Bihar Election 2025: बिहार में रिकॉर्ड 64.69% वोटिंग का क्या मतलब, पुराने आंकड़े दे रहे ये बड़े संकेत!

Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025: बिहार चुनाव के पहले चरण में 64.69% की रिकॉर्ड वोटिंग हुई, जो 2020 से 8% अधिक है. बड़ी भागीदारी ने चुनावी माहौल गर्म कर दिया है. इतनी वोटिंग बदलाव का संकेत है या सरकार के समर्थन का यह साफ नहीं है. महिला मतदाता इस चुनाव की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएंगी.

Bihar Voting Percentage
Bihar Voting Percentage

ललित यादव

07 Nov 2025 (अपडेटेड: 07 Nov 2025, 01:51 PM)

follow google news

Bihar Chunav Phase 1 Polling: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में रिकॉर्ड वोटिंग दर्ज की गई. गुरुवार को 121 सीटों पर हुए मतदान में रिकॉर्ड 64.69% वोटिंग हुई. यह पिछली बार (2020) के 56.1% मतदान से करीब 8% ज्यादा है और बिहार के चुनावी इतिहास में पहले चरण की सबसे ज्यादा वोटिंग है.

Read more!

इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले 36 लाख अधिक मतदाताओं ने वोट डाला. कुल 3.75 करोड़ वोटरों में से 2.42 करोड़ लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया.

क्या ज्यादा वोटिंग बदलाव लाएगी? 

राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चा गर्म है कि क्या इतनी बड़ी वोटिंग बदलाव का संकेत है या सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए समर्थन का संदेश है? लेकिन चुनावी इतिहास बताता है कि हर बार ज्यादा वोटिंग का मतलब बदलाव नहीं होता.

बिहार में आजादी के बाद 1951-52 से सिर्फ 3 बार 60% से अधिक मतदान हुआ. अगर उस पैटर्न को देखें तो साफ होता है कि जब भी बिहार में 60 फीसदी से अधिक मतदान हुआ बिहार में सरकार बदल गई. और ऐसा तीन चुनावों 1990 (62.04%), 1995 में (61.79%) और 2020 में (62.57%) में देखने को मिला. 

जब वोटिंग 60% के पार..लालू प्रसाद जीते चुनाव

जब-जब राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने राज्य की बागडोर संभाली, वोटिंग प्रतिशत में उछाल देखने को मिला. 1990 में पहली बार जब लालू यादव सत्ता में आए तो मतदान प्रतिशत 62.04% रहा, जो 60% से ऊपर था. अगली बार 1995 में भी लगभग इतने ही मतदान (61.79%) में उनकी सत्ता बरकरार रही. 2000 में यह प्रतिशत और बढ़कर 62.57% तक पहुंच गया और फिर भी लालू सत्ता में वापसी करने में कामयाब रहे. ये आंकड़ें बता रहे हैं कि लालू के कार्यकाल में हाई मतदान प्रतिशत उनकी जीत सुनिश्चित करता रहा है. हालांकि अभी पहले फेज के लिए मतदान हुआ है. 11 नवंबर को मतदान पूरा होने के बाद यह तस्वीर साफ होगी की प्रदेश में कुल कितना मतदान हुआ.

कम वोटिंग में नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी

जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) के नीतीश कुमार की राजनीति में यह पैटर्न बदल जाता है. 2005 में जब नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बनेतो सत्ता परिवर्तन महज 46.5% वोटिंग में हो गया, जो लालू के दौर के मुकाबले काफी कम था. इसके बाद 2005 (दूसरा चुनाव) में और भी कम वोटिंग यानी 45.85% में वे फिर से सत्ता में लौट आए.

2010-2020 के दशक में बिहार में लगातार वोट प्रतिशत बढ़ता रहा है, लेकिन इसके बावजूद नीतीश कुमार की सत्ता कायम रही है. 2020 के चुनाव में भी लगभग 57.29% मतदान दर्ज किया गया था पर सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ.

60% से अधिक मतदान, सरकार बदली! 

साल वोटिंग नतीजा
2025 64.69 % --
2020 57.29 % NDA
2000 62.57 % RJD तीसरा टर्म
1995 61.79 % RJD दूसरा टर्म
1990 62.04 % RJD पहला टर्म, कांग्रेस की विदाई

इन 121 सीटों पर पिछली बार कौन जीता था?

पिछले चुनाव में इन सीटों पर NDA ने 60 और महागठबंधन ने 61 सीटें जीती थीं. इस बार प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी के आने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है, जिससे दोनों बड़े गठबंधनों की रणनीति पर असर पड़ सकता है.

कौन होगा असली किंगमेकर?

बिहार की राजनीति में हाई रिकॉर्ड वोटिंग का एक बड़ा कारण महिला मतदाताओं भी हो सकती है. इस चुनाव में महिला भागीदारी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. एनडीए और महागठबंधन दोनों ने महिलाओं के लिए बड़े वादे किए हैं.

नीतीश कुमार लंबे समय से शराबबंदी और साइकिल योजना जैसी पहलों के कारण महिलाओं के बीच लोकप्रिय रहे हैं. वह नई सहायता योजनाओं से इस समर्थन को बनाए रखने की कोशिश में हैं.

दूसरी ओर, तेजस्वी यादव ने महिलाओं को 30,000 रुपए की सहायता राशि देने का वादा किया है, महिला मतदाताओं का झुकाव ही बिहार में सत्ता की दिशा तय कर सकता है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि स्थानीय मुद्दों पर वोटिंग पैटर्न निर्भर करेगा. जहां नीतीश की योजनाएं सफल रहीं, वहां एनडीए को लाभ मिल सकता है, वहीं बेरोजगारी और पलायन से प्रभावित क्षेत्रों में महागठबंधन को फायदा होने की उम्मीद है.

अब सबकी निगाहें 11 नवंबर को होने वाले दूसरे चरण के मतदान पर टिकी हैं. बिहार का ताज किसके सिर सजेगा, यह 14 नवंबर को नतीजों के साथ साफ होगा.

ज्यादा वोटिंग से सत्ता में वापसी के उदाहरण 

चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि ज्यादा वोटिंग हमेशा सत्ता परिवर्तन का संकेत नहीं होती. कभी-कभी यह सरकार के समर्थन का प्रतीक भी होती है. जैसे- 2023 के मध्य प्रदेश चुनाव में 77% वोटिंग हुई. फिर भी बीजेपी ने सत्ता बरकरार रखी. ओडिशा 2014 में करीब 73% मतदान के बावजूद बीजेडी जीती. गुजरात 2012 में 71 % वोट पड़े, लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार लौटी. बिहार 2010 में भी 6.82% बढ़ोतरी के बाद जदयू गठबंधन जीता.

सत्ता परिवर्तन के उदाहरण

दूसरी तरफ, कुछ मामलों में ज्यादा वोटिंग हार का कारण भी बनी. राजस्थान 2023 में 74.45% वोटिंग से कांग्रेस हारी. तमिलनाडु 2011 में 7.19% ज्यादा मतदान के बाद डीएमके गठबंधन साफ हो गया. उत्तर प्रदेश 2012 में 13.44% बढ़ोतरी से बसपा बाहर हो गई. कुल मिलाकर वोटिंग का असर मुद्दों और जनभावना पर निर्भर करता है.

    follow google news