Hisaab Kitab: शेयर बाजार का खेल क्यों बिगाड़ रहे हैं विदेशी निवेशक? वजह जान चौंक जाएंगे

FII यानी Foreign Institutional investor शेयर बेच रहे हैं.जनवरी में अब तक क़रीब 60 हज़ार करोड़ रुपये के शेयर बेच चुके हैं. भला हो Mutual Fund में हर महीने SIP से पैसे लगाने वाले हमारे देश के लोगों का जिन्होंने बाज़ार सँभाल रखा है.

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News Tak Desk

• 05:00 PM • 26 Jan 2025

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Foreign Institutional Investor: नया साल शेयर बाज़ार के लिए अच्छा नहीं रहा है. शुक्रवार को लगातार तीसरे हफ़्ते Nifty 50 नीचे बंद हुआ है. इसका बड़ा कारण है FII यानी Foreign Institutional investor शेयर बेच रहे हैं.जनवरी में अब तक क़रीब 60 हज़ार करोड़ रुपये के शेयर बेच चुके हैं. भला हो Mutual Fund में हर महीने SIP से पैसे लगाने वाले हमारे देश के लोगों का जिन्होंने बाज़ार सँभाल रखा है. नहीं तो और गिर जाता बाज़ार.

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FII यानी विदेशी निवेशकों का पैसा शेयर बाज़ार में पिछले 25 सालों में उतार चढ़ाव का बड़ा कारण रहे हैं. पिछले 25 साल में सिर्फ़ तीन बार उन्होंने पूरे कैलेंडर साल में ख़रीदने से ज़्यादा बेचा है, 2024 में यह नौबत आ सकती थी . फिर भी दो हज़ार करोड़ रुपये की ख़रीदारी हुई क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले ख़रीददारी ज़्यादा हुई थी. सितंबर से वो बेचने पर उतर आए. इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय शेयर बाज़ार में FII की होल्डिंग्स अब तक के सबसे निचले स्तर पर हैं.

तो सवाल है कि विदेशी निवेशकों को भारत का शेयर बाज़ार पसंद क्यों नहीं आ रहा है. मोटे तौर पर तीन कारण हैं.

पहला कारण है कंपनियों का मुनाफ़ा नहीं बढ़ना. अर्थव्यवस्था में मंदी की आहट का असर कंपनियों के मुनाफ़े पर भी पड़ रहा है. शेयरों के भाव तो आम तौर पर मुनाफ़े के अनुपात में घटते बढ़ते हैं. दिसंबर क्वार्टर के अब तक जो रिज़ल्ट घोषित हुए हैं उसमें मुनाफ़ा 8% बढ़ा है. पिछले साल यही ग्रोथ 15% थीं. कंपनियों की बिक्री नहीं बढ़ रही है. सितंबर की तिमाही में 3400 कंपनियों की बिक्री 1.2% बढ़ी है जो महंगाई की दर से भी कम है. ऐसे में शेयर विदेशी निवेशकों को महँगे लग रहे हैं.

दूसरा कारण है अमेरिका में नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप. विदेशी निवेशकों को लगता है कि ट्रंप के आने के बाद से अमेरिका के बाज़ार में ज़्यादा रिटर्न मिलेगा बजाय भारत जैसे Emerging Market में . ट्रंप अमेरिका आने वाले सामान पर टैरिफ़ लगाने की धमकी दे रहे हैं उसका नुक़सान भारत को भी होगा. सॉफ़्टवेयर कंपनियों को भी दिक़्क़त आ सकती है.

इस सबके बीच रुपये का गिरना तीसरा कारण है. विदेशी निवेशक ख़रीदते तो डॉलर में हैं लेकिन जब बेचते हैं उन्हें रुपये मिलते हैं. फिर रुपये को डॉलर में बदल कर अपने देश ले जाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ विदेशी निवेशकों ने ₹100 के शेयर को साल भर पहले ख़रीदा था और आज उसी भाव पर भी बेचे तो उन्हें ₹97 ही मिलेंगे यानी 3% तक घाटा हो जाएगा. रुपया और गिरेगा यह भी बिकवाली का एक कारण है.

ऐसा नहीं है कि विदेशी निवेशक हमेशा के लिए भाग गए हैं. अभी भी शेयर बाज़ार में लिस्ट कंपनियों की क़ीमत का 16% उनके पास हैं. जब उन्हें लगेगा कि शेयरों की क़ीमत कम हो गई रहा या अर्थव्यवस्था में तेज़ी आने वाली है तो वो लौट जाएँगे. हम सबकी तरह उनकी नज़र भी शनिवार को पेश होने वाले बजट पर रहेगी.

इनपुट-मिलिंद खांडेकर

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