सुप्रीम कोर्ट ने कोटा में कोटा पर लगाई मुहर! 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने जो फैसला दिया उसे समझिए

SC on Quota within Quota: SC/ST जातियों में सब कैटेगरी को लेकर दाखिल मामले में 2004 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए SC/ST की सब कैटेगिरी करने का अधिकार नहीं है.

NewsTak

अभिषेक

01 Aug 2024 (अपडेटेड: 02 Aug 2024, 05:42 PM)

follow google news

SC on Quota within Quota: सुप्रीम कोर्ट(SC) की संवैधानिक बेंच ने आज कोटा के अंदर कोटा पर एक बड़ा फैसला दिया है. SC के 7 जजों की बेंच ने 6-1 के बहुमत से ये फैसला दिया है. फैसले में कहा गया है कि, राज्य सरकार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटेगरी बना सकती है जिससे जरूरतमंद को आरक्षण का अधिक फायदा मिल सके. सबसे दिलचस्प बात ये रही कि, 7 जजों की इस बेंच ने 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. तब ईवी चिन्नैया मामले में कोर्ट ने कहा था कि, SC/ST जातियों में सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती है. आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 6-1 के बहुमत से कहा कि, जनजातियों में सब कैटेगरी की अनुमति है जबकि जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी ने इससे असहमति जताई है. SC के इस फैसले के क्या है मायने? आइए हम बताते हैं. 

Read more!

पहले जानिए क्या है ये पूरा मामला? 

साल 1975 में पंजाब सरकार ने आरक्षित सीटों को दो श्रेणियों में विभाजित करके अनुसूचित जाति में विभाजन करके एक नई आरक्षण नीति पेश की थी. इस नीति में आरक्षण को भागों में डिवाइड किया गया एक बाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए और दूसरा बाकी अनुसूचित जाति वर्ग के लिए. 30 साल तक ये नियम लागू रहा. उसके बाद 2006 में ये मामला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट पहुंचा और ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले का हवाला दिया गया. तब पंजाब सरकार को झटका लगा और इस नीति को रद्द कर दिया गया. ईवी चिन्नैया फैसले में समानता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए SC कैटेगरी के भीतर सब कैटेगिरी की अनुमति नहीं दी गई. 

इस फैसले के बाद पंजाब सरकार ने 2006 में बाल्मीकि और मजहबी सिखों को फिर से कोटा दिए जाने को लेकर एक नया कानून बनाया. इस कानून को भी साल 2010 में हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. हाई कोर्ट ने भी इस नीति को रद्द कर दिया. फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. पंजाब सरकार ने अपने पक्ष में ये तर्क दिया कि, इंद्रा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले के तहत यह जायज है. आपको बता दें कि, इस फैसले में अन्य पिछड़ा वर्ग के भीतर सब कैटेगिरी की अनुमति दी थी. इसी को आधार बनाते हुए पंजाब सरकार ने तर्क दिया कि अनुसूचित जाति के भीतर भी इसकी अनुमति दी जानी चाहिए.

2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के फैसले पर एक बड़ी बेंच बनाकर उसपर विचार करने की बात कही. इसके बाद CJI के नेतृत्व में सात जजों की बेंच का गठन किया गया, जिसने जनवरी 2024 में तीन दिनों तक मामले में दलीलें सुनीं और उसके बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और आज अपना फैसला सुनाया. 

2004 के अपने फैसले में SC ने क्या कहा था?

SC/ST जातियों में सब कैटेगरी को लेकर दाखिल मामले में 2004 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए SC/ST की सब कैटेगिरी करने का अधिकार नहीं है. आज फिर से इसी मामले में एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट के में  सुनवाई चल रही थी. कोर्ट को यह तय करना था कि क्या अनुसूचित जाति और जनजाति श्रेणियों को सब-कैटेगरी में रिजर्वेशन मिलेगा या नहीं? क्या राज्य विधानसभाओं के पास कोटा के भीतर कोटा लागू करने का अधिकार है या नहीं? इन्हीं मुद्दों पर SC ने आज फैसला सुनाते हुए सब सब साफ कर दिया है. 

क्या है सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मायने?

सुप्रीम कोर्ट के कोटा में कोटा का रास्ता साफ साफ करने के बाद अब राज्य सरकार इसके लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हो गई है. इस फैसले के तहत अब सरकारे जरूरत के हिसाब से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटेगरी बना सकती है. SC ने यह फैसला जरूरतमंद को अधिकतम लाभ पहुंचाने के लिए दिया है. इसके बाद अब ये होगा कि, मान लीजिए की SC कैटेगरी को 15 फीसदी का आरक्षण मिला हुआ है. अब उस कैटेगरी में आने वाली तमाम जातियों में ये देखा जाएगा कि, क्या उनमें भी कोई अति पिछड़ा है? अगर है तो उन जातियों को मिलाकर या सिर्फ एक ही जाति को 10 फीसदी की कैटेगरी के भीतर सब कैटेगरी बनाकर उन्हें विशेष लाभ सुनिश्चित किया जाएगा.

ऐसा माना जाता है, SC और ST कैटेगरी में कई ऐसी जातियां है जिनकी पहले तो स्थिति खराब थी पर आरक्षण का फायदा लेकर अब उनकी स्थिति ठीक हो गई है. हालांकि उसके बाद भी वो आरक्षण का उतना ही लाभ ले रहे है जितना की उस कैटेगरी के अति पिछड़े. इससे अति पिछड़े उनसे कंपटीशन नहीं कर पा रहे. सुप्रीम कोर्ट ने इसी को सुनिश्चित करने के लिए ये फैसला दिया है जिससे राज्य सरकारे उनकी स्थिति के आधार पर उन्हें सब कैटेगरी में बांटकर सबको समान अवसर उपलब्ध कर सकें. 

    follow google newsfollow whatsapp