Vijay Factor: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 सितंबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत को उनके 75वें जन्मदिन पर बधाई दी. इस अवसर पर उन्होंने देश भर के प्रमुख अखबारों में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने भागवत और आरएसएस की जमकर तारीफ की. इस लेख में पीएम मोदी ने मोहन भागवत के व्यक्तित्व, उनके योगदान और उनके पिता के साथ संबंधों का उल्लेख किया. उन्होंने भागवत को "परम पूज्य सरसंघचालक जी" कहकर संबोधित किया, जो संघ के भीतर सम्मान का सबसे बड़ा सूचक है.
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क्या है मोदी की तारीफ के मायने?
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लेख में कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं, जो उनके और संघ के बीच के समीकरणों को दर्शाती हैं,
मोदी ने मोहन भागवत और उनके पिता दोनों को "पारस मणि" बताया. इस उपमा से वे यह संदेश देना चाहते थे कि उनका राजनीतिक सफर संघ के सहयोग से ही निखरा है.
मोदी ने दावा किया कि उनकी सरकार की कई प्रमुख योजनाओं, जैसे स्वच्छ भारत अभियान और बेटी बचाओ अभियान में आरएसएस ने सक्रिय रूप से भाग लिया है.
उन्होंने भागवत के कार्यकाल में आरएसएस में हुए बदलावों, जैसे गणवेश में बदलाव का भी जिक्र किया. पीएम मोदी ने भागवत को एक ऐसा व्यक्ति बताया जो अपने सिद्धांतों और राष्ट्र के प्रति पूरी तरह से समर्पित है.
बदले में क्या चाहते हैं मोदी?
प्रधानमंत्री मोदी की इस प्रशंसा को केवल एक जन्मदिन की बधाई के रूप में नहीं देखा जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे कई रणनीतिक कारण हो सकते हैं. हाल ही में मोहन भागवत ने एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने बीजेपी के संगठनात्मक मामलों में अपनी राय देने का संकेत दिया था. मोदी की इस कोशिश को इसी बयान के जवाब के रूप में देखा जा रहा है.
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मोहन भागवत, मोदी को बीजेपी का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की पूरी छूट देंगे? कुछ समय पहले तक, संघ के भीतर से ही ऐसी आवाजें आ रही थीं कि बीजेपी के नए अध्यक्ष के चुनाव में संघ की राय अहम होगी.
संघ का रुख और राजनीतिक समीकरण
आरएसएस और बीजेपी के बीच के संबंधों में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं. कुछ घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि संघ प्रमुख अपने बयानों के जरिए बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश करते रहे हैं. चाहे इनमें जाति जनगणना का मुद्दा हो या आरक्षण का.
- जाति जनगणना: जब बिहार में जाति जनगणना का मुद्दा उठा तो संघ प्रमुख की मोदी से मुलाकात के बाद मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर नरम रुख अपनाया.
- आरक्षण पर बयान: मोहन भागवत ने यह भी कहा था कि आरक्षण को 200 साल तक भी जारी रखा जा सकता है, जिससे मोदी सरकार को इस मुद्दे पर राहत मिली.
- काशी-मथुरा का मुद्दा: भागवत ने स्पष्ट किया था कि संघ काशी और मथुरा के आंदोलनों से दूर रहेगा, हालांकि उनके कार्यकर्ता व्यक्तिगत रूप से इनमें भाग ले सकते हैं.
इससे नजर आता है कि आरएसएस अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की नीतियों और फैसलों को प्रभावित करता रहा है.
जयराम रमेश का तंज!
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मोदी के इस लेख पर तंज कसते हुए इसे "अतिशयोक्तिपूर्ण" बताया. उन्होंने मोदी पर मोहन भागवत को खुश करने के लिए "बेताब" होने का आरोप लगाया. रमेश ने यह भी सवाल उठाया कि क्या मोदी की यह बेताबी उस चीज को पाने के लिए है, जो उन्हें अब तक नहीं मिली है. उन्होंने यह भी कहा कि मोदी के लेख में 11 सितंबर 1906 को गांधी के सत्याग्रह की शुरुआत का जिक्र नहीं किया गया, जो कि एक जानबूझकर किया गया फैसला लगता है.
मोहन भागवत से मोदी को क्या मिलेगा?
मोदी ने मोहन भागवत को जन्मदिन का "गिफ्ट" दे दिया है. अब देखना यह होगा कि 17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर मोहन भागवत उन्हें क्या "रिटर्न गिफ्ट" देते हैं. क्या भागवत भी उतनी ही गर्मजोशी से मोदी की तारीफ करेंगे? यह सवाल फिलहाल बना हुआ है.
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि संघ प्रमुख के कुछ बयान विरोधाभासी भी रहे हैं, जैसे एक तरफ सबको अपनी पसंद का खाना और भाषा चुनने की स्वतंत्रता की बात करना और दूसरी तरफ महिलाओं को तीन बच्चे पैदा करने की सलाह देना.
कुल मिलाकर, पीएम मोदी का यह लेख सिर्फ एक बधाई संदेश नहीं, बल्कि संघ के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने और भविष्य की रणनीतियों को साधने का एक प्रयास माना जा रहा है.
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