भारत के चुनाव में नोटा की कहानी, भूपेश बघेल के बयान के बाद फिर इसपर छिड़ी चर्चा

नोटा को पहली बार 2013 में पांच राज्यों के स्टेट इलेक्शन में यूज किया गया था. इसके बाद 16वीं लोकसभा के लिए यानी 2014 के चुनावों में पूरे देश में पहली बार नोटा का उपयोग किया गया.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बयान के बाद NOTA एक बार फिर से चर्चा में है.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बयान के बाद NOTA एक बार फिर से चर्चा में है.

देवराज गौर

• 02:54 PM • 01 Nov 2023

follow google news

NOTA in Elections: चुनाव आते ही NOTA यानी (None of the above) फिर से चर्चा में आ गया है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने नोटा पर बयान देकर इसे एक बार फिर से सुर्खियों में ला दिया है. भूपेश बघेल ने कहा है कि नोटा को खत्म कर देना चाहिए. उन्होंने प्रत्याशियों के बीच जीत-हार के अंतर से ज्यादा वोट नोटा को मिलने के कारण कहा कि वोटर अनजाने में नोटा का चयन करते हैं. बघेल ने कहा कि वोटर वोट डालते समय कंफ्यूज हो जाता है और वह यह सोचकर वोट डालता है कि उसे या तो ऊपर वाला या नीचे वाला बटन दबाना है.

Read more!

क्या है नोटा

नोटा को पहली बार 2013 में पांच राज्यों के स्टेट इलेक्शन में यूज किया गया था. इसके बाद 16वीं लोकसभा के लिए यानी 2014 के चुनावों में पूरे देश में पहली बार नोटा का उपयोग किया गया. हालांकि, इसको लागू करने की प्रक्रिया 2009 में ही शुरु हो गई थी. साल 2009 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिख नोटा के बारे में अपनी मंशा से अवगत कराया था. बाद में नागरिक अधिकार संघठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं को नोटा का विकल्प देने का आदेश दिया था. नोटा एक विकल्प है जो वोटर किसी भी कैंडिडेट को नापसंद करने की स्थिति में डाल सकते हैं. नोटा को इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में सबसे नीचे दिया जाता है. इसका सिंबल बैलेट पेपर होता है, जिसपर काले-क्रॉस का निशान होता है.

नोटा के पहले क्य़ा थी स्थिति

नोटा आने और ईवीएम के इस्तेमाल से पहले भी लोग अपना विरोध दर्ज कराते थे. पहले वोटर अपना बैलेट पेपर खाली छोड़कर ही बैलेट बॉक्स में डालते थे. लेकिन, इसमें वोटर को अपनी जानकारी दर्ज करानी होती थी कि उसने अपना वोट खाली डाला है. नोटा में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. नोट पूरी तरह से गोपनीय और आपकी जानकारी सुरक्षित रखता है.

चुनाव आचार संहिता, 1961 के नियम 49 (ओ) के तहत यह काफी समय से अस्तित्व में था. इसके तहत कोई भी मतदाता आधिकारिक तौर पर वोट नहीं देने का निर्णय ले सकता था. फॉर्म 17A में एंट्री के बाद नियम 49L के उप नियम (1) के तहत रजिस्टर पर अपने हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लगाता था. जिसके बाद फॉर्म 17A में मतदान अधिकारी को टिप्पणी लिखनी होती थी. इससे उस मतदाता की पहचान उजागर होने का संशय रहता था. लेकिन ईवीएम में नोटा के ऑप्शन के बाद से यह पूरी तरह से सुरक्षित है.

नोटा के विपक्ष में क्या तर्क

नोटा का इस्तेमाल केवल प्रत्यक्ष चुनावों के लिए होता है. यानी जिसमें मतदाता सीधा प्रतिनिधि को वोट डालता है. लेकिन इसके विरोध में भी कई तर्क दिए जाते हैं. पहला यह कि नोटा वोटर को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार नहीं देता है. अगर किसी सीट पर उम्मीदवारों से ज्यादा वोट नोटा को जाते हैं तो वह खाली प्रतीकात्म ही है. उससे वोटर खाली अपना विरोध दर्ज करा सकता है कि इस सीट पर किसी भी प्रत्याशी से ज्यादा नोटा को वोट गया है यानी जनता किसी को भी पसंद नहीं करती. लेकिन ऐसे में उन प्रत्याशियों को नकारे जाने का कोई प्रावधान नहीं है.

दूसरा नोटा को मिले वोट अमान्य करार दिए जाते हैं. वहीं नोटा को ज्यादा वोट मिलने पर पुनः चुनाव कराने का भी कोई प्रावधान नहीं है.

चुनावी राज्यों में नोटा की स्थिति

अगले महीने जिन पांच राज्यों में वोट डाले जाने हैं. उन राज्यों में 2018 के विधानसभा चुनावों में 15.19 लाख नोटा वोट मिले थे. यानी कुल पड़े वोटों को 1.4 फीसदी. नोटा का सबसे ज्यादा प्रभाव छत्तीसगढ़ में देखने को मिला था. 2018 में छत्तीसगढ़ में जहां सबसे ज्यादा 2.2 फीसदी वोट नोटा को तो मध्य प्रदेश 1.44, राजस्थान 1.33, तेलंगाना 1.1 और मिजोरम में सबसे कम 0.47 फीसदी वोट नोटा को मिले.

लोकसभा चुनावों में नोटा का हाल

2019 के लोकसभा चुनावों में नोटा को कुल 65.23 लाख वोट मिले यानी कुल पड़े मतों का 1.07 फीसदी. वहीं अगर नोटा के लिए पहले लोकसभा चुनावों की बात करें तो 60 लाख वोट यानी कुल मतों को 1.1 फीसदी वोट नोटा में पड़े थे. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा 51,600 वोट बिहार के गोपालगंज लोकसभा सीट पर पडे़ तो वहीं सबसे कम 100 वोट लक्ष्यद्वीप सीट पर.

    follow google newsfollow whatsapp