इससे पहले 2020 में भी महागठबंधन को 46% और एनडीए को 36% दलित वोट मिले थे. लेकिन इस बार एनडीए का समर्थन 4% घटकर 32% रह गया है.

नीतीश कुमार की लोकप्रियता बढ़ी या घटी

सर्वे में दलितों के बीच नीतीश कुमार की पकड़ कम होने का खुलासा हुआ है. वहीं, नीतीश सरकार के कामकाज से 48% दलित असंतुष्ट नजर आए, जबकि 45% ने इसे ठीक बताया. मुख्यमंत्री के रूप में 29% दलित तेजस्वी यादव को पसंद करते हैं. चिराग पासवान 26% और तीसरे नंबर पर नीतीश कुमार 23% दलितों की पसंद है. वहीं, जीतन राम मांझी को 8% और प्रशांत किशोर 7.4% दलित पसंद करते हैं.

71% को नाम कटने का डर

सर्वे का एक और महत्वपूर्ण पहलू सामने आया है कि 71% दलित मतदाताओं को इस बात का डर है कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के दौरान उनका नाम वोटर लिस्ट से कट सकता है. केवल 32% दलित ऐसे हैं जिन्हें इसका डर नहीं है.

जातीय जनगणना पर दलितों का रुख

इस दाैरान जब सर्वे में आरक्षण की सीमा बढ़ाने को लेकर सवाल पूछा गया तो 82% दलित इसके समर्थन में दिखे. वहीं, इसमें 50% की कैप हटाकर जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की बात कही गई. जातीय जनगणना का श्रेय 33% ने मोदी, 31% ने राहुल गांधी और 27% ने तेजस्वी यादव को दिया. ऐसे में कुल 58% दलित इस मुद्दे का श्रेय इंडिया गठबंधन को दे रहे हैं.

सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी

सर्वे के मुताबिक, 58.9% दलितों ने बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा बताया और 62% ने बदलाव की जरूरत जताई. वहीं, वोट देने के आधार पर सवाल पूछा गया तो 45% दलित मतदाता उम्मीदवार के कामकाज और छवि को प्राथमिकता दी. इसके बाद 32% ने पार्टी या गठबंधन को देखकर वोट करने की बात कही, जबकि केवल 12% ही जातीय आधार पर अपना वोट तय करने की बात करते नजर आए.

तेजस्वी की लोकप्रियता, चिराग का घटता प्रभाव

सर्वे में दलित समाज के भीतर जातिगत समूहों के रुझानों में भी स्पष्ट अंतर देखने को मिला. रविदासी वोटरों का 80% हिस्सा महागठबंधन के साथ खड़ा नजर आ रहा है. वहीं दूसरी ओर पासवान वोटरों में चिराग पासवान के प्रति पहले जैसा उत्साह अब नजर नहीं आता. ये संकेत करता है कि लोक जनशक्ति पार्टी की पकड़ कुछ हद तक कमजोर हुई है.

राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा नेता कौन?

राष्ट्रीय नेतृत्व की बात करें तो 47% दलित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना पसंदीदा नेता मानते हैं, जबकि 41% दलितों की पसंद राहुल गांधी हैं. आंकड़े से पता चलता है कि राष्ट्रीय स्तर पर राज्य में दलितों के बीच मोदी की लोकप्रियता अब भी मजबूत बनी हुई है. लेकिन राहुल गांधी भी बहुत पीछे नहीं हैं और एक बड़ी चुनौती बनकर उभरे रह हैं.

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