नेपाल में सरकार विरोधी प्रदर्शन के दौरान दो दिनों तक चले खूनी खेल, हिंसक झड़पे, आगजनी, लूटपाट, जेल ब्रेक जैसी घटनाओं के बाद प्रधानमंत्री को सत्ता से बेदखल होना पड़ा. राष्ट्रपति को सुरक्षित आर्मी बैरेक में रखा गया. बड़े नेता और मंत्री इधर-उधर जान बचाते नजर आए. ऐसे में देश में बेलगाम होते हालात को संभालने के लिए नेपाली सेना ने कमान संभाली और 24 घंटे के भीतर कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने में कामयाबी मिली.
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जंगी अड्डा पर पूरी दुनिया की नजर
पूरी दुनियां की नजर नेपाली सेना के मुख्यालय जिसे 'जंगी अड्डा' कहा जाता है वहां टिकी रही. इसका एक कारण यह भी था कि सेना के पास एक बड़ी जिम्मेदारी थी कानून व्यवस्था को बनाए रखना और नेपाल में अंतरिम सरकार का गठन करवाना. जेन जी प्रदर्शनकारियों से संवाद कायम करते हुए इस संवैधानिक और राजनीतिक संकट की घड़ी में ऐसे फैसले करना जिसे सभी स्वीकार करें.
लेकिन बिना नेता, बिना पार्टी संगठन, बिना किसी संगठित समूह में रहे इन प्रदर्शनकारियों की भावना का भी ध्यान रखना और देश की संसद और संविधान की सर्वोच्चता को कायम करना सेना के लिए एक बड़ी चुनौती थी. जहां काठमांडू की सड़कों पर सेना कानून व्यवस्था बनाने में जुटी हुई थी वहीं नेपाली सेना के प्रधान सेनापति महारथी अशोकराज सिग्देल जंगी अड्डा में राजनीतिक और संवैधानिक शून्यता को भरने का प्रयास करते रहे.
जंगी अड्डे से सियासी सक्रियता देख लोगों को लगा ये डर
जंगी अड्डा की राजनीतिक सक्रियता देख कर पुराने राजनीतिक दलों ने मुंह खोलना शुरू किया. सभी के मन में यह आशंका होने लगी थी कि इस विषम परिस्थिति का फायदा उठाकर प्रधान सेनापति कहीं सत्ता की कमान अपने हाथों में तो नहीं ले लेंगे? राजनीतिक दल के नेताओं को लग रहा था कि कहीं पाकिस्तान और बर्मा की तरह नेपाल में भी सैन्य शासन तो नहीं शुरू हो जाएगा? देश के लोकतंत्र को कुचल कर कहीं जंगी अड्डा से तो शासन व्यवस्था नहीं चलेगी?
इन सब आशंकाओं के बीच राजनीतिक दल, नागरिक समाज, कुछ विदेशी कूटनीतिक आयोग ये सभी मिलकर संविधान की रक्षा और संसद की सर्वोच्चता की गुहार लगाने लगे. इतना ही नहीं जेन जी के समूहों के साथ वार्ता कर समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयास कर रहे आर्मी मुख्यालय के बाहर सैन्य शासन नहीं चाहिए, सेना की सक्रियता नहीं चलेगी जैसे नारे लगने लगे. ऐसा लग रहा था मानो नेपाली सेना को विफल बना कर यहां कुछ और उपद्रव करने की साजिश की जा रही हो. राष्ट्रपति को सार्वजनिक करने की मांग उठने लगी. सेना पर तमाम तरह से आरोप लगाए जाने लगे.
जंगी अड्डे से राजनैतिक सक्रियता को शीतल निवास में किया शिफ्ट
मामले की गंभीरता को भांपते हुए आर्मी चीफ सिग्देल ने सेना की गरिमा को बनाए रखने के लिए जंगी अड्डा में राजनीतिक सक्रियता नहीं करने और शीतल निवास जो कि नेपाल के राष्ट्रपति का आधिकारिक सरकारी आवास है वहां शिफ्ट कर दिया. बीते रात से ही नेपाल का पावर सेंटर आर्मी मुख्यालय जंगी अड्डा से शिफ्ट होकर शीतल निवास पहुंच गया. अब सबका ध्यान राष्ट्रपति भवन शीतल निवास पर टिका है. राष्ट्रपति खुद अपनी सक्रियता में देश को संवैधानिक और राजनैतिक संकट से बाहर लाने का प्रयास कर रहे हैं.
जेन जी ने शीतल निवास में भी लगा दी थी आग
हालांकि राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रह चुके हैं. जेन जी प्रदर्शनकारियों लिए राष्ट्रपति भवन और स्वयं राष्ट्रपति के खिलाफ भी गुस्सा है जिसका नतीजा यह था कि मंगलवार 9 सितंबर को जिन सरकारी इमारतों को आग के हवाले किया गया उनके शीतल निवास भी एक था. इस समय उसी जले हुए भवन के खंडहर जिसके पीछे का हिस्सा बचा हुआ है वहां से राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल देश की सत्ता का बागडोर चला रहे हैं और नई सरकार बनाने की कवायद कर रहे हैं.
अब सवाल यह उठता है कि क्या राष्ट्रपति के समाधान को जेन जी के सभी समूहों को मान्य होगा? क्या राष्ट्रपति पौडेल का फैसला सर्व स्वीकार्य होगा? क्या संसद की सर्वोच्चता और संविधान की साख बनाए रखने में सफल होते हैं ? पूरी दुनियां की नजर इस समय जंगी अड्डा से हट कर शीतल निवास राष्ट्रपति भवन पर जा टिकी है.
स्टोरी पंकज दास
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