Bhimrao Ambedkar Birth Anniversary: भारत के इतिहास में कई आंदोलन हुए, लेकिन कुछ आंदोलन हुए जो सिर्फ विरोध नहीं था बल्कि समाज में बदलाव की नींव रखने वाला था. ऐसा ही एक ऐतिहासिक आंदोलन था "महाड़ सत्याग्रह"—जिसका नेतृत्व डॉ. भीमराव अंबेडकर ने किया और जिसने भारतीय समाज को झकझोर कर रख दिया.
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प्यास से पैदा हुई क्रांति
साल 1927. महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में महाड़ नाम का एक छोटा सा कस्बा था, जहां ‘अछूत’ समझे जाने वाले लोगों को सार्वजनिक जल स्रोतों से पानी पीने की अनुमति नहीं थी. वहां एक तालाब था – 'चवदार तालाब', जिसे नगरपालिका ने सार्वजनिक घोषित कर रखा था, लेकिन फिर भी दलितों को वहां से पानी लेने पर रोक थी. डॉ. अंबेडकर ने इसे केवल पानी का मुद्दा नहीं माना, बल्कि आत्म-सम्मान और बराबरी की लड़ाई का प्रतीक बनाया.
आंदोलन की शुरुआत
19 मार्च 1927 को डॉ. अंबेडकर ने हजारों अनुयायियों के साथ महाड़ में मार्च किया और तालाब के किनारे जाकर पानी पिया. यह कदम एक सामाजिक क्रांति की शुरुआत थी. उन्होंने कहा –"हमें सिर्फ पानी नहीं चाहिए, हमें इंसान का दर्जा भी चाहिए."
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तालाब से मंदिर तक
इस आंदोलन के बाद उच्च जातियों ने तालाब को "अपवित्र" बताकर उसे शुद्ध करने का नाटक किया. इसे देखकर अंबेडकर ने घोषणा की कि जब तक दलितों को मंदिरों में प्रवेश और बराबरी नहीं मिलेगी, वे शांत नहीं बैठेंगे. इस आंदोलन ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आजादी की लड़ाई के साथ-साथ समाज के अंदर की बेड़ियों को तोड़ना भी जरूरी है.
प्रभाव और विरासत
महाड़ सत्याग्रह ने दलित आंदोलन को एक नई दिशा दी. यह सिर्फ पानी के अधिकार की बात नहीं थी, बल्कि यह उस सोच के खिलाफ बगावत थी जो इंसान को जन्म के आधार पर नीचा समझती थी. डॉ. अंबेडकर ने यह साबित कर दिया कि सम्मान और अधिकार मांगे नहीं जाते, छीने जाते हैं—लेकिन अहिंसा और बुद्धि के रास्ते पर चलकर यह संभव है. आज जब हम डॉ. अंबेडकर की जयंती मनाते हैं, तो सिर्फ संविधान को याद करना ही काफी नहीं, बल्कि उन संघर्षों को भी जानना जरूरी है जो उन्होंने समाज में समानता लाने के लिए किए. महाड़ सत्याग्रह हमें याद दिलाता है कि बदलाव की शुरुआत एक बूंद से भी हो सकती है—अगर नेतृत्व अंबेडकर जैसा हो.
(इस खबर को तक न्यूज के साथ इंटर्नशिप कर रहे उत्पल कुमार ने लिखा है)
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