Guru Vashishtha Ashram Mount Abu: राजस्थान के माउंटआबू को यो तो हिल स्टेशन टूरिस्ट प्लेस के रूप में पहचाना जाता है. लेकिन पौराणिक मान्यताओं में इसे तीर्थराज आबू और अर्बुदांचल के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आबूराज का अपना अलग ही महत्व है. मान्यता है कि माउंट आबू के पर्वतमालाओं में ऋषि वशिष्ठ का आश्रम हुआ करता था और इसी आश्रम में रहकर भगवान श्री राम ने अपने चारों भाइयों लक्ष्मण,भरत, शत्रुघ्न के साथ शिक्षा ग्रहण की थी. और यहीं वह स्थान हैं जहां गुरु वशिष्ठ ने अपने तप के बल से अग्नि कुंड में से क्षत्रिय वंश के चार गोत्रों की उत्पत्ति की थी.
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तो चलिए चलते हैं माउंट आबू की तलहटी में स्थित गुरु वशिष्ठ के आश्रम में….
अयोध्या नरेश दशरथ के परदादा को मिला था आशीर्वाद
घने जंगलों और ऊंची-ऊंची पहाड़ियों पर ऋषि वशिष्ठ का आश्रम बसा है. आबू पर्वत पर बने इस आश्रम के आसपास की हरियाली और शांति यहां आने वालों का मन मोह लेती है. कहते हैं यहीं वह जगह हैं, जहां अयोध्या नरेश दशरथ के परदादा राजा दिलीप को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मिला था. राजा दिलीप को जब बरसों कोई पुत्र नहीं हुआ तो वे ऋषि वशिष्ठ से पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद लेने उनके आश्रम पहुचे थे. ऋषि वशिष्ठ के कहने पर राजा दिलीप ने यहां इक्कीस दिनों तक अपनी पत्नी महारानी सुदक्षणा के साथ मिलकर ऋषि की गाय नंदिनी की सेवा की थी. और यहीं नंदिनी के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई थी.
ऋषि वशिष्ठ के आश्रम से राम, लक्ष्मण समेत चारों भाई ने ली थी शिक्षा
राजा दिलीप ने ऋषि वशिष्ठ के आश्रम से जो रिश्ता जोड़ा वो रघुकुल की कई पीढ़ियों तक चलता रहा. कहते हैं जब राजा दशरथ के सामने उनके पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की शिक्षा दीक्षा का प्रश्न उठा तो उन्होंने अपने पुत्रों को ऋषि वशिष्ठ के आश्रम भेजा. जहां राम ने अपने भाइयों संग ना केवल शास्त्रों की विधिवत पढ़ाई की, अपितु तपस्वियों जैसा कठोर जीवन भी बिताया. ऋषि वशिष्ठ और गुरू माता के सानिध्य में राम और उनके भाइयों ने जीवन का जो ककहरा पढ़ा, वो पूरी जिंदगी उनका मार्गदर्शन करता रहा.
ऋषि वशिष्ठ आश्रम में मौजूद है मूर्तियां
आश्रम में राम, लक्षमण, ऋषि वशिष्ठ एवं उनकी पत्नी अरुंधति की मूर्तियां भी स्थापित हैं. आश्रम में उस प्राचीन हवन कुंड के भी दर्शन किए जा सकते हैं, जहां ऋषि वशिष्ठ अपने शिष्यों के साथ यज्ञ किया करते थे. कहते हैं ऋषि वशिष्ठ ने आह्वान करके सूर्यवंशी क्षत्रियों की उत्पत्ति इसी हवन कुंड से की थी.
आश्रम के प्रवेश द्वार पर बहती है सरस्वती की जल धारा
आश्रम के प्रवेश द्वार पर जल धारा बहती है, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये लुप्त हो चुकी सरस्वती है, कहा जाता है कि ये जल धारा सतयुग से अनवरत बहती चली आ रही हैं. चाहे कितना भी सूखा पड़े या अकाल की स्थिति हो.
यह जलधारा अनवरत बहती रहती है. इस स्थान को गोऊ मुख के नाम से जाना जाता है. गुरु पूर्णिमा के दिन मंदिर प्रांगण में विशाल मेला लगता है, जिसमे शामिल होने के लिए देश दुनिया से लोग यहां आते हैं.
750 साल पुराना चंपा का पेड़ भी यहां मौजूद
महंत तुलसीदास,पुजारी वशिष्ठ आश्रम, माउंट आबू बताते हैं कि ‘यह गुरु वशिष्ठ का आश्रम है. चारों भाइयों राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न ने यहां शिक्षा ली थी. यहां गोऊ मुख है, जिससे सरस्वती की धारा बहती है.
सुबह 4 से 6 बजे तक उसमें से गर्म पानी आता है. यहां अग्निकुंड है, जिसमें से क्षत्रिय वंश के 4 वंशों परमार, प्रतिहार, सोलंकी और चौहान वंश की उत्पत्ति हुई है. यहां आज भी साढ़े सात सौ साल पुराना चम्पा का पेड़ है. 6 सौ साल पुराना कटहल का पेड़ लगा हुआ है.यहां का जिक्र आपको पुराणों में भी मिलेगा’.
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