MP Election Analysis: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Vidhan sabha chunav 2023) नजदीक हैं. ऐसे में सभी पार्टियां जीत के लिए पुरजोर कोशिश कर रही हैं, लेकिन इस बार प्रदेश की सत्ता किसे मिलेगी? ये बड़ा सवाल है. इंडिया टुडे ग्रुप ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों (Madhya Pradesh Election) को लेकर विश्लेषण किया है. डेटा इंटेलिजेंस यूनिट ने 1962 से 2018 तक राज्य विधानसभा के चुनाव डेटा का विश्लेषण किया. इस डेटा में इन सालों में जीत के अंतर में दिलचस्प पैटर्न का खुलासा किया है, जो आगामी चुनावों की नब्ज टटोलने में मदद करेंगे.
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मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय राजनीति में बहुत महत्व रखते हैं. इन्हें 2024 के लोक सभा चुनावों के सेमीफाइनल के तौर पर भी देखा जा रहा है. मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव हमेशा से ही उतार-चढ़ाव भरा रहा है. मध्यप्रदेश में 1962 से लेकर 2018 तक के चुनावों का विश्लेषण किया है.
ऐसा समझें जीत का अंतर
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के इस खास विश्लेषण में सभी विधानसभा सीटों का वहां हुई जीत के अंतर के आधार पर किया गया है. इन्हें वोटों के अंतर के हिसाब से तीन हिस्सों कड़ी प्रतिस्पर्धा, स्पष्ट जीत और मिडिल ग्राउंड में बांटकर अब तक की जीत के आंकड़े पेश किए गए हैं.
कड़ी प्रतिस्पर्धा- एनालिसिस के मुताबिक, मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में 24 प्रतिशत विधानसभा सीटों पर मार्जिन पांच प्रतिशत से कम था. यानी की इन सीटों पर कड़ी टक्कर देखी गई. हर चौथी सीट का फैसला दमदार लोगों से होता है.
स्पष्ट जीत- एनालिसिस के मुताबिक आठ विधानसभा सीटों में से केवल एक सीट पर 30 प्रतिशत से अधिक जीत देखी गई. यानी कि 8 सीटों में से एक सीट मजबूत नेताओं के गढ़ों का संकेत है.
मिडिल ग्राउंड- 1964 से लेकर 2018 तक तीन में से एक विधानसभा सीट 5-15 प्रतिशत के अंतर के बीच थी. अर्थात इन सीटों पर मुकाबला कड़ा रहा लेकिन स्पष्ट नेतृत्व मिला.
राष्ट्रीय राजनीति में इसके मायने
मध्य प्रदेश में अब तक लगभग एक चौथाई चुनावी लड़ाई कांटे की टक्कर वाली रही है. जिसमें उम्मीदवारों ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को पांच प्रतिशत से भी कम अंतर से हराया. इन सीटों पर कांटे की टक्कर रही है. इसका मतलब यह है कि मोटे तौर पर तय की गई हर चार सीटों में से एक को सबसे कम बहुमत मिला. ये कड़ा मुकाबला प्रत्येक वोट के मूल्य को उजागर करता है और प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य को प्रदर्शित करता है. जैसा कि मध्य प्रदेश इस साल के अंत तक एक और चुनावी मुकाबले के लिए तैयार है, पिछले पैटर्न राज्य की राजनीतिक नब्ज का संकेत देते हैं. यह परिणाम राष्ट्रीय राजनीति के लिए संकटमोचक हो सकता है.
बीजेपी बनाम कांग्रेस
मध्य प्रदेश में इन दो राजनीतिक दिग्गजों की कहानी भाग्य के उतार-चढ़ाव में से एक है. शुरुआती दशकों में कांग्रेस का प्रभुत्व रहा, वहीं 20 वीं सदी के अंत में भाजपा शानदार रूप में उभरी. 21वीं सदी में दोनों पार्टियों को उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा है. 2003 और 2013 के चुनावों में भाजपा की ताकत स्पष्ट थी, लेकिन 2018 में कांग्रेस फिर से उभरी और प्रदेश की जनता ने मन बदल लिया. कम अंतर और उच्च दांव के साथ, आगामी चुनाव किसी के लिए भी खेल हो सकता है. जबकि दोनों दलों ने अपने-अपने हिस्से में कांटे की टक्कर देखी है.
भाजपा को निर्णायक जीत के अंतर के साथ अधिक सीटें मिलती दिख रही हैं, खासकर 10 से 15 प्रतिशत और पांच से 10 प्रतिशत के ब्रैकेट में. दूसरी ओर सबसे करीबी मुकाबले वाली सीटों पर कांग्रेस को मामूली बढ़त (पांच फीसदी से कम अंतर) है.
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