Ujjain: महाकाल की शाही सवारी, इसलिए शामिल होता है सिंधिया परिवार का सदस्य, खास है वजह

Ujjain baba mahakal: Mahakal Shahi Sawari: उज्जैन के महाकाल मंदिर (Mahakal Mandir) में बरसों पुरानी परंपरा के अनुसार आज (सोमवार) को बाबा महाकाल की भादों माह के दूसरे सोमवार को निकलने वाली शाही सवारी (Shahi Sawari) शाम 4 बजे पूजा-अर्चना के बाद मंदिर प्रांगण से निकाली गई. सवारी में चांदी की पालकी में भगवान महाकाल […]

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एमपी तक

11 Sep 2023 (अपडेटेड: 11 Sep 2023, 01:29 PM)

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Ujjain baba mahakal: Mahakal Shahi Sawari: उज्जैन के महाकाल मंदिर (Mahakal Mandir) में बरसों पुरानी परंपरा के अनुसार आज (सोमवार) को बाबा महाकाल की भादों माह के दूसरे सोमवार को निकलने वाली शाही सवारी (Shahi Sawari) शाम 4 बजे पूजा-अर्चना के बाद मंदिर प्रांगण से निकाली गई. सवारी में चांदी की पालकी में भगवान महाकाल श्री चंद्रमौलेश्वर स्वरूप में विराजित हैं. इसके अलावा हाथी पर मनमहेश, गरूड़ रथ पर श्री शिव तांडव प्रतिमा, नंदी रथ पर श्री उमा महेश जी के मुखारविंद, डोल रथ पर श्री होलकर स्टेट का मुखारविंद विराजित हैं. शाही सवारी नगर भ्रमण पर निकली है.

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शाही सवारी की खास बात ये है कि इसमें हर साल सिंधिया परिवार (Sindhiya Parivar) का एक सदस्य जरूर शामिल हाेता है और भगवान महाकाल की आरती करता है. इसके पीछे की वजह भी बड़ी खास है. 

क्या है इसके पीछे की खास वजह

उज्जैन (Ujjain) में सावन महीने में निकले वाली शाही सवारी की परंपरा की शुरुआत सिंधिया राजवंश (Sindhiya Rajvansh) से ही की गई थी, उस समय भी सिंधिया परिवार की ओर से भगवान महाकाल की सवारी के दौरान पूजा अर्चना और आरती की जाती थी. लेकिन पहले केवल दो या तीन सवारियां ही निकाली जाती थी. बाद में इसे बढ़ा दिया गया है. ऐसी मान्यता है कि सिंधिया राजवंश ने ही मंदिर का पुनिर्माण कराया था. दरअसल, मराठा साम्राज्य विस्तार के लिए निकले सिंधिया राजवंश के संस्थापक राणोजी सिंधिया की विजय यात्रा जब उज्जैन पहुंची तो उन्होंने महाकाल मंदिर का हाल देखकर दुख हुआ. जिसके बाद उन्होंने मंदिर का पुनिर्माण कराया था.

सालों से चली आ रही परंपरा!

जानकारों की माने तो ऐसा कहा जाता है कि सिंधिया राजवंश की तरफ से आज भी एक अखंड दीप महाकाल मंदिर में जलता है. इस अखंड दीप का खर्च भी सिंधिया परिवार के द्वारा उठाया जाता है. उज्जैन में शाही परंपरा की शुरुआत करने के बाद हर साल सिंधिया वंश के राजा इस पूजा में शामिल होते थे. तब से यह परंपरा चली आ रही है. ज्योतिरादित्य सिंधिया आज भी इस परंपरा को कायम किए हुए हैं.

इस बार 10 सवारियां निकाली गई

19 वर्षों बाद ऐसा महासंयोग आया रहा जब श्रावण मास में अधिक मास आ रहा है. जिसके कारण दो श्रावण होने की स्थिति बनी है. यही कारण है कि उज्जैन के बाबा महाकाल मंदिर से निकलने वाी सवारी हर साल की अपेक्षा इस बार ज्यादा निकाली गई हैं. इस बार 10 सवारियां निकाली गई हैं जिसमें बाबा महाकाल ने अलग-अलग रूपों में अपनी प्रजा को दर्शन दिये हैं.

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