बांसवाड़ा सीट पर कांग्रेस के बागी महेंद्रजीत मालवीया को कैसे दी पटखनी, राजकुमार रोत ने खुद बताया सीक्रेट

Rajkumar Roat Exclusive Interview: बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित होने के बाद Rajasthan Tak ने राजकुमार रोत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि अब चुनाव जीतने के बाद अब आदिवासियों के लिए एक अलग "भील प्रदेश" की मांग को सदन में उठाएंगे. 

NewsTak

गौरव द्विवेदी

06 Jun 2024 (अपडेटेड: 07 Jun 2024, 03:14 PM)

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Rajkumar Roat Exclusive Interview: राजस्थान में लोकसभा सीटों के परिणाम चौंकाने वाले रहे. 6 महीने पहले सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की. ऐसा ही झटका बीजेपी को वागड़ में लगा. जहां बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर कांग्रेस के बागी नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीया को बीजेपी ने मैदान में उतारा, लेकिन बावजूद इसके सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकी. भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के प्रत्याशी राजकुमार रोत (Rajkumar Roat) ने ना सिर्फ इस चुनाव को जीता, बल्कि 2 लाख 47 हजार 54 वोटों के अंतर से बीजेपी प्रत्याशी को बुरी तरह हराया.

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जहां रोत को 8 लाख से ज्यादा वोट मिले, वहीं मालवीया को 5 लाख 73 हजार 777 को वोट मिले. जिसके बाद से ही इस 31 वर्षीय युवा नेता की देशभर में चर्चा हो रही है. उनकी चर्चा एक और वजह से है, जिसे लेकर संसदीय क्षेत्र से लेकर सोशल मीडिया पर भी हलचल तेज है. वह वजह है राजकुमार रोत और उनकी पार्टी की भील प्रदेश की मांग.

सांसद निर्वाचित होने के बाद Rajasthan Tak ने राजकुमार रोत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि अब चुनाव जीतने के बाद अब आदिवासियों के लिए एक अलग "भील प्रदेश" की मांग को सदन में उठाएंगे. 

सवालः आप कांग्रेस और बीजेपी दोनों को कोसते थे, लेकिन अब कांग्रेस का साथ पाकर संसद पहुंच रहे हैं?

जवाब: देश के भीतर जो मोदीजी की तानाशाही बढ़ चुकी थी. उसके चलते बीजेपी के खिलाफ देशभर में कांग्रेस समेत कई दल एकजुट हुए हैं. उसी का उदाहरण बांसवाड़ा में भी देखने को मिला. दूसरी ओर, ईडी के डर से कांग्रेस नेता मालवीया बीजेपी में चले गए. कांग्रेस आलाकमान को तभी अहसास हो गया था कि हम टक्कर नहीं दे पाएंगे, इसलिए कांग्रेस ने हमें समर्थन दिया. 

सवालः महज 31 साल की उम्र में 4 दशक से सक्रिय मालवीया जैसे दिग्गज को शिकस्त देने पर क्या सोचते हैं? 

जवाबः मैं बहुत कम उम्र में 2 बार विधायक चुना गया, अब सांसद बनने का मौका भी मिला. मेरा जीवन संघर्ष से भरपूर रहा. इसलिए मैं संघर्ष को समझता हूं, मैंने दिल से लोगों के लिए मेहनत की और काम किया. उसी का परिणाम रहा कि जनता ने मुझे जिताया. सवाल 4 दशक के करियर वाले प्रतिद्वंदी और मेरी कम उम्र का नहीं है. ना ही मैं इतना ताकतवर हूं. इस लोकतंत्र में व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं है, ताकत तो जनता से मिलती है और लोगों की भावना महत्वपूर्ण होती है.

सवालः अब चुनाव जीतने के बाद आपका एजेंडा या मुख्य मांग क्या है?

