जब राज्यों में सरकार बनती हैं तो महाभारत इस बात पर होती है कि कौन कैबिनेट मंत्री बनेगा, किसको कौन सा विभाग मिलेगा. राज्यों में जब मंत्री बन जाते हैं तो उनको एक और काम दिया जाता है. जिलों को संभालने का काम. हर जिले का इन्चार्ज कोई न कोई मंत्री होता है. महाराष्ट्र में ऐसे इन्चार्ज को पालक मंत्री, गार्डियन मिनिस्टर या प्रभारी मंत्री कहा जाता है. विधायक, सांसद के साथ पालक मंत्री एक और हायररकी है जिसकी विकास योजनाएं की फंडिंग में बड़ी भूमिका होती है. महाराष्ट्र चुनाव के बाद जो मिली-जुली सरकार बनी है उसी को लेकर शुरू हुई महाभारत.
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सीएम देवेंद्र फडणवीस स्विट्जरलैंड के दावोस में World Economic Forum की बैठक इन्वेस्टमेंट जुटाने पहुंचे हैं. मुंबई से दावोस जाने से पहले एक पेंडिंग काम पूरा करते गए. कौन मंत्री किस जिले को संभालेंगे, इसके लिए 36 पालक मंत्रियों की लिस्ट फाइनल कर दी. एक ही जिले से कई मंत्रियों के पालकमंत्री बनने की दावेदारी के कारण ही 28 दिन से लिस्ट पेंडिंग थी. विवाद के कारण फडणवीस लिस्ट नहीं निकाल रहे थे. उनकी आशंका सही साबित हुई. पालक मंत्री बनने के लिए सरकार में महाभारत छिड़ गई. आमने-सामने आ गए एकनाथ शिंदे और अजित पवार के करीबी.
पालक मंत्रियों की लिस्ट में रायगड जिले की पालक मंत्री अदिति तटकरे को बनाया गया जो अजित पवार की पार्टी के महाराष्ट्र अध्यक्ष सुनील तटकरे की बेटी हैं. इससे पहले भी अदिति के पास रायगड का चार्ज था. रायगड में एयरपोर्ट बनने जा रहा है. इससे भी इसकी बहुत पूछ बढ़ी हुई है. भरत गोगावले अरसे से आंखें गड़ाए बैठे थे कि वही रायगड के पालक मंत्री बनेंगे. फडणवीस ने ऐसा खेल किया कि पालक मंत्रियों में ही नहीं आया गोगावले का नाम. उन्होंने अपने 38 समर्थकों को इस्तीफा डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे को भिजवा दिया. सड़क पर उतरकर घंटों तक मुंबई गोवा एक्सप्रेस पर जाम लगा दिया. पालक मंत्री को लेकर रायगड जलने लगा. सुनील तटकरे के खिलाफ नारे लगने कि उन्होंने गोगावले की पीठ में छुरा घोंपा है.
दूसरा विवाद नासिक में हुआ. फडणवीस ने नासिक का पालक मंत्री अपने करीबी बीजेपी कोटे के गिरीश महाजन को बनाया तो शिवसेना के दादा भुसे नाराज हो गए. दादा भुसे को नासिक का पालक मंत्री बनना था. उन्हें न तो नासिक मिला, न पालक मंत्री की जिम्मेदारी.
पालक मंत्रियों को लेकर छिड़ी महाभारत से महाराष्ट्र की राजनीति में फिर भड़कने लगे शोले. रायगड और नासिक ऐसे जिले हैं जो शिंदे शिवसेना के गढ़ जैसे हैं. दोनों में से एक ही जिले नहीं मिलने से एकनाथ शिंदे भी भड़क गए. कहा तो कुछ नहीं बल्कि बोरिया बिस्तर उठाकर बिना किसी को बताए पहुंच गए अपने गांव सातारा जहां से अभी-अभी लौटे थे. पालक मंत्री तो बहाना है. शिंदे समझ रहे हैं कि अपने लोगों के साथ नाइंसाफी हो रही है और वो कुछ नहीं कर पा रहे हैं.
पालक मंत्रियों की लिस्ट आते ही इतना हल्ला मचने लगा कि फडणवीस को दावोस से दखल देना पड़ा. रायगड या नासिक में किसी पालक मंत्री को न तो बदला, न बनाए रखा. बल्कि पालक मंत्रियों की लिस्ट ही होल्ड करा दी. सरकार बनने के बाद से पेंडिंग पालक मंत्री का मामला फिर होल्ड पर चला गया. बीड के पालक मंत्री को लेकर अलग विवाद चल रहा है. सरपंच हत्याकांड में फंसे धनंजय मुंडे से बीड का चार्ज ले लिया. पंकजा मुंडे को भी चार्ज न देकर जालना का पालक मंत्री बनाया है. सीएम देवेंद्र फडणवीस ने खुद गडचिरौली के पालक मंत्री का चार्ज लेने वाले थे. एकनाथ शिंदे को मुंबई और ठाणे का पालक मंत्री बनाया है. अजित पवार को पुणे का पालक मंत्री बनाया था.
विधानसभा चुनाव के नतीजों ने महाराष्ट्र की राजनीति उल्टी-पुल्टी कर दी है. चुनाव से पहले सरकार एकनाथ शिंदे कंट्रोल कर रहे थे. नतीजे आए कि बीजेपी ने अकेले जबर्दस्त जीत हासिल कर ली. एकनाथ शिंदे का पूरा वेटेज ही चला गया. अजित पवार पहले से ज्यादा मजबूत हो गए. सीएम की कुर्सी गंवाने के बाद मजबूरी में डिप्टी सीएम बनना पड़ा. कहा जा रहा है कि इन सबका असर शिंदे और शिवसेना पर पड़ रहा है. शिवसेना के भरत गोगावले की दावेदारी को देवेंद्र फडणवीस ने सीरियसली नहीं लिया. रायगड की लड़ाई में बेटी अदिति की जीतने के बाद सुनील तटकरे ये मैसेज दे रहे हैं कि हर किसी को संतुष्ट नहीं कर सकते.
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