Haryana: हरियाणा की भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री और अंबाला कैंट से 7 बार के विधायक अनिल विज ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. मंत्री विज का कहना है कि वो अब अंबाला में जनता दरबार नहीं लगाएंगे और ग्रीवेंस कमेटी की बैठकों में भी शायद नहीं जाएंगे क्योंकि उनके आदेशों की पालना नहीं होती. अनिल विज ने आगे कहा कि अंबाला छावनी के लोगों ने उन्हें 7 बार विधायक बनाया है. यहां के लोगों के कामों के लिए यदि उन्हें किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की तरह आमरण अनशन पर भी बैठा पड़ा तो वो बैठेंगे.
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ग्रीवेंस कमेटी इंचार्ज के तौर पर अनिल विज के पास सिरसा और कैथल जिले का चार्ज है. अनिल विज ने कह दिया कि वो अब इन बैठकों में भी नहीं जाएंगे क्योंकि अधिकारी उनके नहीं सुनते.
विज ने जाहिर की नाराजगी
ये पहला मौका नहीं है जब अनिल विज ने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की है. इससे पहले अनिल विज पूरे हरियाणा का जनता दरबार लगाते थे. भाजपा के दूसरे कार्यकाल में उनके पास गृह और स्वास्थ्य मंत्रालय था, प्रदेश के लगभग सभी जिलों से लोग अंबाला में विज के जनता दरबार पहुंचकर अपनी समस्या रखते थे. जब मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सैनी को सीएम बनाया गया तो अनिल विज नाराज हो गए. उनको उम्मीद थी कि सीएम की कुर्सी के लिए पार्टी उनके नाम का चयन करेगी मगर ऐसा नहीं हुआ. नायब सैनी कैबिनेट में अनिल विज को फिर मंत्री बनाया गया मगर इस बार उन्होंने पूरे प्रदेश का जनता दरबार लगाना बंद कर दिया और खुद को अपने विधानसभा क्षेत्र अंबाला कैंट तक सीमित कर लिया. विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी अनिल विज अंबाला कैंट से बाहर प्रचार करने नहीं गए.
पहले खट्टर के साथ ठनी थी
मनोहर लाल खट्टर के सीएम रहते भी अनिल विज की उनसे बिगड़ गई थी. मनोहर लाल ने CID विभाग को गृह मंत्रालय से हटाकर अपने अंडर ले लिया था, उस समय विज के पास गृह और स्वास्थ्य मंत्रालय का चार्ज था. इसके बाद मनोहर लाल ने अपनी पसंद के अधिकारी को विज के स्वास्थ्य मंत्रालय में डायरेक्टर जनरल नियुक्त कर दिया. इस कदम के बाद तो अनिल विज और मनोहर लाल में ठन गई थी. विज ने करीब एक महीने तक स्वास्थ्य विभाग की फाइलों पर हस्ताक्षर नहीं किए और मंत्रालय का काम पूरी तरह ठप हो गया था. बाद में पार्टी हाईकमान ने हस्तक्षेप कर इन दोनों नेताओं के बीच सुलह कराई.
कौन हैं अनिल विज
गब्बर के नाम से मशहूर अनिल विज की गिनती भाजपा के सबसे मजबूत नेताओं में होती है. वो अंबाला कैंट से लगातार सातवीं बार जीतकर आए हैं. मनोहर लाल के दोनों कार्यकालों में वो कैबिनेट का हिस्सा रहे और अब नायब सैनी कैबिनेट में भी मंत्री हैं. 2014 जब भाजपा ने पहली बार हरियाणा में सरकार बनाई तो सीएम की रेस में अनिल विज का नाम सबसे ऊपर था. 2019 में भी उनके नाम की चर्चा चली, यहां तक कि नायब सैनी को बनाने से पहले भी अनिल विज का नाम सीएम पद के लिए चलने लगा था मगर उनके हाथ हर बार खाली रह गए. सियासी जानकारों का मानना है कि पूर्व सीएम और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने बेहद खूबसूरत तरीके से हर मौके पर अनिल विज को निपटाने का काम किया और उन्होंने ही अनिल विज को कभी सीएम की कुर्सी तक पहुंचे ही नहीं दिया.
विभागों में अचानक रेड करना और जनता दरबार लगाकर लोगों की समस्या सुनना अनिल विज की पहचान रही है और इसके चलते प्रदेश में भी उनकी लोकप्रियता बढ़ी है. लेकिन अब गब्बर ने साफ कह दिया है कि वो ना तो जनता दरबार लगाएंगे और ना ही ग्रीवेंस की बैठकों के जाएंगे. अब देखना ये होगा कि अनिल विज की इस नाराजगी से सीएम नायब सैनी कैसे निपटेंगे? क्या हाईकमान को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ेगा या फिर नायब सैनी गब्बर को मना लेंगे?
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