US Taliban News: हक्कानी नेटवर्क जिसका नाम सुनते ही अमेरिका का खूल खौल उठता था उस हक्कानी नेटवर्क ट्रंप प्रशासन अब मेहरबान हो रहा है. अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क के तीन बड़े नेताओं पर से लाखों डॉलर का इनाम हटा दिया है. इन तीन बड़े नेताओं में सबसे पहला नाम सिराजुद्दीन हक्कानी का है
जो तालिबान सरकार के आंतरिक मंत्री के रूप में कार्य कर रहे है. सिराजुद्दीन हक्कानी अमेरिका के मोस्ट वांटेड में से था. इसकी गिरफ्तारी के लिए सूचना देने पर अमेरिका ने 10 मिलियन डॉलर का इनाम घोषित कर रखा था. इसके अलावा हक्कानी नेटवर्क के दो अन्य सदस्यों, में अब्दुल अजीज हक्कानी और याह्या हक्कानी का नाम भी शामिल था.
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इन तीनों के नाम भी अमेरिकी विदेश विभाग की रिवार्ड्स फॉर जस्टिस वेबसाइट से हटा दिया गया है. हांलाकि बड़ी बात ये है कि इन तीनों को ही विशेष रूप से घोषित वैश्विक आतंकवादियों के रूप में नामित किया गया है. हक्कानी नेटवर्क को भी विदेशी आतंकवादी संगठन और एसडीजीटी इकाई दोनों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. वही जब अमेरिका के विदेश विभाग के प्रवक्ता से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अमेरिका अपनी नीति के तहत अपने पुरस्कार प्रस्तावों की "लगातार समीक्षा और परिशोधन" करता रहता है.
तालिबान राज को मान्याता देगा अमेरिका ?
पिछले कुछ दिनों में अमेरिका ने तालिबान राज से फिर से संपर्क स्थापित किया है. पिछले सप्ताह ही अमेरिकी बंधक दूत एडम बोहलर अफगानिस्तान दौरे पर थे. 2021 के बाद से ये पहली बार था जब अमेरिका का कोई उच्च अधिकारी अफगानिस्तान पहुंचा. और इसी दौरान बातजीत के परिणाम के रुप में अफगानिस्तान में अमेरिकी नागरिक जॉर्ज ग्लेज़मैन की रिहाई हुई, जिन्हें 2022 में एक निजी यात्रा के दौरान अफगानिस्तान में हिरासत में लिया गया था. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान साल 2020 में तालिबान के साथ दोहा समझौता किया था और ऐसे में अब भी उम्मदी है कि ट्रंप सैन्य टकराव के बजाय सौदेबाजी को प्राथमिकता दे सकते हैं.
अफगानिस्तान को लेकर क्या सोच रहे है ट्रंप?
ट्रंप का अफगानिस्तान पर प्लान अब तक पूरी तरह से साफ नहीं हुआ है. हालांकि, हाल के घटनाक्रमों, उनके पिछले कार्यकाल के अनुभव, और उनकी हालियां बयानों से इतना साफ है कि ट्रंप अफगानिस्तान पर कुछ तो जरूर करेंगे ही. टैरिफ, ट्रेड और रूस-यूक्रेन, यूरोप, मिडिल ईस्ट और चीन के साथ-साथ ट्रंप जरूर अफगानिस्तान को लेकर भी सोच रहे होंगे. खास कर कुछ प्वाइंटस पर जिसमें पहला है
- बगराम एयर बेस पर नियंत्रण की मंशा- ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान और बाद में यह संकेत दिया है कि वह अफगानिस्तान में छोड़े गए बगराम एयर बेस को वापस अमेरिकी नियंत्रण में लेना चाहते हैं. यह बेस 2021 में अमेरिकी सेना की वापसी के दौरान तालिबान के हाथों में चला गया था. ट्रंप का मानना है कि यह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, खासकर क्षेत्रीय सुरक्षा और चीन और रूस के लिए. हालांकि, तालिबान ने इस मांग को ठुकरा दिया है. इसके अलावा ट्रंप का ध्यान
- अमेरिकी हथियारों की वापसी पर भी होगा- ट्रंप ने जोर दिया है कि 2021 की वापसी के दौरान अफगानिस्तान में छोड़े गए लगभग 70 अरब डॉलर के अमेरिकी सैन्य उपकरणों को वापस लिया जाए. तालिबान ने तो अमेरिका की इस मांग को भी अस्वीकार कर दिया है.
ये दो प्रमुख प्वाइंट अमेरिका-तालिबान के बीच विवाद को बढ़ा सकता है. हांलाकि शुरूआती दौर में अमेरिका तालिबान के साथ सौदेबाजी को ही विकल्प बनाएगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम अफगानिस्तान में अमेरिका की वापसी भी देख सकते है. लेकिन अफगानिस्तान पर अमेरिका की प्राथमिकता सिर्फ इतनी नहीं है. सवाल तो अफगानिस्तान में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी है.
- चीन, रूस और ईरान जैसे देश तालिबान के साथ संबंध मजबूत कर रहे हैं
- चीन ने अफगानिस्तान में निवेश शुरू किया है, और रूस ने सुरक्षा सहयोग बढ़ाया है
2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद, चीन ने वहां अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश की है.. चीन ने तालिबान के साथ आर्थिक संबंध मजबूत किए, जैसे खनन सौदे जिसमें लिथियम और तांबा प्रमुख है. इसके अलावा चीन की योजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में अफगानिस्तान को शामिल करने की भी है. हां ऐसा हो सकता है कि अमेरिका चीन के खिलाफ भारत, जापान और मध्य एशियाई देशों जैसे सहयोगियों के साथ मिलकर काम करे ताकि अफगानिस्तान में चीन के एकछत्र प्रभाव को रोका जा सके.
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