कार जरूरत के अलावा शौक की भी चीज है. कई बार सोशल स्टेटस के दबाव में भी लोग कार खरीदते हैं. इस दबाव में अपने बजट से बाहर जाकर महंगी कारले आते हैं और फिर वित्तीय दबाव का सामना करने करने पर मजबूर हो जाते हैं. आजकल आसान किस्तों और कम डॉउन पेमेंट पर कार खरीदने के ऑफर खूब आ रहे हैं. अब सवाल ये है कि कार लोन पर लेना चाहिए या सेविंग के पैसे से? कार का बजट क्या होना चाहिए? कार की EMI कितने साल का रखना ठीक रहेगा.
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इसी उहापोह में सुनील भी हैं. सुनील एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं. मंथली सैलरी 1 लाख 60 हजार रुपए के करीब है. सुनील को 10 लाख की कार पसंद आ रही है. वे इसमें 2 लाख रुपए डाऊन पेमेंट और 8 लाख रुपए का लोन लेना चाहते हैं. सुनील के सामने दुविधा है कि कार अपने सेविंग्स के पैसों से लें या लोन लें. Personal Finance की इस सीरीज में हम कार खरीदने को लेकर वो सभी बातें बताने जा रहे हैं जो सवाल मन को परेशान करते हैं.
8 लाख का कार लोन लेते हैं तो...
- ब्याज दर (9 फीसदी औसतन)
- साल: 5
- कुल पैसे: 9,96,401
- ब्याज: 1,96,401
- लोन प्रोसेसिंग फीस: 5000 (औसतन)
यानी 10 लाख की कार पर सुनील को 5 साल में करीब 2 लाख रुपए ज्यादा देने पड़ेंगे. सुनील के मन में दुविधा है कि इस 2 लाख रुपए को बचाने के लिए क्या कार कैश में लेना चाहिए? तो आइए समझते हैं कार खरीदने की पूरी गणित...
कार का सही बजट कैसे तय हो
- इसके लिए 50% का नियम लगाइए.
- सुनील की सालाना सैलरी 19,20,000 रुपए.
- सुनील अधिकतम 10 लाख की कार ले सकते हैं.
डाऊन पेमेंट कितना सही रहेगा ?
- इसके लिए "20/4/10 रूल" है.
- इसमें कार के अमाउंट का 20 फीसदी डाऊन पेमेंट करना होगा.
- लोन अमाउंट 4 साल रखना ज्यादा बेहतर.
- 10 फीसदी खर्च ईंधन और मेंटिनेंस के लिए रखना होगा.
- डाऊन पेमेंट: 2 लाख रुपए
- लोन अवधि: 4 साल
- मंथली EMI: 19,908
- 4 साल में कुल अमाउंट: 9,55,586
- कुल ब्याज: 1,55,586
लोन पर कार लें या कैश में?
सुनील के पास 10 लाख रुपए हैं और वे 4 साल में 1,55,586 इंट्रेस्ट बचाने के लिए कैश पर जाना चाहते हैं? सुनील लोन लेकर और फायदा उठा सकते हैं- कैसे?
- 8 लाख रुपए FD कर सकते हैं.
- अवधि: 4 साल
- ब्याज दर 6.6 फीसदी
- कुल अमाउंट- 10,39,461
- ब्याज- 2,39,461
- कार पर ब्याज के मुकाबले मुनाफा- 84,000 रुपए
सवाल: कार लोन पर ब्याज ज्यादा और FD पर कम फिर रिवर्ट में FD पर फायदा कैसे?
जवाब: दरअसल कार की EMI चुकता करने पर प्रिंसिपल अमाउंट घटता है जिससे इंटरेस्ट भी घटता जाता है. वहीं FD पर ब्याज प्रिंसिपल अमाउंट से जुड़कर बढ़ता है जिससे उसमें मिलने वाला रिटर्न भी बढ़ता जाता है.
सुनील अगर ये रणनीति अपनाते हैं तो
- अपनी पूरी सेविंग्स कार पर तुरंत खर्च करने की बजाय उसे बचा सकते हैं.
- उसका इस्तेमाल कर न केवल कार लोन पर लगने वाली ब्याज की भरपाई कर सकते हैं बल्कि उससे ज्यादा रिटर्न पा सकते हैं.
- ये अमाउंट इमर्जेंसी फंड की तरह बैंक में रहेगा, जिससे सुनील का आत्मविश्वास बना रहेगा.
- लोन लेने से ने केवल इनकम टैक्स में वे छूट पा सकते हैं बल्कि समय-समय पर उसे पे कर अपना सिबिल स्कोर भी मजबूत कर सकते हैं.
- लोन पर लेते समय अपने बजट से थोड़ा ज्यादा बढ़कर वे उस कार को ले सकते हैं जिसे कैश में नहीं ले पाते.
निष्कर्ष
चूंकि कार खरीदना एक निवेश नहीं, बल्कि खर्च (liability) होता है. ये बात ज़्यादातर फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स मानते हैं. कार की जब तक EMI पूरी होगी तब तक उसकी वैल्यू घट जाएगी. उन 4 सालों में उसपर ईंधन और मेंटिनेंस पर भी खर्च होगा. चूंकि कार फैमिली कंफर्ट का विषय है. ऑफिस आने-जाने में कंफर्ट होती है. यदि आप बिजनेस में हैं तो ये अपके लिए उपयोगी. घर में बुजुर्ग और बच्चे हैं तो कार उपयोगी साबित होती है.
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