द केरल स्टोरी के बाद अजमेर-92 फाइल्स रिलीज करने की तैयारी, ब्लैकमेलिंग कांड से जुड़ी फिल्म पर बवाल!

Ajmer-92 Files: फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर खूब विवाद हुआ. रिलीज होने के कई दिनों बाद तक इसके खिलाफ आवाज उठती रही. वजह थी इस फिल्म की पटकथा. अब एक ऐसी ही फिल्म ‘अजमेर 92’ रिलीज की तैयारी में है. इससे पहले ही फिल्म को लेकर चारों तरफ बवाल मचता दिख रहा है. फिल्म […]

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चंद्रशेखर शर्मा

• 06:01 AM • 09 Jun 2023

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Ajmer-92 Files: फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर खूब विवाद हुआ. रिलीज होने के कई दिनों बाद तक इसके खिलाफ आवाज उठती रही. वजह थी इस फिल्म की पटकथा. अब एक ऐसी ही फिल्म ‘अजमेर 92’ रिलीज की तैयारी में है. इससे पहले ही फिल्म को लेकर चारों तरफ बवाल मचता दिख रहा है. फिल्म के खिलाफ ‘द केरल स्टोरी’ की तरह ही अभी से विरोध की आवाजें उठने लगी हैं. इस फिल्म में अजमेर में सालों पहले 100 से ज्यादा युवा लड़कियों के साथ गैंगरेप और उन्हें ब्लैकमेल करने की कहानी बताई जा रही है.

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कहा जा रहा है कि ये फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है, जिसमें स्कूल और कॉलेज की सैकड़ों लड़कियों की जिंदगी खराब कर दी गई थी. मामला 1990 से 1992 तक था, जब इस क्षेत्र पर एक बदनुमा लग गया. पुलिस ने छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले एक गिरोह को पकड़ा. 

यह पूरा मामला अजमेर के विभिन्न स्कूलों में पढ़ने वाली 17 से 20 साल की लड़कियों से जुड़ा था. जब 100 से भी ज्यादा लड़कियों को जाल में फंसा कर उनकी न्यूड अश्लील फोटो खींचकर और ब्लैकमेल कर उनका यौन शोषण करने वाले गिरोह का भांडाफोड़ होने के बाद सामने आया. पीड़िताओं के परिवारजन अपनी इज्जत के खातिर शहर से दूर जाने की जुगाड़ में रहे.

शेखावत ने पुलिस को एक्शन लेने के दिए थे निर्देश
जब पुलिस की जांच हुई तो सामने आया कि गिरोह में राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली होने के चलते पुलिस पर भी काफी दबाब था. कहा जाता है कि जिला पुलिस प्रशासन को आशंकी थी कि पीड़िताओं के सामने आए बिना यदि किसी पर भी हाथ डाला जाएगा तो शहर की शांति और कानून व्यवस्था को सामान्य बनाए रखने का बड़ा जोखिम होगा. तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने शांति और कानून व्यवस्था बिगड़ने नहीं देने और अपराधियों को नहीं छोड़ने के स्पष्ट संकेत देते हुए इस मामले में एक्शन लेने को कहा.

तभी तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ओमेन्द्र भारद्वाज ने वाकायदा प्रेस कॉफ्रेस कर खुलासा किया कि मामला वैसा नहीं है जैसा प्रचारित किया जा रहा है. अजमेर की स्कूली छात्राओं के साथ किसी तरह का षडयंत्रपूर्वक ब्लैकमेल कर यौन शोषण नहीं किया गया है. मामले में जिन चार लड़कियों के साथ यौन शोषण होने के फोटो मिले हैं, पुलिस ने उनकी तहकीकात में पाया कि उनका चरित्र ही संदिग्ध है.

