छत्तीसगढ़ के माओवादी प्रभावित इलाकों से जान बचाकर निकले हजारों आदिवासी परिवारों के सामने अब एक नई परेशानी खड़ी हो गई है. जिन लोगों ने हिंसा और डर के माहौल से निकलकर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में शरण ली थी, उनके वोट डालने के अधिकार पर अब संकट मंडरा रहा है.
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कैसे शुरू हुई परेशानी
चुनाव आयोग की तरफ से चलाए जा रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के दौरान इन विस्थापित आदिवासियों के नाम छत्तीसगढ़ की वोटर लिस्ट से हटाए जा रहे हैं. आरोप है कि बूथ लेवल अधिकारी इन्हें नॉन-रेजिडेंट बताकर बिना किसी पूर्व सूचना के वोटर लिस्ट से बाहर कर रहे हैं.
इन परिवारों का कहना है कि वे कोई शौक से गांव छोड़कर नहीं गए थे. लगभग 10 से 15 साल पहले माओवादी हिंसा के चलते उन्हें अपना घर-बार छोड़ना पड़ा था. उनके अनुसार उस वक्त न तो प्रशासन ने इनका ठीक से सर्वे किया और न ही इन्हें कभी यह बताया गया कि उनका दर्जा क्या होगा.
नहीं दी जा रही कोई नोटिस
सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि नाम काटने से पहले न तो किसी को नोटिस दिया गया और न ही अपनी बात रखने का मौका. कई लोगों को तब पता चला जब उन्हें वोटर लिस्ट में अपना नाम ही नहीं मिला.
इस मामले को लेकर चुनाव आयोग को औपचारिक शिकायत दी गई है. शिकायत में कहा गया है कि यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 का खुला उल्लंघन है क्योंकि कानून साफ तौर पर कहता है कि किसी भी मतदाता का नाम बिना सूचना और सुनवाई के नहीं हटाया जा सकता.
मजबूरी में बाहर रहना अपराध नहीं
शिकायत में यह भी साफ किया गया है कि हिंसा या संघर्ष के कारण अस्थायी रूप से किसी और राज्य में रहना किसी का वोटिंग अधिकार खत्म नहीं कर सकता. विस्थापित लोगों के लिए अलग और संवेदनशील व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर न हो जाएं.
आगे और बढ़ सकता है संकट
इस बात की आशंका जताई जा रही कि जब तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में SIR की शुरुआत होगी तो वहां भी इन विस्थापित आदिवासियों के नाम काटे जा सकते हैं. इसकी वजह साफ है, ज्यादातर लोगों के पास वहां के स्थायी निवास से जुडे डॉक्यूमेंट नहीं हैं. ऐसे में हालात ऐसे बन सकते हैं कि वे न तो छत्तीसगढ़ में वोट दे पाएंगे और न ही वर्तमान निवास स्थान पर.
चुनाव आयोग से क्या मांग
अदिवासियों ने शिकायत में चुनाव आयोग से तुरंत इस प्रक्रिया को रोकने की मांग की गई है. कहा गया है कि बिना जमीनी जांच के विस्थापित आदिवासियों के नाम हटाने पर रोक लगाई जाए. साथ ही छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के साथ मिलकर एक संयुक्त सर्वे कराया जाए, ताकि राज्य से बाहर रह रहे विस्थापित परिवारों की सही पहचान हो सके.
हिंसा से बचने के लिए घर छोड़ने वाले इन लोगों के सामने अब सवाल सिर्फ रहने का नहीं, बल्कि लोकतंत्र में अपनी आवाज बचाने का भी है.
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