'लेखकों के लिए नया आकाश बना सोशल मीडिया'... पटना 'उन्मेष' में डॉ वर्तिका नन्दा ने कहीं ये सब बात

पटना में साहित्य अकादमी के 'उन्मेष' उत्सव में डॉ. वर्तिका नन्दा ने कहा कि इंटरनेट मीडिया साहित्य के लिए च्यवनप्राश जैसा है. जानें कैसे सोशल मीडिया ने लेखन और प्रकाशन की दुनिया बदल दी.

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Unmesh Festival Patna(फोटो- अमित आनंद)

न्यूज तक डेस्क

26 Sep 2025 (अपडेटेड: 26 Sep 2025, 05:59 PM)

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साहित्य अकादमी ने पटना में आयोजित 'उन्मेष' उत्सव के जरिए देश-विदेश के साढ़े पांच सौ से ज्यादा कवियों और लेखकों को एक मंच पर इकट्ठा किया है. यह साहित्यिक आयोजन सम्राट अशोक कन्वेंशन सेंटर में हो रहा है, जहां बिहार की कला और संस्कृति की झलक भी दिख रही है. उत्सव के दौरान, शुक्रवार को 'इंटरनेट मीडिया और साहित्य' विषय पर एक खास सत्र आयोजित हुआ.

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इस सत्र में मशहूर लेखक, जेल सुधारक और लेडी श्रीराम कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. वर्तिका नन्दा ने अपनी राय रखते हुए कहा कि साहित्य के लिए इंटरनेट मीडिया ठीक च्यवनप्राश की तरह है. जानें इंटरनेट मीडिया ने साहित्य को कैसे बदला है, इसको लेकर  डॉ. नन्दा ने क्या तर्क दिए?

नए लेखकों को मंच: इस माध्यम से अनजाने लेखकों के लिए नए पन्ने खुल गए हैं.

दूरी कम हुई: उंगलियों के दौड़ने (टाइपिंग) से छोटे शहरों और बड़े शहरों के बीच की दूरी कम हो गई है.

प्रकाशकों को लाभ: छोटे प्रकाशकों को अपनी बात बड़ी आबादी तक पहुंचाने का जरिया मिल गया है.

हर कोई लेखक: इंटरनेट मीडिया ने यह एहसास कराया है कि हर कोई लेखक, कवि, कलाकार और प्रकाशक बन सकता है.

वर्तिका नन्दा ने इस मंच के फायदे और साथ ही इससे जुड़ी कुछ समस्याओं पर भी बात की-

सिटिजन जर्नलिस्ट: इंटरनेट मीडिया ने सिटिजन जर्नलिस्ट पैदा किए हैं.

तुरंत प्रतिक्रिया: अब लेखकों को अपने काम पर तुरंत प्रतिक्रिया मिल जाती है.

चुनौती: उन्होंने सवाल उठाया कि एक ही दिन कई लेखकों की किताब बेस्ट सेलर कैसे हो सकती है? उन्होंने कहा कि ऐसे लोग भी बड़े लेखक बन गए हैं, जो 'लिखने के अलावा कुछ भी कर सकते हैं.'

इस सत्र की अध्यक्षता गौरहरि दास ने की, जबकि उत्पल कुमार और आर वेंकटेश वक्ता के रूप में शामिल हुए. कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन की पूर्व ऐंकर जसलीन बोहरा ने किया.

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