बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को शाम 6 बजे खत्म हुआ. आजादी के बाद पहली बार 64.69% मतदान हुआ और नया रिकॉर्ड बन गया है. वोटिंग प्रतिशत बढ़ने की वजह से चर्चाएं तेज है कि आखिर इसके क्या मायने है? कितने लोगों ने वोट किया है? कितनी महिलाओं ने वोट किया है और अगर इनके बीच का कोई गैप है तो यह किसके पक्ष में है? इसे लेकर सी वोटर के फाउंडर यशवंत देशमुख ने इंडिया टुडे समूह के Tak चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर से खास बातचीत कि. इस दौरान यशवंत देशमुख ने बताया कि पहले फेज के वोटिंग के दौरान पुरुषों ने 61% और महिलाओं ने 69% वोट किया है. आइए विस्तार से समझते है पूरा समीकरण.
ADVERTISEMENT
पहले फेज में महिलाओं ने ज्यादा किए वोट
यशवंत देशमुख ने बताया कि, पहले फेज में लगभग 61.61% पुरुषों ने और लगभग 69% महिलाओं ने वोट किया है. यानी दोनों के बीच 8% के आसपास का गैप है और ये बहुत बड़ा गैप है. साथ ही तकरीबन 20 सीटें ऐसी है जहां पुरुषों का टर्न आउट महिलाओं से ज्यादा है और तकरीबन 20 ही सीटें ऐसी है जहां महिलाओं का ज्यादा है. उन्होंने आगे कहा कि, पोलिंग के आधी सीटों में लगभग डेफिनेटिव जो लीड है महिला टर्न आउट की वो बहुत ज्यादा है. इस चुनाव में इतना जरूर है कि महिलाओं का रिकॉर्ड तोड़ मतदान एक फैक्टर होगा.
यशवंत देशमुख ने यह भी कहा कि, बिहार के इलेक्टोरेट में पुरुष मतदाताओं की संख्या (100 में 53-54) महिलाओं (100 में 46-47) से अधिक है. इसलिए, 8% अधिक टर्नआउट के बावजूद, दोनों का कुल मतदान लगभग 50-50 की बराबरी पर आकर रुका है.
महिलाओं का रुझान किसके तरफ?
सी वोटर के फाउंडर यशवंत देशमुख ने कहा कि, इस चुनाव में दो वोट बैंक महिला और युवा दोनों ने ही जाति और धर्म से परे जाकर वोट डालने का जज्बा दिखाया है. हालांकि मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जातिगत व्यवस्था समाप्त हो गई या जाति महत्वपूर्ण नहीं है. लेकिन उसकी काट भी आने शुरू हो गई है और ये बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण टर्निंग पॉइंट हो सकता है.
उन्होंने आगे कहा कि महिलाएं अभी भी नीतीश कुमार के पक्ष में ही है. और इसके पीछे तर्क देते हुए कहा कि, मैं एनडीए की जगह नीतीश कुमार इसलिए कह रहा हूं क्योंकि कल वोटिंग के दौरान हमारे रिसर्चर्स ने यह बताया कि जिन सीटों पर नीतीश कुमार के कैंडिडेट नहीं थे, वहां महिलाएं तीर छाप को ढूंढ रही थी. हालांकि वहां पर एनडीए का कोई ना कोई दल तो लड़ ही रहा था लेकिन वे तीर छाप को ढूंढ रही थी. इसलिए यह जरूरी नहीं है कि महिलाओं ने एनडीए के सभी घटक दलों को उसी अनुपात में वोट दिया हो, जितना नीतीश कुमार के कैंडिडेट को दिया गया हो.
युवाओं को लेकर क्यों है कंफ्यूजन?
यशवंत देशमुख ने युवाओं के उत्साह को लेकर कहा कि, इसे लोग अपने-अपने हिसाब से कंफ्यूज कर लेते हैं कि यह उत्साह तेजस्वी के रोजगार के लिए किए गए वादे का है और यह उत्साह पूरी तरह प्रशांत किशोर के लिए है. लेकिन सच्चाई बीच में है. उन्होंने आगे कहा कि, युवाओं का कुछ हिस्सा तेजस्वी के सरकारी रोजगार के वादे के लिए है और कुछ हिस्सा प्रशांत किशोर के बदलाव की राजनीति के लिए है. लेकिन युवाओं में जो हायर टर्न आउट का अट्रैक्शन है ये इन दो धड़ो में बंटा हुआ है.
उन्होंने आगे कहा कि, जैसे महिलाओं के लिए मैंने बोला कि नीतीश के कारण जेडीयू वर्सेस नॉन जेडीयू एनडीए का एक गैप रहेगा. उसी तरीके से युवाओं में प्रशांत और तेजस्वी का एक गैप रहेगा. कहने का तात्पर्य ये है कि अब ये कोई एकतरफा नहीं गया है. हालांकि मैं ये देख सकता हूं कि बदलाव की शुरुआत इस लिहाज से हुई है कि बिहार की मौलिक सोच में बदलाव आ रहा है. सत्ता में बदलाव होगा कि नहीं होगा यह आज की तारीख में नहीं कहा जा सकता.
Bihar Election Ground report: प्रशांत किशोर अर्श पर या फर्श पर, वोट काटेंगे या बनेंगे किंग मेकर?
ADVERTISEMENT

