बिहार में हर विधानसभा चुनाव से पहले शिक्षा पर सबसे ज्यादा जोर दिया जाता है. वादे किए जाते हैं कि अब स्कूल चमकेंगे, बच्चों को बेहतर माहौल मिलेगा और शिक्षक सम्मान पाएंगे. बजट में भी शिक्षा के लिए मोटी रकम आवंटित होती है, लेकिन पश्चिमी चंपारण जिले के चनपटिया विधानसभा क्षेत्र के 'मिल कॉलोनी' में स्थित एक सरकारी स्कूल इन तमाम दावों की पोल खोल रहा है.
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एक ऐसा स्कूल, जहां एक ही कमरे में पांच क्लास के बच्चे बैठकर पढ़ते हैं. न छत सही है, न खिड़की, न बिजली, न बाथरूम. गर्मी में बच्चे पसीने में भीगकर पढ़ते हैं और बारिश में छत टपकती है. पढ़ाई के लिए हौसला है, लेकिन हालात जैसे-तैसे सहना पड़ रहा है.
सरकार के आंकड़ों में बिहार की शिक्षा व्यवस्था बेहतर होती दिखती है, लेकिन जमीन पर खड़ी ये हकीकत बताती है कि बजट का शोर बहुत है, लेकिन असर बहुत कम.
न्यूजतक की टीम पहुंची मिल कॉलोनी
इस स्कूल की हालत अपनी आंखो से देखने न्यूजतक की टीम चनपटिया विधानसभा क्षेत्र पहुंची. हमने देखा की पुरानी बंद मिल के बगल में एक सरकारी स्कूल है, जिसका नाम है राजकीय प्राथमिक विद्यालय, मिल कॉलोनी चनपटिया. नाम सुनकर लगा कि शायद यहां कुछ बेहतर होगा. लेकिन जैसे ही स्कूल के अंदर कदम रखा, उम्मीद की जमीन दरकने लगी.
इस स्कूल में कक्षा 1 से 5 तक के बच्चे पढ़ते हैं. लेकिन कमरा बस एक ही है. उसी एक कमरे में पांचों क्लास के बच्चे किसी तरह जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं. कमरे की छत टूटी हुई है, पंखा नहीं है, लाइट नहीं है, खिड़कियां जर्जर हैं और आसपास गंदगी पसरी हुई है. गर्मी में बच्चे पसीने में भीगते हैं, लेकिन शिकायत नहीं करते. वो अब शिकायत करना छोड़ चुके हैं.
हमारे रिपोर्टर जब इस स्कूल के हालत की पड़ताल कर रहे थे तो उन्हें एक बच्चा नजर आया, करीब 7 साल का. उसके पास फटी हुई हिंदी की किताब थी वो चुपचाप उसे देख रहा था. हमने पूछा, "पढ़ाई कैसी चल रही है?" वो मुस्कुराया और कहा, "ठीक है. लेकिन गर्मी में बैठना मुश्किल होता है..." उसकी मुस्कान के पीछे जो तकलीफ़ थी, वो साफ़ दिख रही थी.
एक साथ पढ़ा रही हैं शिक्षिका
शिक्षिका भी एक कोने में बैठकर सभी बच्चों को एकसाथ पढ़ा रही थीं. उन्होंने बताया कि यहां कुल पांच शिक्षक हैं, लेकिन पढ़ाने की जगह सिर्फ एक. कोई अलग-अलग क्लासरूम नहीं, कोई बाथरूम नहीं, कोई रसोईघर नहीं. मिड-डे मील पीछे किसी खुले कोने में बनता है, जहां ना कोई छत है, ना कोई साफ-सफाई.
शौचालय की स्थिति पूछी तो जवाब मिला, "बच्चे बाहर चले जाते हैं. क्या करें, व्यवस्था नहीं है."
56 स्कूल जिनका नहीं है अपना भवन
स्थानीकय सामाजिक कार्यकर्ता मनीष कश्यप ने न्यूज तक की टीम को बताया कि ये तो सिर्फ एक उदाहरण है,. इसी यानी चनपटिया विधानसभा में ऐसे 56 स्कूल ऐसे हैं जिनके पास अपना भवन ही नहीं है. वहीं लगभग 200 स्कूल ऐसे हैं जो एक ही कमरे या फूस की झोपड़ी में चल रहे हैं. लेकिन इन हालातों की तस्वीर जब जमीन से उठाई जाती है, तो अक्सर सरकारी फाइलों में उसे “आधा अधूरा”, “मिसलीडिंग” कहकर खारिज कर दिया जाता है.
मनीष कहते हैं
"सवाल शिक्षकों से नहीं होना चाहिए, सवाल सिस्टम से होना चाहिए. शिक्षक खुद उसी तंत्र का हिस्सा हैं, जो उन्हें भी रोज निगल रहा है. वो तो लड़ रहे हैं, जैसे तैसे बच्चों को पढ़ा रहे हैं."
सरकारी आंकड़ें क्या कहते हैं
मनीष कश्यप आगे कहते हैं, सरकार के आंकड़ों में कहा जाता है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था सुधर रही है, लेकिन इन आंकड़ों में वो बच्चे नहीं दिखते जो छत से टपकती धूप के नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं ना वो शिक्षिका दिखती हैं, जो अपने ही पसीने से भीगती हुई हर क्लास को एकसाथ पढ़ा रही हैं. ना वो गंदा नाला दिखता है, जो स्कूल के बिल्कुल बगल में बह रहा है.
शिक्षा विभाग की उदासीनता पर सवाल
बिहार सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे तमाम बड़े-बड़े दावों के बीच इस स्कूल की स्थिति शिक्षा विभाग की उदासीनता को उजागर करती है. स्कूल में बुनियादी सुविधाएं जैसे पर्याप्त कमरे और मजबूत भवन तक उपलब्ध नहीं हैं, स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर यही स्थिति रही, तो गांव के क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर और नीचे जाएगा.
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अंतर
बिहार में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच साक्षरता का फर्क देखों तो इस दर में काफी अंतर है. शहरी क्षेत्रों की साक्षरता दर ग्रामीण क्षेत्रों से काफी ज्यादा है, खासतौर पर महिलाओं के लिए. 7 साल और उससे ज्यादा उम्र वर्ग में, शहरी पुरुषों की साक्षरता दर 89.8% है, जबकि ग्रामीण पुरुषों की 81.5% (8.3 अंकों का अंतर).
वहीं महिलाओं की बात करें तो उनके लिए यह अंतर और भी स्पष्ट है, शहरी क्षेत्रों में 77.5% की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में 65.0% (12.5 अंकों का अंतर). यह दर्शाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए शैक्षिक अवसर अभी भी सीमित हैं.
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