Bihar Election 2025. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) एक नए अवतार में दिखाई दे रही है. जिस पार्टी की पहचान हमेशा से 'एमवाई' (मुस्लिम-यादव) समीकरण की राजनीति पर टिकी रही है, वह अब इस दायरे से बाहर निकलने की तैयारी में है. युवा नेता तेजस्वी यादव की नजर अब सवर्ण वोट बैंक पर है, जो पारंपरिक रूप से भाजपा और जदयू का मजबूत आधार रहा है.
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अब RJD, सवर्ण वोट बैंक, खासकर भूमिहार समुदाय को लुभाने की कोशिश में है. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी ने पुराने जातीय समीकरणों को तोड़कर नया सियासी रास्ता अपनाने का फैसला किया है.
सवर्ण वोटों पर आरजेडी की नजर
खबर है कि इस बार आरजेडी 10 से अधिक भूमिहार उम्मीदवारों को टिकट दे सकती है. इसका मकसद भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के पारंपरिक सवर्ण वोट आधार में सेंध लगाना है. तेजस्वी यादव की यह रणनीति न केवल सत्ता तक पहुंचने का नया रास्ता तलाश रही है बल्कि बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों को भी बदल रही है.
पटना के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि आरजेडी अब उस भूमिहार समुदाय को गले लगाने की कोशिश कर रही है, जिससे कभी उसकी कटुता रही. इस बदलाव का सबसे बड़ा उदाहरण बाहुबली नेता सूरजभान सिंह का आरजेडी में शामिल होना है. सूरजभान के साथ उनकी पत्नी वीणा देवी और भाई चंदन कुमार के भी पार्टी में शामिल होने की संभावना है. यह कदम पटना, बेगूसराय, मुंगेर और आसपास के जिलों के जातीय समीकरणों को प्रभावित कर सकता है.
पुरानी छवि से दूरी
आरजेडी की यह नई रणनीति पुरानी छवि को तोड़ने की कोशिश है. कभी "भूरा बाल साफ करो" (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला) जैसे नारों के साथ चर्चा में रहने वाली पार्टी अब सवर्ण समाज को अपने साथ जोड़ रही है. उदाहरण के तौर पर मगध क्षेत्र के प्रभावशाली भूमिहार नेता जगदीश शर्मा के बेटे राहुल शर्मा ने हाल ही में आरजेडी का दामन थामा है. चर्चा है कि उन्हें घोसी सीट से टिकट मिल सकता है, जो वर्तमान में माले के रामबलि सिंह यादव के पास है.
हालांकि, यह फैसला महागठबंधन के भीतर कुछ विवाद पैदा कर सकता है. माले समर्थकों और यादव वोटरों में इस बदलाव से नाराजगी की आशंका है. फिर भी तेजस्वी यादव ने जोखिम उठाने का फैसला किया है ताकि भूमिहार समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत हो सके.
पुराने चेहरों से दूरी
आरजेडी ने पुरानी राजनीति और विवादित चेहरों से दूरी बनाने का भी संकेत दिया है. नवादा के दबंग नेता अशोक महतो, जो कभी लालू यादव के संरक्षण में राजनीति में आए थे, अब पार्टी से किनारा कर लिए गए हैं. 2005 में कांग्रेस के पूर्व मंत्री राजो सिंह की हत्या और नवादा जेल ब्रेक कांड में आरोपी रहे मेहतो को हाल ही में राबड़ी आवास में प्रवेश तक नहीं दिया गया. यह कदम पुरानी छवि को छोड़कर नई दिशा की ओर बढ़ने का संदेश देता है.
अन्य भूमिहार चेहरों का साथ
बेगूसराय क्षेत्र में भी आरजेडी ने बड़ा दांव खेला है. सूरजभान सिंह के अलावा, मठहानी सीट से पूर्व विधायक बोगो सिंह और परवत्ता के विधायक डॉक्टर संजीव जैसे प्रभावशाली भूमिहार चेहरे भी आरजेडी के साथ हैं. लालगंज, केसरिया, गोविंदगंज और लखीसराय जैसी सीटों पर भी भूमिहार उम्मीदवारों को टिकट देने की चर्चा है. यह रणनीति न केवल सवर्ण वोटों को आकर्षित करने की कोशिश है, बल्कि बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती भी है.
क्या तेजस्वी का दांव होगा कामयाब?
तेजस्वी यादव की यह रणनीति बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव ला सकती है. सवाल यह है कि क्या सवर्ण कार्ड खेलकर आरजेडी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच पाएगी? क्या भूमिहार समुदाय का समर्थन महागठबंधन को मजबूती देगा? यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नया समीकरण बिहार विधानसभा चुनाव में कितना असर दिखाता है.
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