बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी कर 2024 के चुनाव का टोन सेट कर दिया है. अब इसपर सियासत जारी है. विपक्ष के INDIA अलायंस के सक्रिय चेहरे नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के लालू यादव के जाति के दांव में बीजेपी फंसती नजर आ रही है. देशभर के अलग-अलग हिस्सों से अब जातिगत जनगणना की मांग उठ रही है. यह मांग बीजेपी को बिहार के अलावा राष्ट्रीय राजनीति में भी असहज बना रही है. फिलहाल बीजेपी बिहार में महागठबंधन के सामने दूसरे छोटे दलों के साथ गठबंधन में इस सियासी दांव का काट खोज रही है.
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बिहार में मामला फंसना बीजेपी के लिए क्यों चिंता की बात, समझिए
2019 के चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू बीजेपी के साथ थी. बिहार की 40 लोकसभा सीटों में एनडीए को 39 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस को 8 फीसदी वोट के साथ 1 सीट पर जीत मिली थी. नीतीश कुमार की JDU ने 22 फीसदी वोट शेयर के साथ 16 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लालू की पार्टी RJD को 15 फीसदी वोट तो मिले थे, लेकिन उनके हाथ एक भी सीट नहीं लगी थी.
अब नीतीश INDIA खेमे में हैं. बीजेपी के लिए चिंता की बात है कि आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस के साथ लेफ्ट पार्टी का अलायंस अगर काम किया, तो उसे 2024 के चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है. बीजेपी के साथ लोजपा जैसी पार्टी है, लेकिन वह खुद एकजुट नहीं है.
नीतीश कुमार के लिए भी लिटमस टेस्ट
ऐसा नहीं है कि चुनौतियां सिर्फ बीजेपी के सामने हैं. नीतीश कुमार को भी साबित करना है कि उनका जनाधार है, जो एनडीए से अलग होने के बाद वह INDIA अलायंस को शिफ्ट करा सकते हैं. नीतीश बीजेपी के साथ चुनावी रणनीतिकार और जन सुराज अभियान के सूत्रधार प्रशांत किशोर के निशाने पर भी हैं.
प्रशांत किशोर ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार पर बोलते हुए कहा कि ” आगामी चुनावों में नीतीश कुमार का सूपड़ा साफ होने जा रहा है. नीतीश कुमार कहीं हैं ही नहीं. वह तो पेंडुलम की तरह लटकने के आदी हो गए हैं. वे कब तक लालटेन व कमल पर लटककर अपनी कुर्सी बचाएंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है.” ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश बिहार में इस बार चमत्कार दिखा पाते हैं या नहीं.
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