NATO नहीं होता तो मैं मर गई होती या साईबेरिया के लेंबर कैंप में होती - राजदूत डायना मिकेविसीन

रूसी आक्रमण के खतरे को देखते हुए नाटो अपने सैनिकों की तैनाती रूसी सीमा के पास वाले देशों में कर रहा है. रूस इसे उकसावा बता रहा है. भारत तक से लिथुआनिया की राजदूत डायना मिकेविसीन ने खास बातचीत की और बताया कि कैसे उनकी जान रूस से नाटो ने बचाई.

NewsTak

अजीत सिंह

15 Apr 2024 (अपडेटेड: 17 Apr 2024, 01:31 PM)

follow google news

NATO VS RUSSIA : लिथुआनिया में नाटो सैनिकों की तैनाती के बाद फिर से रूस और नाटो में शामिल यूरोपीय देशों के साथ तनाव बढ़ रहा है. रूस की बयानबाजी और क्षेत्र में हथियारों की तैनाती से लिथुआनिया को खतरा महसूस हो रहा है. लिथुआनिया की राजदूत ने अपने घर की कहानी बताते हुए कहा कि, उनके परिवार पर इस युद्ध का बुरा असर पड़ा उनका बेटा हमले से डरा रहता था और अगर नाटो नहीं होता तो वो जिंदा नहीं होती.

Read more!

दिल्ली में लिथुआनिया की राजदूत डायना मिकेविसीन ने भारत तक से खास बातचीत में इस बात को स्वीकारा है.राजदूत डायना मिकेविसीन ने कहा कि हम पर 2 बार कब्जा हो चुका है और हम दूसरी बार दुनिया के नक्शे पर आए हैं.

नाटो में कब शामिल हुआ लिथुआनिया

29 मार्च 2004 को लिथुआनिया नाटो को हिस्सा बना. उस वक्त लिथुआनिया के साथ-साथ बुलगेरिया, इस्टोनिया, लताविया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवानिया भी नाटो में शामिल हुए थे.

नाटो की वजह से लिथुआनिया सुरक्षित

नाटो में लुथिआनिया के शामिल होने पर बात करते वक्त राजदूत डायना मिकेविसीन ने कहा कि मैं आपके सामने आज नहीं बैठी होती, मैं मर चुकी होती अगर लिथुआनिया नाटो का हिस्सा नहीं होता या फिर मैं साईबेरिया के किसी लेंबर कैंप में होती. इसलिए जहां तक नाटों के सैनिकों की तैनाती का सवाल है तो 20 साल हो गए हमें सदस्य बनें पर हमारे यहां कभी परमानेंट नाटो सैनिक तैनात नहीं रहे पर इस जंग ने हमें मजबूर किया और हमारे यहां सैनिकों की तैनाती हुई क्योंकि हमारा पड़ोसी देश बहुत अग्रेसिव है और रूस को देखते हुए ये करना जरूरी था,ये नाटो का उकसावा नहीं है. हम सब जानते हैं कि रूस का यूक्रेन पर आक्रमण करना बेवकूफी भरा फैसला था.

जर्मन सैनिक लिथुआनिया क्यों आए ?

रूस की इस बेवकूफी की वजह से पूरी दुनिया को सफर कर ना पड़ा और जहां तक रूसी खतरे को लेकर डर की बात है हम डरे नहीं सतर्क है और सावधान है. रूस फिर से कुछ कर सकता है इसलिए हमने सावधानी बरती है और जमर्न सैनिकों की तैनाती नाटों के कलेक्टिव डिफेंस का हिस्सा है.. क्योंकि हमें रूस को रोकना है क्योंकि रुस दोबारा से यूक्रेन की तरह हमला कर सकता है और लिथुआनिया सतर्क और सावधान है.

भारत तक से बातचीत में उन्होंने कहा कि हमारे पड़ोसी देश यूक्रेन में हर रोज लोगों पर बम गिराया जा रहा है जो हमसे केवल 500 किलोमीटर की दूरी पर है तो जाहिर है हमें डर लगेगा.

उन्होंने आगे कहा कि, हमारे छोटे से देश में 80 हजार से ज्यादा यूक्रेन के रिफ्यूजी अभी रह रहे हैं और उनका स्वागत लिथुआनिया ने बाहें खोलकर किया है. इस जंग के एक साल होने पर रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भाषण दिया जिसमें उन्होंने इसे स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन कहा पर दूसरे हिस्से में उन्होंने कई झूठ बोले, स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन के नाम पर नाजी और न जाने क्या- क्या कहा..दूसरे हिस्से में उन्होंने साफ-साफ कहा कि वो सोवियत यूनियन को दोबारा खड़ा करना चाहते हैं, रूस को ग्लोरी को वापस लाना चाहते हैं और स्लाविक देशों को जोड़ना चाहते हैं. इससे पुतिन की मंशा पर पता चलता है और ये चिंता का विषय भी है...ये रूस को रिस्टोर करने का एक असफल प्रयास है.

Diana Mickevičienė, Ambassador of the Republic of Lithuania in India

 

रूस को हराकर जीता यूक्रेन

यूक्रेन पर बात करते हुए राजदूत डायना मिकेविसीन ने कहा कि रूस को आखिर में क्या चाहिए-उन्हें यूक्रेन चाहिए जो उन्हें नहीं मिल रहा है और मुझे लगता है कि ये यूक्रेन की जीत है क्योंकि उन्होंने दिखा दिया है कि वो एक साथ हैं और एक अलग देश हैं. पिछले साल रूस ने कहा कि वो मोलदोवा को मान्यता नहीं देते पर सवाल ये है कि आखिर इस व्यक्ति(पुतिन) को किसने मान्यता देने का अधिकार दिया ?

 

नाटो नहीं होता तो मर चुकी होती- राजदूत डायना मिकेविसीन

रूस से खतरे का डर वाले सवाल का जवाब देते हुए राजदूत डायना मिकेविसीन ने कि हां हमें डर लगता है. उन्होंने कहा कि जंग के शुरुआती तीन महीनों तक मेरा बेटा रोता रहता था, वो पूछता था कि ये कब खत्म होगा. रूस के जंगी जहाज उस वक्त लगातार बमबारी करते थे. पर ये अच्छा है कि हम नाटो का हिस्सा है पर ये बहुत मुश्किल से हमें मिला है.

 

    follow google newsfollow whatsapp