जवाबः किसी भी क्षेत्र के विकास की पहली कड़ी होती है शिक्षा. यहां ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति कमजोर है, उसमें क्रांति लानी है. साथ ही यहां रोजगार के अवसर पैदा करके पलायन को रोकना है. इसके अलावा हमारी तीसरी मांग है कि भील प्रदेश. यह मांग वर्षों से उठाई जा रही है. गोविंद गुरू के नेतृत्व में जो आंदोलन हुआ था, जिसमें 1500 आदिवासी शहीद हो गए थे. इस मांग का आधार वहीं आंदोलन है और हम इस मांग को आगे बढ़ाएंगे. 

सवालः भील प्रदेश की इस मांग से क्षेत्र के सवर्ण या अन्य वर्ग इसे लेकर आशंकित है, उनके लिए आपका क्या संदेश है?

जवाबः वो (सवर्ण) भी हमारे भाई हैं. हम कभी भी धर्म या जाति की बात नहीं करते हैं, हम धर्मनिरपेक्ष राजनीति कर रहे हैं. क्योंकि मैं आदिवासी समाज से आता हूं तो मेरी जिम्मेदारी बनती है कि उनकी बात करूं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि किसी का वर्ग का अहित किया जाए. हम इस मांग में पूरे क्षेत्र को साथ लेंगे और आदिवासी समाज के अलावा अन्य वर्ग का भी साथ लेंगे. आने वाले साल 2 साल में इस क्षेत्र का हर आमजन मेरे साथ आएगा. 

सवालः आपकी पार्टी के गठन में कांतिलाल रोत समेत कई संस्थापक सदस्यों का योगदान रहा. लेकिन आप लोगों को नक्सली कहा जाता है?  

जवाबः यह एक पॉलिटिकल एजेंडा था. बीजेपी की बदनाम करने की नीति है कि जो आदिवासियों के लिए काम करेंगे, उन्हें नक्सली कहा जाएगा. इस नीति में बीजेपी फेल हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अरबन नक्सली जैसी गतिविधियों से हमें जोड़ा. लेकिन इस क्षेत्र की जनता समझ चुकी है कि यह बेबुनियाद आरोप है और लोगों ने हमें जनमत दिया.  

सवालः इस क्षेत्र में आज भी रेल कनेक्टिविटी नहीं है, गोल्ड माइंस की नीलामी पर भी काम हो रहा है. इस पर आपका क्या विचार है?

जवाबः रेल कनेक्टिविटी को लेकर इस क्षेत्र में मेरी प्राथिकता रहेगी. गोल्ड माइंस को लेकर हम सुनिश्चित करेंगे कि जिस तरह से पट्टे आवंटन किए जा रहे हैं, उसमें स्थानीय लोगों को मुआवजा देने के साथ प्राथमिकता दी जाए. इसे लेकर हम आंदोलन भी करेंगे. 

आखिर क्या है भील प्रदेश की मांग?

दरअसल, भील प्रदेश की मांग इस क्षेत्र में वर्षों से उठाई जा रही है. यहां भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा, भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) सहित कई सामाजिक-राजनीतिक संगठन मजबूत हुए हैं. अब बीटीपी से टूटकर भारत आदिवासी पार्टी यानी BAP का गठन होने के बाद पार्टी इसे राजनैतिक स्तर पर उठा रही है. उनकी इस मांग में राजस्थान के 28 लाख, गुजरात के 34 लाख, महाराष्ट्र के 18 लाख और मध्यप्रदेश के करीब 46 लाख आदिवासियों को शामिल करने की मांग की जाती है. बाप पार्टी की मांग है कि चारों प्रदेशों के 42 जिलों के अनुसूचित क्षेत्रों को मिलाकर अलग भील प्रदेश का गठन किया जाए.  इसके लिए बाकायदा संविधान के अनुच्छेद 244 और सन् 1913 के मानगढ़ में गुरु गोविंद गिरी के आंदोलन का हवाला दिया जाता है. 

 

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