बाल दिवस के मौके पर जिला प्रशासन, गुरुग्राम और राहगीरी फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से "हमारी हवा, हमारी ज़िंदगी" कार्यक्रम का आयोजन किया.गुरुग्राम स्थित म्यूजियो कैमरा सेंटर फॉर द फ़ोटोग्राफ़िक आर्ट्स में आयोजित इस महत्वपूर्ण पैनल चर्चा का उद्देश्य शहर के बच्चों की आवाज को बुलंद करना और बढ़ते वायु प्रदूषण संकट पर प्रशासन का ध्यान आकर्षित करना था.
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कार्यक्रम में पांच बाल पैनलिस्टों के साथ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और चिकित्सा विशेषज्ञ शामिल हुए. बच्चों ने हाथों से बनाए गए पोस्टरों के साथ भावनात्मक अनुभव साझा किए और बताया कि जहरीली हवा उनके स्वास्थ्य, बाहरी खेलकूद और पढ़ाई पर कितना गंभीर असर डाल रही है. बच्चों ने प्रशासन से इस समस्या के दीर्घकालिक समाधान जैसे- बेहतर निगरानी, कड़े नियमों का पालन और हरित अवसंरचना के विस्तार की मांग की.
इससे पहले कार्यक्रम का शुभारंभ गुरुग्राम के डीसी अजय कुमार (आईएएस) ने किया. मेदांता अस्पताल में इंटर्नल मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ. रचिता चोपड़ा ने शहरी क्षेत्रों की खराब हवा का बच्चों के फेफड़ों और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर संक्षिप्त जानकारी दी. कार्यक्रम में शुभ्रा पुरी ने सांस्कृतिक प्रस्तुति दी.
पैनल चर्चा का संचालन पत्रकार और पुस्तक "ब्रीदिंग हेयर इज इंजूरियस टू योर हेल्थ" की लेखिका ज्योति पांडे लवकरे ने किया.
इस मौके पर गुरुग्राम के डीसी अजय कुमार ने आश्वासन देते हुए कहा कि सीएक्यूएम ने कक्षा 5 तक के बच्चों के लिए हाइब्रिड मॉडल में कक्षाओं पर प्रतिबंध लगाए हैं. कई तरह की गतिविधियां चल रही हैं, फिर भी कुछ कमियां हैं. मुझे पता है कि प्रवर्तन और परियोजना प्रबंधन की क्षमता बढ़ानी होगी. एनजीओ और आरडब्ल्यूए भी आगे आ रहे हैं, और मुझे पूरा विश्वास है कि मिलकर हम इस चुनौती का सामना करेंगे. हम नीतिगत ढांचे को और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
राहगीरी फाउंडेशन की सह-संस्थापक और नगारो की डायरेक्टर सारिका पांडा ने कहा कि बच्चों की हिम्मत यह दिखाती है कि स्वच्छ हवा मानव अधिकार का मुद्दा है, जिसके लिए इंजीनियरिंग आधारित समाधान जरूरी हैं. पैदल चलने योग्य सड़कों और लो-एमिशन पर हमारा काम सीधे तौर पर उसी वाहन प्रदूषण को कम करने पर केंद्रित है, जो बच्चों के स्वस्थ भविष्य में बाधा बन रहा है.
हेरिटेज स्कूल के नौवीं कक्षा के छात्र बिस्मान सिंह ने पराली जलाने पर संतुलित राय रखते हुए कहा कि प्रदूषण बढ़ने पर मुझे घुटन होती है और सांस लेना मुश्किल हो जाता है. पराली जलाने जैसा काम नहीं होना चाहिए, लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि किसानों के पास कई बार विकल्प नहीं होते. सरकार को उन्हें जरूरी साधन और मदद देनी चाहिए, तभी उनसे पालन की उम्मीद की जा सकती है.
साक्षरता इंडिया की छात्रा ज्योति ने छात्रों के सामने आने वाली मुश्किल बताई. उसने कहा कि जब मैं सुबह उठती हूं, तो मेरी मां कहती हैं कि इतनी ज्यादा प्रदूषण में स्कूल मत जाओ, लेकिन मुझे पढ़ाई भी करनी है. मैं कभी घर से पटाखे नहीं मांगती क्योंकि मुझे पर्यावरण की चिंता है- अब जरूरत है कि सिस्टम भी पर्यावरण की उतनी ही इज्जत करे जितनी हम करते हैं.
मेदांता अस्पताल की थोरैसिक सर्जन डॉ. रचिता चोपड़ा ने लंबे समय के स्वास्थ्य प्रभावों पर चेतावनी देते हुए कहा कि जब स्कूल 300 एक्यूआई में स्पोर्ट्स डे कराते हैं, तो यह मानकर चलें कि वे बच्चों को नुकसान पहुंचा रहे होते हैं. इससे न्यूरो-इन्फ्लेमेशन और एडीएचडी जैसी समस्याएं हो सकती हैं. हमें इस एयर क्वालिटी की स्थिति को हेल्थ इमर्जेंसी के रूप में स्वीकार करना होगा तभी स्थित को सुधारा जा सकेगा.
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