Kishanganj Vidhansabha Seat: बिहार के किशनगंज विधानसभा क्षेत्र मुस्लिम बहुल आबादी वाला विधानसभा सीट है. और हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है. लगातार यहां कांग्रेस प्रत्याशी ही चुनाव जीतते आ रहे हैं. वहीं, 2019 में हुए उपचुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM बिहार में पहली बार अपना खाता खोलने में कामयाब रही. 2019 के उपचुनाव में AIMIM के कमरूल होदा ने BJP की स्वीटी सिंह को चुनाव में हरा दिया. लेकिन अगले साल 2020 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने वापसी करते हुए BJP और AIMIM को हरा कर विधानसभा सीट पर कब्जा जमा लिया. पिछले तीन चुनावों में मुकाबला कांग्रेस, BJP और AIMIM के बीच ही होते आया है. इस बार जन सुराज भी कड़ी मेहनत कर रही है. किशनगंज विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते है.
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इस बार क्या होगा?
किशनगंज में अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय की शाखा, रोजगार, पलायन और हर साल नदियों से होने वाला कटाव मुख्य मुद्दा रहता हैं लेकिन मुस्लिम बहुल जिला होने के कारण इस बार वक्फ संशोधन बिल एक प्रमुख मुद्दा बनते जा रहा है. ज्यादातर मुस्लिम समाज के लोग इसे लेकर एनडीए के विरोध है जिसका खामियाजा भी एनडीए उम्मीदवार को भुगतना पड़ सकता है. बहरहाल इस बार लड़ाई त्रिकोणीय और दिलचस्प नजर आ रही है और अगर मुस्लिम मतदाताओं का बिखराव होता है तो एनडीए उम्मीदवार भी बाजी मार सकता है.
सामाजिक और जातिगत आंकड़े
किशनगंज में कुल मतदाता - 3 लाख 19 हजार 49 मतदाता हैं जिसमें पुरुष एक लाख 62 हजार 801, महिला मतदाता एक लाख 56 हजार 232 और अन्य मतदाता 16 है. जातिगत मतदाता की बात करें तो 58% मुस्लिम मतदाता और 42% हिन्दू मतदाता है.
क्या कहते हैं पत्रकार?
प्रेस क्लब किशनगंज के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार सुखसागर नाथ सिन्हा मानते हैं कि इस बार मामला चौंकाने वाला हो सकता है. अगर जनसुराज के प्रत्याशी अच्छा वोट लाते हैं तो वो कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाएंगे. क्योंकि यहां मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है. वहीं, AIMIM भी मुकाबले में सकती है.
कुल मिलाकर सीमांचल का ये इलाका और खासकर किशनगंज विधानसभा सीट सभी दलों के लिए काफी मायने रखता है.
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