पुलिस अधिकारी के बयान के बाद शुरू हुए आंदोलन
पुलिस महानिरीक्षक के बयान अखबारों में सुर्खियां बनने के बाद अजमेर ही नहीं राजस्थान भर में आन्दोलन शुरू हो गए. जगह-जगह मुलजिमों को गिरफ्तार किए जाने की मांग उठने लगी और पीड़िताओं को न्याय देने की आवाज बुलंद होने लगी. राजस्थान की बीजेपी सरकार पर प्रकरण को लेकर भारी दवाब बना. तत्कालीन कांग्रेस नेताओं ने इस घटना की काफी निंदा की. कांग्रेस नेताओं ने प्रकरण की जांच सीआईडी से कराए जाने का भी भाजपा सरकार पर दवाब बनाया.

आखिर 30 मई 1992 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने मामला सीआईडी सीबी के हाथों में सौंप कर जांच कराए जाने का ऐलान कर दिया. इसकी सूचना पुलिस प्रशासन को मिली तो  सीआईडी सीबी के हाथों जांच शुरू होने से पहले तत्कालीन उपअधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा ने प्राथमिकी दर्ज कर ली. जिसके बाद पुलिस ने रिपोर्ट दी कि स्कूली छात्राओं को फंसाने वाले गिरोह के सक्रिय होने की जानकारी मिली है. अगले ही दिन 31 मई 1992 से जांच शुरु कर दी गई. जिसमें युवा कांग्रेस के तत्कालीन शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के नजदीकी रिश्तेदार अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, परवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी , महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना एवं हरीश तोलानी नामक अपराधियों के नाम सामने आए.

जहां से निकलती थी तस्वीरों की प्रिंट, उसी लैब से खुला राज .
जानकारी के अनुसार पुरुषोत्तम उर्फ बबना इस वीडियो से प्रिंट बनाया करता था. यही वो व्यक्ति है जिसके जरिए सबसे पहले इस मामले का खुलासा हुआ. क्योंकि वह चाहता था कि छात्राओं का यौन शौषण बंद हो. जहां से वकील के माध्यम से भाजपा नेता वीर कुमार के पास पहुंचे. इससे अपराधी सजग हो गए और उन्होंने साक्ष्य लीक करने वाली कलर लैब के मालिक धनश्याम भूरानी का गला पकड़ लिया.

जिस फोटो लैब के मालिक, टेक्निशियन और मैनेजर को सरकारी गवाह बनाया जा सकता था, उनमें से मालिक को तो छोड़ ही दिया. जबकि मैनेजर और टेक्निशियन को अपराधी बना दिया. इस स्कैंडल में पीड़ित लड़कियों ने आत्महत्या कर ली. 20 साल से ज्यादा का समय बीत जाने के बावजूद भी उन्हें इंसाफ नहीं मिला. कोर्ट में आज भी मामला दर्ज है.

फिल्म रिलीज के पीछे चुनाव वाला एंगल
ब्लैकमेल काण्ड के 3 दशक पूरे होने के बाद एक बार फिर मामला सुर्खियों में आ गया है. जुलाई में एक फिल्म रिलीज होने जा रही है. फिल्म को लेकर दावा किया जा रहा है यह 1992 में अजमेर में हुए इसी ब्लैकमेल काण्ड की सच्ची घटनाओं पर आधारित है. इसे लेकर अब खादिम समुदाय के साथ मुस्लिम समाज की अन्य संस्थाओं ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है. अजमेर दरगाह अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने मीडिया से बातचीत में कहा कि पहले कश्मीर फाइल्स, उसके बाद द केरला स्टोरी और अब अजमेर फाइल्स 92 बनाई जा रही है. जहां भी चुनाव होते हैं उससे पहले इस तरह की मूवी तैयार की जाती है. लेकिन कर्नाटक चुनाव में पब्लिक ने इसको रिजेक्ट कर दिया. इसी तरह अजमेर 92 मूवी में ढाई सौ लड़कियों को रेप और ब्लैकमेल का शिकार बताया जा रहा है. जबकि उस समय मात्र 12 लड़कियों ने शिकायत दी थी. साथ ही इस फिल्म में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह और एक शिक्षण संस्थान को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है. जबकि दरगाह में ऐसी कोई घटना घटित नहीं हुई.

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