CAA News: नागरिकता संशोधन ऐक्ट (सिटिजनशिप अमेंडमेंट ऐक्ट-CAA) एक बार फिर चर्चा में है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने पश्चिम बंगाल में ये दावा किया है कि सरकार मार्च 2024 तक CAA का अंतिम मसौदा तैयार कर लेगी. यह बयान उन्होंने बंगाल के 24 परगना जिले में दिया, जहां बांग्लादेश के प्रवासी हिन्दू शरणार्थी ‘मतुआ’ समुदाय की बहुलता है. CAA को 2019 में ही पास कर लिया गया था, लेकिन लागू अब तक नहीं हो पाया. इसमें मुस्लिम समुदाय शामिल नहीं है, इसलिए विपक्ष के कुछ दल इसे विभेदकारी बताते रहे हैं. टेनी के बयान पर तृणमूल कांग्रेस (TMC) के राज्यसभा सांसद शांतनु सेन ने कहा है कि बीजेपी को मतुआ और CAA सिर्फ चुनावों में याद आते हैं. उन्होंने कहा कि बीजेपी इसे कभी पश्चिम बंगाल में लागू नहीं करा पाएगी.
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अगले साल यानी 2024 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं. क्या CAA एक बार फिर सियासत के केंद्रबिंदु में आने जा रहा है?
पहले ये जान लीजिए क्या कहा अजय मिश्रा टेनी ने
अजय मिश्रा टेनी ने पश्चिम बंगाल के ठाकुरनगर में मतुआ समुदाय की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि कोई भी मतुआ समुदाय के लोगों से नागरिकता छीन नहीं सकता जो बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से पलायन कर भारत आए थे. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में CAA को लागू करने की प्रक्रिया में तेजी आई है, इसके क्रियान्वयन में आ रही बाधाओं को सुलझाया जा रहा है. अगले साल मार्च तक CAA का अंतिम मसौदा तैयार होने की उम्मीद है.
क्या है CAA?
31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए नागरिकता संशोधन ऐक्ट (CAA) लाया गया था. इसका बिल दिसंबर 2019 में संसद से पास हुआ था. राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद 12 दिसंबर 2019 को यह कानून बन गया था. इसे जनवरी 2020 तक लागू करने की अधिसूचना भी जारी हुई थी लेकिन अब तक इसपर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है.
क्यों लागू नहीं हो पा रहा है CAA?
जब CAA का बिल आया था उस वक्त देशभर में इसका भारी विरोध हुआ. देश की राजधानी दिल्ली में तो दंगे तक हुए. विपक्ष इसे पक्षपाती बताते हुए मुस्लिमों को टारगेट करने का एक हथियार बताता है. इसमें तीन पड़ोसी मुस्लिम देशों से आए गैरमुस्लिमों को नागरिकता देने की बात कही गई है जिसपर विपक्ष को आपत्ति है. देश के पूर्वोत्तर के राज्यों (असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश)में भी इसका जबरदस्त विरोध देखने को मिला. उन प्रदेशों में भी विरोध है, जिनकी सीमा बांग्लादेश से लगती है. जैसा पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा. यहां बड़ी संख्या में प्रवासी बांग्लादेशी रहते हैं. CAA लागू हुआ तो बांग्लादेश से आए मुस्लिमों को नागरिकता नहीं मिलेगी. इन प्रदेशों में बीजेपी वैसे भी बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला उठाती रहती है.
पूर्वोत्तर के राज्यों में हो रहे विरोध के पीछे का एक तर्क यह भी है कि अगर CAA के तहत पड़ोसी देशों से आए शरणार्थियों को नागरिकता दी गई तो उनके प्रदेश की जनसांख्यिकी पर असर पड़ेगा. राज्य के स्थानीय लोगों के हितों में बंटवारे का खतरा पैदा होगा. केंद्र सरकार भी इसके विरोध को लेकर मंझधार में फंसी हुई नजर आती रही है. ऐसा माना जाता है कि इन्हीं वजहों से इसे अबतक लागू नहीं किया गया है.
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