Supreme Court on SC/ST Reservation: सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को एक अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने कोटा के अंदर कोटा पर एक बड़ा फैसला दिया. कोर्ट की संवैधानिक पीठ के छह जजों ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में सब-कैटेगरी बना सकती है. सिर्फ जस्टिस बेला त्रिवेदी इस फैसले से असहमत थीं. कोर्ट के इस फैसले के बाद केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण में क्रीमी लेयर मानदंड लागू करने के फैसले का कड़ा विरोध किया है.
ADVERTISEMENT
इनके अलावा मोदी सरकार के एक और मंत्री चिराग पासवान ने भी क्रीमी लेयर ने भी आपत्ति जताई है. चिराग पासवान की पार्टी राम जनलोकशक्ति पार्टी ने फैसला किया है कि वे सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दर्ज करेंगे. कोर्ट के फैसले पर दलित समुदाय के कुछ लोग भी विरोध कर रहे हैं. तो आइए समझते हैं कोर्ट ने क्या फैसला दिया है जिसका विरोध एससी-एसटी समाज द्वारा किया जा रहा है.
क्या है सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मायने?
सुप्रीम कोर्ट के कोटा में कोटा का रास्ता साफ साफ करने के बाद अब राज्य सरकार इसके लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हो गई है. इस फैसले के तहत अब सरकारे जरूरत के हिसाब से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटेगरी बना सकती है. SC ने यह फैसला जरूरतमंद को अधिकतम लाभ पहुंचाने के लिए दिया है. इसके बाद अब ये होगा कि, मान लीजिए की SC कैटेगरी को 15 फीसदी का आरक्षण मिला हुआ है. अब उस कैटेगरी में आने वाली तमाम जातियों में ये देखा जाएगा कि, क्या उनमें भी कोई अति पिछड़ा है? अगर है तो उन जातियों को मिलाकर या सिर्फ एक ही जाति को 10 फीसदी की कैटेगरी के भीतर सब कैटेगरी बनाकर उन्हें विशेष लाभ सुनिश्चित किया जाएगा.
ऐसा माना जाता है, SC और ST कैटेगरी में कई ऐसी जातियां है जिनकी पहले तो स्थिति खराब थी पर आरक्षण का फायदा लेकर अब उनकी स्थिति ठीक हो गई है. हालांकि उसके बाद भी वो आरक्षण का उतना ही लाभ ले रहे है जितना की उस कैटेगरी के अति पिछड़े. इससे अति पिछड़े उनसे कंपटीशन नहीं कर पा रहे. सुप्रीम कोर्ट ने इसी को सुनिश्चित करने के लिए ये फैसला दिया है जिससे राज्य सरकारे उनकी स्थिति के आधार पर उन्हें सब कैटेगरी में बांटकर सबको समान अवसर उपलब्ध कर सकें.
क्यों हो रहा विरोध?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर मिली जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. कोर्ट के इस फैसले को कुछ बुद्धीजिवी लोग समुदाय को विभाजित करने वाला बता रहे हैं तो कुछ इसे लाभ के तौर पर देख रहे हैं कि इसे निचले तबके तक इसका लाभ पहुंचाने में आसानी होगी.देखा जाए तो इस फैसले से देश की राजनीति पर बड़ा असर देखने को मिल सकता है.
एससी-एसटी संगठनों का मानना है कि यह फैसला संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. क्योंकि आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं समाजिक है. एससी-एसटी समाज के लोग बड़ी नौकरियों पर जाकर भी भेदभाव का शिकार होते हैं. ऐसे में यह तय नहीं किया जा सकता कि किसी को सरकारी नौकरी मिलने से उसके साथ भेदभाव खत्म हो जाएगा.
मोदी सरकार में मंत्री भी कर रहे इसका विरोध
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले की प्रतिक्रिया भी सामने आई है. रामदास अठावले ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, 'रिपब्लिकन पार्टी अनुसूचित जाति जनजातियों के आरक्षण के लिए क्रिमिलियर आर्थिक मानदंडों का कड़ा विरोध करती है. ओबीसी और ओपन वर्ग में उपवर्गीकरण के साथ ही अनुसूचित जाति में उपवर्गीकरण किया जाए. उप-वर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सभी अनुसूचित जातियों को न्याय मिलेगा.'
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी LJPR ने कोर्ट के फैसले को लेकर तय किया है कि वे सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे. बता दें कि लोजपा ने एससी एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर लाने का विरोध किया था. चिराग पासवान ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा था कि एससी में ऐसी जातियां है, जिसका आधार छूआछूत है. इसलिए इसके अंदर आरक्षण का कोटा लाने का प्रावधान नहीं आ सकता और साथ ही साथ क्रीमी लेयर का प्रावधान नहीं हो सकता. चिराग ने कहा कि आज भी दलित समाज के लोग आज भी छूआछूत जैसा भेदभाव आज भी झेल रहे हैं.
ADVERTISEMENT