SC ST Reservation Quota Update: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के आरक्षण में कोटे के अंदर कोटा को मंजूरी दे दी है. अब राज्य सरकारें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के अंदर अलग-अलग समूहों को आरक्षण दे सकेगी. इसके जरिए एससी-एसटी की उन जातियों को फायदा मिलेगा जो पीछे रह गई है और सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर है.
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सुप्रीम कोर्ट ने कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी ( judgment on Scheduled Castes sub-classification) देकर 20 साल पुराने अपने ही फैसले को पलट डाला है. 2004 में ईवी चिन्नैया मामले (ev chinnaiah judgement) में कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जातियां खुद में एक समूह है और कोई भी राज्य आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों को उप-वर्गीकृत नहीं कर सकता.
फैसले पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुसूचित जातियां एक एकीकृत समूह नहीं हैं. राज्य भेदभाव या पिछड़ेपन के आधार पर अनुसूचित जातियों के उप-वर्गों को अधिक लाभ पहुंचाने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. इससे राष्ट्रपति को अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों की पहचान करने के विशेष अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा. राज्यों की उप-वर्गीकरण करने की शक्ति न्यायिक समीक्षा के अधीन है.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को दी ये हिदायत
सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि अनुसूचित जाति को उसमें शामिल जातियों के आधार पर बांटना संविधान के अनुच्छेद-341 के खिलाफ नहीं है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों सरकारों को मनमर्जी चलाने से रोकने के लिए अपने नए फैसले में कुछ हिदायत भी दी है. कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति के भीतर किसी एक जाति को 100% कोटा नहीं दिया जा सकता. इसके साथ ही अनुसूचित जाति में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए.
फैसला देने वाली 7 जजों की बेंच में शामिल जस्टिस बीआर गंवई ने कहा कि पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य है. एससी-एसटी कैटेगरी में केवल कुछ लोग ही आरक्षण का आनंद ले रहे हैं.
राजस्थान में क्या होगा इस फैसले का असर?
राजस्थान में सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को क्रमश 16 और 12 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद प्रदेश सरकार अनुसूचित जातियों में शामिल अन्य जातियों को भी कोटे में कोटा दे सकेगी. राजस्थान के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के मुताबिक, प्रदेश में भील, डामोर, धानका, गरासिया, मीणा, नायक समेत 12 तरह की अधिसूचित अनुसूचित जनजातियां हैं. इसके साथ ही आदि धर्मी, अहेरी, बेरवा, बलाई, बावरिया, भंगी, चूड़ा, मेहतर, चमार, चांडाल, धोबी, कंजर, खटीक, कोली, सांसी जैसी 59 तरह की अधिसूचित अनुसूचित जातियां हैं. इन जातियों में जो सामाजिक और आर्थिक रूप से जो ज्यादा पीछे रह गई है उन्हें चिह्नित कर राज्य सरकार आरक्षण में कोटे के अंदर कोटा दे सकती है. इससे आरक्षण का लाभ उन्हीं लोगों को मिलने की संभावना बढ़ जाएगी जिन्हें वास्तव में इसकी सख्त जरूरत है.
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