हीरे की चमक दूर से जितनी खूबसूरत दिखती है पन्ना की खदानों की हकीकत उतनी ही डरावनी है. यहां चमकते रत्न नहीं मिलते यहां मिलती है धूल, अंधेरा, भूख, और ऐसे टोटके जिन पर यकीन करना भी मुश्किल है. लोग कहते हैं हीरा किस्मत वालों को मिलता है पर पन्ना में तो किस्मत जगाने के लिए ऐसी रस्में की जाती हैं, जिनमें इंसान नहीं… मजबूरी कुचली जा रही है. यह वह दुनिया है जहां मजदूर उम्मीद लेकर खदान में उतरते हैं लेकि कई बार अपना सब कुछ खोकर बाहर निकलते हैं.
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वैसे तो मध्य प्रदेश के पन्ना में पूरे देश को चकाचौंध करने वाले हीरे निकलते हैं, लेकिन यह चमक दरअसल उन मजदूरों के खून-पसीने और दर्द से बनती है जो खदानों में दिन-रात पिसते हैं और सबसे डरावनी बात, हीरा मिलने के लिए यहां एक ऐसा टोटका किया जाता है, जिसके बारे में सुनकर ही किसी की भी हिम्मत जवाब दे जाए.
महिलाओं के शरीर से सौदा वाला टोटका
जब खदान में लंबे वक्त तक हीरा नहीं निकलता तो मजदूर और ठेकेदार कई तरह के टोटके करते हैं लोबान जलाना, खदान की नजर उतारना और पूजा-पाठ करना. लेकिन इनके बाद एक आखिरी और सबसे भयावह टोटका होता है. यह टोटका सुबह करीब 4 बजे किया जाता है. टोटके के वक्त अंधेरा होता है आसपास कोई नहीं होता और इसी समय महिला मजदूर को किसी पुरुष के साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है. ठेकेदार इसके बदले में थोड़े पैसे देता है.
एक मजदूर ने बताया, 'जब सारे टोटके फेल हो जाते हैं, तब ठेकेदार बोलता है कि किसी महिला के साथ जाकर संबंध बनाओ. इसके बाद दो-तीन दिन में हीरा मिल जाता है… ऐसा यहां माना जाता है.'
बुधवार - रविवार को होता है ये टोटका
उस मजदूर ने बताया कि उसे भी कहा गया था लेकिन उसने मना कर दिया. मजदूर ने बताया कि लड़की अनकंफर्टेबल थी, इसलिए मैंने नहीं किया. पर बाकी लोग करते हैं, क्योंकि मजबूरी बड़ी होती है. यहां काम करने वाली महिलाएं कहती हैं, 'बुधवार और रविवार को यह टोटका होता है. भगवान के जागने से पहले… कोई देखने से पहले… हमें मजबूर किया जाता है.'
किसी के हाथों में जख्म, तो किसी के पैरों में
सरकोहा और आसपास के इलाकों में कई छोटे-छोटे पट्टे हैं, जहां उथली खुदाई की अनुमति है. यहां सैकड़ों मजदूर काम करते हैं किसी के हाथ में पट्टी तो किसी के पैर पर जख्म लेकिन काम रुकता नहीं.
गोबर लीपी जमीन पर कंकड़ फैलाए जाते हैं, जैसे चावल में से पत्थर निकालते हैं. उम्मीद सिर्फ एक कि कहीं हीरा मिल जाए लेकिन इस उम्मीद की कीमत सबसे ज्यादा महिलाएं चुकाती हैं. ठेकेदार के डर से कोई खुलकर बोल नहीं पाता. हर महिला अपने अंदर एक ऐसा जख्म छुपाती है, जिसका कोई इलाज नहीं.
मिलती है ऐसा बीमारी जिसका नहीं कोई इलाज नहीं
हीरे की खदानों से आगे स्टोन माइन्स में हालात और खतरनाक हैं. पत्थर की धूल फेफड़ों में जाकर जम जाती है, और मजदूर धीरे-धीरे मरते जाते हैं. इस बीमारी का नाम है सिलिकोसिस.
एक सोशल वर्कर कहते हैं कि सिलिकोसिस वाले लोग ऐसे जीते हैं जैसे मौत का इंतजार कर रहे हों. सरकार उन्हें मुआवजे के नाम पर सिर्फ 3 लाख रुपये देती है जबकि बीमारी, दवाइयां और जिंदगी इससे कहीं ज्यादा कीमत मांगती है.
नहीं मिट रही गरीबी
कुछ मजदूरों को कभी-कभी बड़ा हीरा मिल भी जाता है. लेकिन उनकी जिंदगी में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आए हैं. अधिकांश मजदूर वहीं के वहीं रह जाते हैं गरीबी, मजबूरी और खामोशी में दबे हुए.अच्छे दिन की उम्मीद में लोग सुबह-सुबह कीचड़ भरी खदानों में उतरते हैं. ताकि एक छोटा-सा चमकता टुकड़ा उनके घर का चूल्हा जला सके.
पर सच यह है कि हीरे की चमक जितनी उजली है, उसकी तलाश उतनी ही अंधेरी. सबसे ज्यादा कीमत वही चुकाता है, जिसकी आवाज सबसे कमजोर है यहां की महिला मजदूर.
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