कागजों तक ही सिमट कर रह गई है दिल्ली की लाडली योजना! 15 साल में 60% कम हुए लाभार्थी, RTI से हुआ खुलासा

दिल्ली सरकार की 'लाडली योजना' के लाभार्थियों की संख्या 15 सालों में करीब 60% घट गई है. RTI से मिले आंकड़ों के अनुसार, जागरूकता की कमी और लड़कियों के स्कूल छोड़ने को इसकी मुख्य वजह बताया जा रहा है.

Representative Image (Photo Ai)
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न्यूज तक

• 06:50 PM • 06 Jul 2025

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साल 2008 में दिल्ली सरकार ने बेटियों को सशक्त बनाने और लिंग असमानता को कम करने के लिए 'लाडली योजना' की शुरुआत की थी, लेकिन अब इसी योजना की सफलता मुश्लिकल में दिख रही है. दरअसरल हालिया RTI से खुलासा हुआ है कि पिछले 15 सालों में इस योजना के लाभार्थियों की संख्या में करीब 60% की भारी गिरावट आई है. यह आंकड़ा चिंताजनक है और कई सवाल खड़े करता है.

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आंकड़ों की जुबानी

योजना की शुरुआत में यानी 2008-2009 में करीब 1.25 लाख बेटियों को इसका लाभ मिला था. लेकिन, 2024-25 आते-आते यह संख्या घटकर सिर्फ 53,000 रह गई. यह लगभग 58% की कमी है और पिछले पांच सालों में यह दूसरी सबसे कम लाभार्थी संख्या है. आंकड़ों की मानें तो साल 2019-2020 में तो यह संख्या 30,192 तक सिमट गई थी. जबकि योजना शुरू होने से लेकर 2025 तक कुल 13.5 लाख से ज्यादा लड़कियों का पंजीकरण हुआ है.

क्यों घट रही है संख्या?

 लड़कियों का स्कूल छोड़ना: इस गिरावट के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं. महिला एवं बाल विकास विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इसका एक बड़ा कारण लड़कियों का स्कूल छोड़ना है. 'लाडली योजना' के तहत मिलने वाली राशि तभी मिलती है जब लड़की स्कूल में पढ़ रही हो. अगर वह पढ़ाई छोड़ देती है तो उसे योजना का लाभ मिलना बंद हो जाता है.

जागरूकता की कमी: इसके अलावा, जागरूकता की कमी भी एक बड़ी वजह है. कई परिवारों को इस योजना के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, या वे समय पर अपने पंजीकरण का नवीनीकरण नहीं करा पाते. अधिकारी ने बताया कि इस साल जनवरी तक, लगभग 1.86 लाख लाभार्थियों ने लाडली योजना के तहत लाभ का दावा ही नहीं किया, जबकि 1.66 लाख ने या तो अपना आवेदन नवीनीकृत नहीं कराया या उन्होंने स्कूल छोड़ दिया.

क्या है 'लाडली योजना'?

'लाडली योजना' के तहत दिल्ली सरकार पात्र लड़कियों को चरणबद्ध तरीके से 35,000 से 36,000 रुपये की वित्तीय सहायता देती है. यह राशि लड़की के नाम पर एक बैंक खाते में जमा रहती है और उसके 18 साल पूरे होने पर ही निकाली जा सकती है. इसका मकसद लड़कियों की शिक्षा और उनके भविष्य को सुरक्षित करना है.

लाभार्थियों की संख्या में यह लगातार गिरावट सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए. यह दिखाता है कि या तो योजना का प्रचार-प्रसार ठीक से नहीं हो रहा है, या फिर इसमें कुछ ऐसे व्यावहारिक दिक्कतें हैं जिनके चलते लोग इसका पूरा फायदा नहीं उठा पा रहे.

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