उत्तरकाशी में मजदूरों को बचाएंगे थाईलैंड के एक्सपर्ट्स! कौन हैं ये लोग, क्या हैं इनमें खास?

यमुनोत्री नेशनल हाईवे पर सिल्क्यारा और डंडलगांव के बीच पहाड़ के अंदर बन रही सुरंग में एक घटना घटी. 4.5 किलोमीटर लंबी इस सुरंग में 12 नवंबर (रविवार) सुबह 4 बजे भूस्खलन हुआ. इसमें सुरंग का एक हिस्सा धंस गया. जिसमें 40 मजदूर फंसे हुए हैं.

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में चार धाम हाईवे प्रोजेक्ट के तहत एक टनल में हादसा हुआ है जिसमें चालीस मजदूर फंसे हुए हैं. जिनको निकालने के लिए सरकार ने थाईलैंड की मदद ली है.
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में चार धाम हाईवे प्रोजेक्ट के तहत एक टनल में हादसा हुआ है जिसमें चालीस मजदूर फंसे हुए हैं. जिनको निकालने के लिए सरकार ने थाईलैंड की मदद ली है.

देवराज गौर

• 06:47 PM • 15 Nov 2023

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Uttarakhand Tunnel Incident: दिवाली के शुभ अवसर पर जहां सभी लोग अपने घरों में खुशियां मना रहे थे, इसी बीच उत्तराखंड में एक दर्दनाक हादसा हो गया. यह हादसा उत्तराखंड के उत्तरकाशी में हुआ. उत्तराखंड में बन रहे चारधाम हाईवे प्रोजेक्ट के तहत एक सुरंग बनाई जा रही है. यमुनोत्री नेशनल हाईवे पर सिल्क्यारा और डंडलगांव के बीच पहाड़ के अंदर बन रही सुरंग में यह घटना घटी. 4.5 किलोमीटर लंबी इस सुरंग में 12 नवंबर (रविवार) को सुबह 4 बजे भूस्खलन हुआ. इसका एक हिस्सा धंस गया. जिसमें 40 मजदूर फंसे हुए हैं. NDRF और SDRF की टीमें रेस्कयू ऑपरेशन चला रही हैं. अब सरकार ने थाईलैंड की रेस्क्यू एजेंसी से संपर्क किया है. इस एजेंसी के एक्सपर्ट्स ने 2018 में थाईलैंड की एक गुफा में फंसे 13 सदस्यों को 17 दिन बाद सफलतापूर्वक निकाल लिया था.

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थाईलैंड में घट चुकी उस भयानक घटना और रेस्क्यू ऑपरेशन को जानिए

माए साई नाम का थाईलैंड का एक छोटा सा कस्बा अचानक पूरी दुनिया के सामने आ गया था. 12-16 साल के 12 बच्चे और उनके कोच चार किलोमीटर लंबी गुफा में फंस गए थे. 18 दिन बाद उन सभी को बचा लिया गया.

उत्तरी थाईलैंड की टैम लूंग गुफा में 23 जून 2018 को थाईलैंड की स्थानीय फुटबॉल टीम के कुछ बच्चे अपने 25 वर्षीय कोच के साथ मैच खत्म होने के बाद घूमने के लिए गए थे. कोच उस गुफा में पहले भी घूमने के लिए आ चुका था. लेकिन, जब वो बच्चों के साथ वहां गए, तब उन्होंने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि जून का महीना बारिश का महीना है, जिससे गुफा में पानी भर जाता है.

गुफा के भीतर तीन किलोमीटर जाने के बाद उन्हें पता चला कि पानी बरसने लगा है. बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था. इसलिए वह बचने के लिए गुफा में ही आगे बढ़े. लेकिन जब काफी देर तक पानी गिरता ही रहा, तो उन्होंने गुफा के अंदर ही एक जगह आसरा ले लिया. बच्चों को तैरना भी नहीं आता था, कि तैर कर निकला जा सके. दूसरी तरफ जब बच्चे वक्त पर घर नहीं पहुंचे तो घरवालों ने पुलिस को जानकारी दी.

