Operation Sindoor Latest Updates:ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों को विभिन्न देशों में भेजने का फैसला किया है, जिससे भारत का पक्ष वैश्विक मंच पर रखा जा सके. इनमें शशि थरूर, रविशंकर प्रसाद(बीजेपी),, संजय कुमार झा (जेडीयू) , बैजन्त पांडा (बीजेपी), कनिमोझी (डीएमके), सुप्रिया सुले (एनसीपी, एसपी) और श्रीकांत शिंदे (शिवसेना) जैसे नेता शामिल हैं. हालांकि, इस चयन प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं, खासकर तब जब कांग्रेस के सुझाए गए नामों को नजरअंदाज कर शशि थरूर और सलमान खुर्शीद को चुना गया.
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कांग्रेस के नामों की अनदेखी
कांग्रेस ने आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, सैयद नसीर हुसैन और राजा बरार जैसे अनुभवी नेताओं के नाम सुझाए थे, लेकिन इनमें से किसी को शामिल नहीं किया गया. इसके बजाय, बीजेपी ने शशि थरूर को अमेरिका जाने वाले प्रतिनिधिमंडल की कमान सौंपी और सलमान खुर्शीद को भी शामिल किया. कांग्रेस नेतृत्व को फोन कर चार नाम मांगने के बावजूद उनकी सूची को दरकिनार करने पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह विपक्षी एकता को कमजोर करने की रणनीति है.
शशि थरूर और सलमान खुर्शीद का चयन
शशि थरूर के चयन पर विवाद तब और बढ़ गया जब यह सामने आया कि बीजेपी ने उनके नाम पर जोर दिया. थरूर के हालिया बयानों और केरल में अडानी समूह के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा किया था. इस दौरान प्रधानमंत्री तंज ककसा था कि जहां तक मैसेज भेजना था मैसेज भेज दिया है. यहां थरूर को कांग्रेस निकालना नहीं चाहती. वह चाहती है कि शशि थरूर खुद पार्टी से इस्तीफा देकर चले जाए.
लेकिन शशि थरूर जानते हैं कि पार्टी से इस्तीफा देने पर उन्हें लोकसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ेगी. वहीं बीजेपी को लगता है कि शशि थरूर को पार्टी में लेने की क्या जरूरत है. वहीं कांग्रेस में ही रहे. वहीं से अपने इस तरह के बयान देते रहे और जिससे कांग्रेस की ब्रैकेट में सेवा होती रहे और जिससे बीजेपी की ब्रैकेट में सेवा होती रहे. सलमान खुर्शीद का चयन भी उनके विवादास्पद बयानों और हालिया किताब में कांग्रेस की जातीय जनगणना नीति पर टिप्पणी के कारण चर्चा में है.
प्रभावित क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं?
प्रतिनिधिमंडल में जम्मू-कश्मीर, जहां पहलगाम में हमला हुआ, या गुजरात और राजस्थान जैसे सीमावर्ती राज्यों के सांसदों को शामिल नहीं किया गया. पंजाब से केवल विक्रमजीत सिंह साहनी को चुना गया, जबकि ओवैसी, फारूक अब्दुल्ला, अखिलेश यादव की पार्टी या टीएमसी जैसे प्रमुख विपक्षी दलों को जगह नहीं दी गई. यह सवाल उठता है कि क्या यूपी और बंगाल में आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर यह चयन किया गया.
राजनीतिक तोड़फोड़ का खेल?
कई लोग इसे विपक्षी दलों में फूट डालने की साजिश के रूप में देख रहे हैं. सुप्रिया सुले और प्रियंका चतुर्वेदी जैसे नेताओं का चयन भी उनके हालिया बयानों और शरद पवार के बीजेपी के प्रति नरम रुख को जोड़कर देखा जा रहा है. कांग्रेस पर सवाल है कि वह इस राजनीति को भांपने में क्यों चूक गई. यदि कांग्रेस ने स्वयं थरूर का नाम सुझाया होता, तो बीजेपी के पास शोर मचाने का मौका नहीं होता.
राहुल गांधी को क्यों नहीं भेजा?
कुछ का मानना है कि यदि नरसिम्हा राव ने 1994 में अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र में भेजा था, तो मोदी सरकार राहुल गांधी को भेजकर बड़ा दिल दिखा सकती थी. इसके बजाय, संसद का संयुक्त सत्र बुलाने की विपक्ष की मांग को ठुकराने और सर्वदलीय बैठकों में बार-बार अनुपस्थित रहने वाले मोदी को अब प्रतिनिधिमंडलों पर भरोसा कैसे हो गया?
पहलगाम हमले के बाद देरी क्यों?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि प्रतिनिधिमंडल भेजना था, तो पहलगाम हमले के तुरंत बाद क्यों नहीं भेजा गया, जब आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ वैश्विक समुदाय को एकजुट करने का मौका था. ऑपरेशन सिंदूर के मुख्य चरण के समाप्त होने के बाद अब यह कवायद कितनी प्रभावी होगी?
नैतिकता पर सवाल
कांग्रेस से नाम मांगकर उन्हें नजरअंदाज करना और थरूर-खुर्शीद जैसे नेताओं को चुनना न केवल राजनीतिक चालबाजी माना जा रहा है, बल्कि यह लीडर ऑफ अपोजिशन की विश्वसनीयता को भी कम करता है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब नाम अपने हिसाब से तय करना था तो कांग्रेस से नाम मांगे ही क्यों गए? यह छिछोरी राजनीति क्यों की गई?
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