Pakistan का खुलकर साथ क्यों दे रहा है तुर्किये? सामने आ गई पूरी कहानी!

Pakistan Turkey relations: भारत की मदद के बावजूद तुर्की लगातार पाकिस्तान का साथ दे रहा है. इस रिश्ते की जड़ें सिर्फ धर्म नहीं, बल्कि रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं और ऐतिहासिक गठबंधनों में छिपी हैं, जो भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती बनती जा रही है.

तस्वीर: इंडिया टुडे

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विजय विद्रोही

12 May 2025 (अपडेटेड: 12 May 2025, 02:44 PM)

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India Pakistan Tensions:पाकिस्तान को इस समय दुनिया में केवल तीन देशों का समर्थन प्राप्त है. इनमें तुर्की, अज़रबैजान और चीन शामिल हैं और उसमें भी तुर्की का साथ सबसे चर्चित है, खासकर तब जब 2023 में तुर्की में आए भूकंप के दौरान भारत ने मानवीय सहायता भेजकर मदद की थी. फिर भी, तुर्की लगातार पाकिस्तान का समर्थन क्यों कर रहा है? 

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इस्लामिक गठजोड़ और ऐतिहासिक रिश्ते

तुर्की और पाकिस्तान, दोनों इस्लामिक देश होने के कारण एक साझा गठबंधन बनाए हुए हैं. शीत युद्ध के दौरान दोनों देश सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (सेंटो) और रीजनल कोऑपरेशन फॉर डेवलपमेंट (आरसीडी) के सदस्य रहे. संकट के समय दोनों ने एक-दूसरे का साथ दिया, जैसे 1964 और 1971 के साइप्रस संकट में पाकिस्तान ने तुर्की का समर्थन किया. तुर्की ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर कब्जे की कोशिश की, और पाकिस्तान ने इसे मान्यता देने की बात कही.

एर्दोगन युग में बढ़ी दोस्ती

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन के 2003 में सत्ता में आने के बाद यह दोस्ती और गहरी हुई. एर्दोगन, जो कट्टर इस्लामिक विचारधारा के समर्थक माने जाते हैं, ने पाकिस्तान के साथ रिश्तों को मजबूत किया. वे 10 बार पाकिस्तान का दौरा कर चुके हैं, जिसमें फरवरी 2025 में भी एक यात्रा शामिल है. दोनों देशों ने 'पाकिस्तान-तुर्की हाई लेवल स्ट्रैटेजिक कोऑपरेशन काउंसिल' बनाया है, जिसे एर्दोगन सह-अध्यक्षता करते हैं.

क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं और गठबंधन

तुर्की खाड़ी देशों में सऊदी अरब और यूएई के प्रभाव को चुनौती देना चाहता है. इसके लिए उसने पाकिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया और कतर के साथ गठजोड़ बनाया. 2019 में क्वालालंपुर में हुई बैठक में इन देशों ने मुस्लिम विश्व में सऊदी अरब के नेतृत्व को चुनौती देने की रणनीति बनाई. दूसरी ओर, भारत सऊदी अरब और यूएई के साथ है, जिससे तुर्की और भारत के हित टकराते हैं.

हिंद महासागर में तुर्की की बढ़ती दखल

तुर्की हिंद महासागर में भी प्रभाव बढ़ाना चाहता है, जहां भारत और चीन पहले से सक्रिय हैं. तुर्की ने सोमालिया में सैन्य अड्डा बनाया और 2024 में मालदीव को ड्रोन बेचे. पाकिस्तान की नौसेना को भी तुर्की समर्थन देता है, जैसे उनकी 'गाजी' पनडुब्बी के रखरखाव और उन्नयन में मदद. 

कश्मीर पर तुर्की का रुख

तुर्की बार-बार कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देता है और कश्मीरी जनता के प्रति एकजुटता दिखाता है, जिसे भारत अपने आंतरिक मामले में हस्तक्षेप मानता है. भारत ने इस पर कड़ा विरोध जताया है और तुर्की के राजदूत को तलब कर फटकार भी लगाई. 2013 में भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा था, "भारत की कीमत पर अपनी दोस्ती न बनाएं."

भारत-तुर्की तनाव और साइप्रस-अर्मेनिया कनेक्शन

भारत और तुर्की के बीच तनाव का एक बड़ा कारण साइप्रस और आर्मेनिया जैसे मुद्दे हैं. तुर्की और पाकिस्तान उत्तरी साइप्रस के तुर्की गणराज्य को समर्थन देते हैं, जबकि भारत ग्रीस और साइप्रस गणराज्य के साथ है. ग्रीस भी कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन करता है. इसी तरह, दक्षिण काकेशस में भारत अर्मेनिया का समर्थक है, जिसे 2024 में बड़े पैमाने पर हथियार सप्लाई किए. वहीं, तुर्की और पाकिस्तान अज़रबैजान के साथ हैं, जो अर्मेनिया का विरोधी है.

तुर्की,पाकिस्तान के इतने करीब क्यों ?

पाकिस्तान और तुर्की की दोस्ती धार्मिक, ऐतिहासिक और रणनीतिक हितों पर आधारित है. तुर्की की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं, खासकर खाड़ी और हिंद महासागर में, इसे पाकिस्तान के करीब लाती हैं. हालांकि, कश्मीर और साइप्रस जैसे मुद्दों पर तुर्की का रुख भारत के लिए चिंता का विषय है. भारत ने तुर्की को 2023 के भूकंप में मदद दी, लेकिन एर्दोगन के नेतृत्व में तुर्की ने इस एहसान को स्वीकार नहीं किया. यह जटिल रिश्ता वैश्विक और क्षेत्रीय राजनीति में नए तनाव और गठबंधनों को जन्म दे रहा है.

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