पुलिस ने खोजबीन चालू की तो उन्हें गुफा के बाहर बच्चों की साइकिलें खड़ी मिलीं. बचाव दल को बुलाया गया, थाईलैंड की नेवी के लोग भी आए. लेकिन पुख्ता जानकारी नहीं होने के कारण कुछ नहीं हो पाया. गुफा में पानी भरे होने के कारण अंदर जाने के लिए केव डाइविंग आना जरूरी था. दुनिया में चुनिंदा लोग ही इस कला में माहिर होते हैं.

बचाने के लिए क्या किया गया?

केव डाइवर्स के आने तक उस गुफा से पाइपों के सहारे पानी निकालने की कोशिश की गई. लेकिन बीच-बीच में पानी बरसने की वजह से पानी वापस गुफा में चला जा रहा था. जब पांच दिन की कड़ी मशक्कत के बाद भी सारी कोशिशें बेकार रहीं तो थाईलैंड की सरकार ने दूसरे देशों से मदद मांगी.

ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से केव डाइवर्स बुलाए गए. 1 जुलाई के रोज ब्रिटेन के दो डाइवर्स तैरकर बच्चों तक पहुंचे. बच्चों ने बरसने वाले पानी को इकठ्ठा कर पीने का इंतजाम किया. बच्चों के साथ जो कोच था वो एक मॉन्क भी था. उसने बच्चों को गुफा में ध्यान लगाना सिखाया जिससे कि बच्चों की सांस स्थिर रह सके और वो घबराएं नहीं. जब इन बच्चों का वीडियो दुनिया तक पहुंचा तो पूरे विश्व से मदद की अपील की जाने लगी.

लोगों ने उम्मीद जताई कि बच्चे बचे हैं तो इन्हें किसी भी कीमत पर बाहर लाना है. अगले कुछ दिनों तक बच्चों तक पैकेज्ड फूड, दवा और पीने का पानी पहुंचाया गया.

फिर आता है D – Day

केव डाइवर्स ने बच्चों को बाहर निकालने के लिए उन्हें डाइविंग सूट पहनाया. जिसमें ऑक्सीजन सिलेंडर और मास्क शामिल था. इसके अलावा बच्चों को हल्की सी बेहोशी की दवा दी गई जिससे वो पानी में घबराकर अपना और बचावकर्मी डाइवर का संतुलन न खराब करें. बचावकर्मी बच्चों को बेहोशी की हालत में अपने साथ करीब 1.5 किलोमीटर तैरकर लाए.

1.5 किलोमीटर बाद पानी जब इतना हो गया कि उसमें से सिर बाहर निकाला जा सके तो बच्चों को एक स्पेशल बैग में लिटाया गया जिसमें एक हैंडल था जिसे बचावकर्मी हर वक्त पकड़ कर रख सकता था. बाकी के रास्ते बच्चों को इसी तरह बाहर लाया गया. पहली किश्त में चार बच्चों को बाहर लाया गया. फिर अगले दो दिनों में चार-चार की शिफ्ट में सभी 12 बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला गया.

रेस्क्यू ऑपरेशन 10 जुलाई को खत्म हुआ. बच्चों के साथ जो कोच था उसे सबसे बाद में बाहर आया. भारत ने भी इसमें अपना योगदान दिया था. भारत की इंजन और पंप बनाने वाली कंपनी किर्लोस्कर ने अपने हाई कैपेसिटी पंप्स थाईलैंड को मुहैया कराए थे, जिससे कि गुफा से पानी निकाला जा सके.

अब देश को उम्मीद है की उत्तरकाशी में चल रहे सारे प्रयास रंग लायेंगे. सभी मजदूर सकुशल रहें, इसकी प्रार्थना पूरा देश कर रहा है.

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