Bihar Caste Survey: बिहार में नीतीश कुमार की गठबंधन सरकार ने जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी करने का दांव खेल दिया है. नीतीश कुमार की इस कवायद के बाद रोहिणी आयोग की चर्चा ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है. बताया जा रहा है कि ये बीजेपी के तरकश का वो तीर है जो नीतीश के दांव का जवाब दे सकता है.
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दरअसल रोहिणी आयोग की रिपोर्ट में पिछड़े वर्ग के आरक्षण के असमान बंटवारे की बात की गई है. सीधे शब्दों में कहें तो ओबीसी की सभी जातियों तक आरक्षण का लाभ पहुंच रहा है या कुछ प्रभावशाली ओबीसी जातियां ही आरक्षण का लाभ उठा रही हैं इसका पता लगाने के लिए ये आयोग गठित हुआ था. इस आयोग को ओबीसी की केंद्रीय सूची में 2600 से अधिक जातियों का अध्ययन करने का जिम्मा दिया गया था।
आयोग ने दिए हैं ये सुझाव
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट अभी पब्लिक डोमेन में नहीं आई है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक रोहिणी कमीशन ने 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के वर्गीकरण का सुझाव दिया है. जो आरक्षण से पूरी तरह वंचित रहे हैं उन्हें 10 फीसद आरक्षण और बाकी 17 फीसदी को दो श्रेणी में बांटकर आरक्षण को देने की बात कही गई है. वहीं एक दूसरा सुझाव 27 फीसदी आरक्षण को चार हिस्सों में बांटने का है. जिसे बिल्कुल भी आरक्षण का लाभ नहीं मिला उसे सबसे ज्यादा आरक्षण और जो अभी तक लाभ उठाते आए हैं उन्हें सबसे कम देने की बात कही गई है.
रिपोर्ट लागू हो गई तो क्या होगा?
कमीशन की रिपोर्ट लागू करने से जातियों की नई गुटबंदी शुरू हो सकती है. छोटी जातियों की गोलबंदी बीजेपी के खेमे में हो सकती है. लेकिन पिछड़े वर्ग की प्रभावशाली जातियों जैसे जाट, यादव, कुर्मी इसमें भी बीजेपी का अपना वोट बैंक है. अगर आयोग की रिपोर्ट इनके हितों को नुकसान पहुंचाएगी तो यह वोटबैंक बीजेपी के पाले से खिसक भी सकता है.
तो क्या बीजेपी उठाएगी ये रिस्क?
अब सवाल ये उठता है कि बीजेपी इसे लागू कर रिस्क लेना पसंद करेगी, क्योंकि इससे जातियां टूटेंगी और नई सामाजिक संरचना को आकार देंगी. इससे बीजेपी और आरएसएस की हिंदुत्व की राजनीति को भी चोट पहुंचेगी, जिसे आरएसएस ने सालों में हिंदुत्व के एजेंडे के तहत इकठ्ठा किया है. अगर सरकार फिर भी इसे लागू कराती है, तो ये बीजेपी के लिए दोधारी तलवार भी साबित हो सकती है.
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