Lok Sabha Election West Bengal: महुआ मोइत्रा देश की उन गिनी-चुनी सांसदों में से हैं जिनकी संसद सदस्यता करप्शन के आरोप में चली गई. अक्सर अदाणी और पीएम मोदी के खिलाफ संसद में जोरदार आवाज उठाने वाली तृणमूल कांग्रेस(TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा के मामले में फटाफट संसदीय जांच हुई, आरोप साबित हुए और लोकसभा चुनाव से ठीक पहले महुआ को संसद से बर्खास्त कर दिया गया. ऐसे मुश्किल के ऐसे समय में महुआ के साथ अगर कोई चट्टान की तरह खड़ा रहा वो थी ममता बनर्जी. हालांकि उनको भी ये अंदाजा नहीं रहा होगा कि, बिलकुल ऐन वक्त पर आनन-फानन में बीजेपी ने महुआ को घेरने के लिए कौनसा नया चक्रव्यूह तैयार कर लिया.
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राजमाता से होगी महुआ की लड़ाई
महुत्रा मोइत्रा एक बार फिर से पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. महुआ मोइत्रा के खिलाफ बीजेपी ने अब बड़ा दांव खेला है. बीजेपी ने महुआ के खिलाफ कृष्णानगर के राज परिवार की राजमाता अमृता रॉय को उतार दिया है. बीजेपी उम्मीदवार अमृता रॉय सौमिष चंद्र रॉय की पत्नी हैं जो नादिया जिले के राजबाड़ी के 39वें वंशज हैं. राजमाता ने 20 मार्च को बीजेपी ज्वाइन की. 5 दिन बाद बीजेपी ने उनकी उम्मीदवारी घोषित कर दी. 62 साल तक अमृता रॉय ने कभी राजनीति में झांका भी नहीं लेकिन अब उन्हें सीधे मिला है लोकसभा चुनाव का टिकट.
कृष्णानगर सीट नादिया में आती है जहां राजा कृष्णचंद्र का नाम सम्मान से लिया जाता है. इसी सबको ध्यान में रखकर जिला बीजेपी यूनिट ने हाईकमान को अमृता रॉय को टिकट देने की सिफारिश की थी. नादिया में सम्मान से अमृत रॉय को रानी साहिबा या रानी मां कहा जाता है. चुनाव में रानी मां फैक्टर का फायदा उठाने के लिए ही बीजेपी राजमाता अमृता रॉय को चुनाव में लाई है.
ये है कृष्णानगर के राज परिवार का इतिहास
18वीं सदी में कृष्णानगर में राजा कृष्णचंद्र रॉय का राज हुआ करता था. 1728 से 1783 यानी करीब 55 साल तक शासन किया है. उस जमाने में बंगाल के नवाब हुआ करते थे सिराजुद्दौला. जैसे ही बीजेपी ने अमृता रॉय की उम्मीदवारी घोषित की, इतिहास के पुराने पन्ने खुल गए. तृणमूल कांग्रेस ने अमृता रॉय के पूर्वज महाराजा कृष्णचंद्र रॉय की देशभक्ति पर सवाल उठाया है. तृणमूल का आरोप लगाया कि 1757 के प्लासी के युद्ध में जब सिराजुदौला अंग्रेजों से लड़ाई लड़ रहे थे तब राजा कृष्णचंद्र रॉय ने अंग्रेजों की मदद की थी.
जिस लड़ाई का जिक्र हो रहा है उसमें सिराजुदौला की हार हुई थी और अंग्रेज जीत गए थे. कहा जाता है कि, वहीं से भारत में अंग्रेजी हुकूमत की नींव पड़नी शुरू हुई थी. ब्रिटिश अधिकारी रॉबर्ट क्लाइव से राजा कृष्णचंद्र की अच्छी दोस्ती थी. महाराजा की उपाधि और कृष्णानगर का शासन गिफ्ट में मिला था. अमृता रॉय तृणमूल के आरोपों से पूरा इनकार नहीं करती है लेकिन उनका कहना है कि, ऐसा सिराजुद्दौला की प्रताड़ना की वजह से किया. अगर वो ऐसा नहीं करते तो हिंदू धर्म बच नहीं पाता.
अब कृष्णानगर लोकसभा सीट का इतिहास भी जान लीजिए
एक वक्त में कृष्णानगर सीट लेफ्ट का मजबूत गढ़ हुआ करती थी. 1967 के बाद हुए 11 लोकसभा चुनावों में से 10 बार लेफ्ट ने सीट जीती. 2009 और 2014 में तृणमूल के तापस रॉय ने कृष्णानगर का चुनावी समीकरण बदला था. 2019 में ममता बनर्जी ने बड़ा रिस्क लिया. जीते हुए सांसद का टिकट काटकर विदेश में इन्वेस्टमेंट बैंकर रहीं महुआ मोइत्रा को चुनाव लड़ाया था. मुकाबला कड़ा हुआ लेकिन कृष्णानगर ने महुआ मोइत्रा को जिता कर भेजा.
बीजेपी को उम्मीद है कि, 2019 में जो 63 हजार वोटों का फासला रह गया था वो कृष्णानगर की राजमाता के चुनाव में आने से खत्म हो जाएगा. साथ ही राजमाता के सामने महुआ-ममता का जीतना मुश्किल होगा.
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