जगदगुरु रामभद्राचार्य ने अचानक किया कुछ ऐसा, PM मोदी भी चौंक गए, फिर बोल दी ये बड़ी बात

PM Modi in Chitrakoot: पीएम नरेंद्र मोदी शुक्रवार को मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित चित्रकूट पहुंचे थे. यहां पर अरविंद भाई मफतलाल की 100वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने के बाद वे जगदगुरु रामभद्राचार्य की किताबों का विमोचन करने पहुंचे तो वहां कुछ ऐसा हुआ, जिसे देखने के बाद सभी हैरान रह […]

Jagadguru Rambhadracharya, PM Narendra Modi, Chitrakoot, PM Modi in Chitrakoot
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एमपी तक

27 Oct 2023 (अपडेटेड: 27 Oct 2023, 11:26 AM)

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PM Modi in Chitrakoot: पीएम नरेंद्र मोदी शुक्रवार को मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित चित्रकूट पहुंचे थे. यहां पर अरविंद भाई मफतलाल की 100वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने के बाद वे जगदगुरु रामभद्राचार्य की किताबों का विमोचन करने पहुंचे तो वहां कुछ ऐसा हुआ, जिसे देखने के बाद सभी हैरान रह गए. जगदगुरु रामभद्राचार्य ने पीएम मोदी के आते ही उनका सिर अपनी छाती से लगा लिया. उन्होंने ये काम इतनी तेजी से किया कि खुद पीएम मोदी भी हैरान रह गए.

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पीएम मोदी को भी थोड़ी देर के लिए समझ नहीं आया कि जगदगुरु क्या करना चाह रहे हैं लेकिन जब उन्होंने पीएम मोदी का सिर अपनी छाती से लगाया तो उनको समझ आया कि पीएम मोदी के लिए वे अपने प्रेम को जाहिर कर रहे हैं.

इसके बाद जगदगुरु ने पीएम मोदी और राज्यपाल मंगू भाई पटेल से गुजराती भाषा में बात की और उनका स्वागत किया तो यह सुनकर भी दोनों काफी हैरान हुए और उसके बाद पीएम मोदी भी जगदगुरु रामभद्राचार्य की तारीफ किए बिना नहीं रह सके.

पीएम मोदी ने जगदगुरु रामभद्राचार्य की तीन किताबों का विमोचन किया. इसके बाद पीएम मोदी ने कहा कि रामभद्राचार्य जी जन्म से नेत्रहीन हैं लेकिन नेत्रों के बिना भी उन्होंने संस्कृत साहित्य को और सनातन धर्म को ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए बड़ा योगदान दिया है. इसलिए हमारी सरकार ने जगदगुरु को पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा था.

पीएम मोदी ने कहा कि संस्कृत भाषा हमारे देश की पहचान

पीएम मोदी ने कहा कि दुनिया की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी में संस्कृत में रिसर्च होती है. गुलामी के एक हजार साल के कालखंड में भारत को तरह-तरह से उखाड़ने का प्रयास किया और इन्हीं में से एक था संस्कृत भाषा का पुरी तरह से विनाश. लेकिन आजादी के बाद जिन लोगों में गुलामी की मानसिकता थी, उन्होंने संस्कृत भाषा का उत्थान नहीं होने दिया. दूसरे देश की भाषा जानने को ये लोग पसंद करते हैं लेकिन संस्कृत को पिछड़नेपन की भाषा मानते हैं. संस्कृत केवल परंपराओं की भाषा नहीं है. ये हमारी पहचान की भाषा भी है. बीते 9 सालों में हमने संस्कृत के विकास में काफी काम किए हैं.

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