Charchit Chehra: 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने पूरे देश में हलचल मचा दी है. इस फैसले ने न सिर्फ लोगों को चौंकाया बल्कि दशकों से दो अलग-अलग राहों पर चल रहे गांधी परिवार के दो धड़ों को एक मुद्दे पर एकजुट कर दिया. यह मुद्दा आवारा कुत्तों से जुड़ा है, जिस पर चाची मेनका गांधी, भतीजे राहुल गांधी और भतीजी प्रियंका गांधी ने एक सुर में अपनी राय जाहिर की है.
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क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद के अधिकारियों को आठ हफ्तों के भीतर सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को हटाकर शेल्टर होम्स में भेजने का आदेश दिया है. जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की बेंच ने साफ कहा है कि चाहे कुत्ते बंध्याकृत हों या नहीं, समाज को सुरक्षित महसूस होना चाहिए और सड़कों पर कोई भी आवारा कुत्ता नहीं घूमना चाहिए. कोर्ट ने इस अभियान में बाधा डालने वाले किसी भी संगठन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की चेतावनी भी दी है.
गांधी परिवार की एकजुटता
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर सबसे पहले मेनका गांधी ने आपत्ति जताई. मेनका गांधी लंबे समय से पशु अधिकारों की लड़ाई लड़ती रही हैं. उनके बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी इस फैसले पर अपनी असहमति जाहिर की है. राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि यह फैसला दशकों से चली आ रही मानवीय और विज्ञान-आधारित नीति से पीछे हटना है. उन्होंने कहा कि बेजुबान जानवर समस्या नहीं हैं और सड़कों को सुरक्षित रखने के लिए नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल जैसे तरीके अपनाए जा सकते हैं. प्रियंका गांधी ने भी इस फैसले को बेहतर तरीके से संभालने की बात कही, जहां जानवरों की देखभाल भी हो और लोग भी सुरक्षित रहें.
गांधी परिवार के बीच की पुरानी दूरियां
गांधी परिवार के दो धड़ों सोनिया-राहुल-प्रियंका और मेनका-वरुण के बीच की रार काफी पुरानी है. यह कहानी 28 मार्च 1982 से शुरू होती है, जब मेनका गांधी अपने दो साल के बेटे वरुण गांधी को लेकर प्रधानमंत्री आवास छोड़कर चली गई थीं. उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. संजय गांधी की मौत के बाद इंदिरा और मेनका के बीच छोटी-छोटी बातों पर तनाव बढ़ने लगा था.
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि दोनों का एक छत के नीचे रहना मुश्किल हो गया था. स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो ने अपनी किताब ‘द रेड साड़ी’ में बताया है कि संजय की मौत के बाद इंदिरा, राजीव गांधी को राजनीति में आगे बढ़ा रही थीं, जो मेनका को पसंद नहीं था. एक बार इंदिरा के विदेश दौरे के दौरान मेनका ने लखनऊ में अपने समर्थकों के साथ एक सभा की, जिससे इंदिरा नाराज हो गईं. गुस्से में इंदिरा ने मेनका को घर से निकल जाने को कहा.
वरुण गांधी की कस्टडी का मामला
जब मेनका घर छोड़ने लगीं, तब इंदिरा गांधी अपने पोते वरुण को उनके साथ नहीं जाने देना चाहती थीं. इंदिरा, वरुण को संजय की आखिरी निशानी मानती थीं, लेकिन मेनका अपने बेटे के बिना जाने को तैयार नहीं थीं. आधी रात को कानूनी सलाहकारों को बुलाया गया, जिन्होंने इंदिरा को समझाया कि कोर्ट में वरुण की कस्टडी मेनका को ही मिलेगी. आखिर में इंदिरा मान गईं और वरुण को मेनका के साथ जाने दिया. तभी से गांधी परिवार के ये दोनों धड़े राजनीति की अलग-अलग राहों पर चल पड़े.
मेनका गांधी का राजनीतिक सफर
घर छोड़ने के एक साल बाद 1983 में मेनका गांधी ने अकबर अहमद डंपी के साथ मिलकर ‘राष्ट्रीय संजय मंच’ नाम की पार्टी बनाई. 1984 में उन्होंने अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 1988 में वह जनता दल में शामिल हुईं और 1989 में पीलीभीत से चुनाव जीतकर सांसद बनीं. 1996 में उन्होंने दोबारा पीलीभीत से जीत दर्ज की.
2004 में मेनका गांधी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुईं. इसके बाद वह पीलीभीत, आंवला और सुल्तानपुर से सांसद चुनी गईं. उन्होंने केंद्र सरकार में महिला और बाल विकास मंत्री का पद भी संभाला है. मेनका गांधी को जानवरों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए जाना जाता है और आज भी वह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपनी आवाज उठा रही हैं.
दिल्ली के एक सिख परिवार में जन्मी मेनका गांधी की शादी संजय गांधी से हुई थी, तब वह उनसे 10 साल छोटी थीं. 17 साल की उम्र में उन्होंने एक मॉडल के रूप में काम किया था, जहां संजय गांधी ने उन्हें एक विज्ञापन में देखा था. 13 मार्च, 1980 को उनके बेटे वरुण गांधी का जन्म हुआ, जिसके तीन महीने बाद ही एक विमान हादसे में संजय गांधी की मौत हो गई थी.
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