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असम सरकार ने एक बड़ा और मानवीय फैसला लेते हुए निजी अस्पतालों पर नकेल कसी है. अब कोई भी निजी अस्पताल इलाज का बिल बकाया होने के नाम पर किसी मरीज के शव को दो घंटे से ज्यादा नहीं रोक पाएगा. यह जानकारी खुद मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कैबिनेट बैठक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी.
मुख्यमंत्री ने इस कदम को अमानवीय दबाव से मुक्ति दिलाने वाला बताया. उन्होंने कहा, "यह बेहद अमानवीय है कि अस्पताल शव को रोककर परिजनों पर दबाव बनाते हैं. अब ऐसा बिल्कुल नहीं होने दिया जाएगा."
नियमों का सख्ती से पालन अनिवार्य
नए नियम के अनुसार, मरीज की मृत्यु की पुष्टि होने के दो घंटे के भीतर शव को परिजनों को सौंपना होगा. बिल का भुगतान हुआ है या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. अगर अस्पताल इस तय सीमा का पालन नहीं करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.
शिकायत के लिए हेल्पलाइन '104'
मुख्यमंत्री सरमा ने बताया कि सरकार इस नियम का उल्लंघन रोकने के लिए 24x7 टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर 104 शुरू करेगी. इस नंबर पर कोई भी व्यक्ति शव रोके जाने की शिकायत दर्ज करा सकेगा.
शिकायत मिलते ही जिला स्वास्थ्य अधिकारी, स्थानीय पुलिस और अस्पताल की शिकायत निवारण समिति तुरंत हरकत में आएंगे. अगर शव को गलत तरीके से रोका गया है, तो संबंधित अधिकारी मौके पर पहुंचकर शव को परिजनों को सौंपेंगे और अस्पताल प्रशासन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करेंगे.
कड़े दंड का प्रावधान
यह नियम तोड़ने वाले अस्पतालों पर कड़ा दंड लगाया जाएगा. पहली बार दोषी पाए जाने पर अस्पताल का लाइसेंस 3 से 6 महीने के लिए निलंबित किया जा सकता है और 5 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जाएगा. यदि यह गलती दोबारा होती है, तो अस्पताल का पंजीकरण स्थायी रूप से रद्द कर दिया जाएगा.
हाथी-मानव संघर्ष को रोकने के लिए 'गजा मित्र योजना'
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, मुख्यमंत्री ने एक और महत्वपूर्ण फैसले की जानकारी दी. मानव और हाथी के बीच बढ़ते संघर्ष को कम करने के लिए 'गजा मित्र योजना' को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. यह योजना शुरुआत में आठ जिलों - गोलपाड़ा, उदलगुड़ी, नगांव, बक्सा, सोनितपुर, गोलाघाट, जोरहाट और बिस्वनाथ में शुरू की जाएगी. इसका उद्देश्य जंगली हाथियों के कारण होने वाले जान-माल के नुकसान और तनाव को कम करना है.
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