Dhariwal, Joshi and Rathod are not in second list of candidates: प्रदेश में 25 सितंबर 2022 को आलाकमान के खिलाफ हुई बगावत के लंबे समय बाद इसपर एक्शन होता हुआ नजर आ रहा है. कांग्रेस पार्टी के उम्मदवारों की दूसरी सूची में गहलोत के मंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी और उनके करीबी नेता धर्मेंद्र राठौड़ को टिकट नहीं दिया गया है. चूंकि राठौड़ पुष्कर से टिकट मिलने की उम्मीद लगाए बैठे थे. देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी ने अभी कुल 76 सीटों पर ही प्रत्याशी उतारे हैं. बाकी 124 सीटों पर टिकट मिलने का मौका अभी भी है.
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हालांकि सूत्रों के मुताबिक 18 अक्टूबर को दिल्ली में सीईसी की बैठक के दौरान धारीवाल पर चर्चा हुई थी. जब मंत्री शांति धारीवाल (shanti dhariwal) का नाम उम्मीदवार के तौर पर उनके सामने आया तो उन्होंने सीएम अशोक गहलोत (ashok gehlot) से पूछ लिया- ये वही आदमी है न? इनके ऊपर तो भ्रष्टाचार के आरोप हैं न? गहलोत ने सोनिया गांधी के सवालों का जवाब देते हुए कहा- नहीं-नहीं… कोई आरोप नहीं है. साफ छवि है इनकी. तभी राहुल गांधी ने कहा- भारत जोड़ो यात्रा के दौरान इनके खिलाफ कई शिकायतें मिली थीं.
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इन्होंने कहा था न- कौन है आलाकमान?
राहुल गांधी ने 25 सितंबर की वो बात भी याद दिला दी. सूत्रों की मानें तो उन्होंने कहा- ये वही शांति धारीवाल हैं न जिन्होंने कहा था.. कौन आलाकमान? इसके बाद एक बार फिर उस मीटिंग रूम में सन्नाटा पसर गया.
इसके बाद से माना जा रहा था कि तीनों नेताओं का टिकट कट जाएगा. पहली लिस्ट में नाम नहीं होने पर दूसरी लिस्ट में उम्मीद जताई जा रही थी कि शायद इन्हें उम्मीदवार बनाया जाए. हालांकि दूसरी लिस्ट में भी नाम नहीं होने पर ये माना जा रहा है कि देर से ही सही आलाकमान ने अपनी ताकत का अहसास इन तीनों नेताओं को करा दिया है.
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आलाकमान ने पायलट की मान रख ली?
25 सितंबर की घटना के बाद सचिन पायलट लगातार मुखर थे. उनका सबसे बड़ा सवाल ये था कि मानेसर एपिसोड के बाद तुरंत कार्रवाई हो गई और उन्हें उनके पद से हाथ धोना पड़ा, जबकि उन्होंने तो आलाकमान को आंख भी नहीं दिखाई थी. इधर 25 सितंबर की घटना में गहलोत समर्थक शांति धारीवाल, महेश जोशी और राजेंद्र राठौड़ ने न केवल बगावत की पटकथा लिखी बल्कि धारीवाल ने आलाकमान को ही चुनौती दे दी. इसके बाद इन तीनों नेताओं को नोटिस दिया गया था.
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ये है पूरा मामला
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के ऐलान के बाद इस पद पर सबसे आगे गहलोत का नाम चल रहा था. बताया जा रहा था कि ये गांधी परिवार की पहली पसंद थे. इधर गहलोत का नाम अनाउंस होते ही राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चर्चाओं ने फिर जोर पकड़ लिया और पायलट को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर लोग देखने लगे. इधर गहलोत खेमे ने इसे लेकर बगावत कर दी. जिसका नतीजा ये रहा कि 25 सितंबर को बुलाई गई विधायक दल की बैठक का गहलोत गुट के विधायकों ने बहिष्कार कर दिया.
केवल बैठक का ही बहिष्कार नहीं किया बल्कि कहा गया कि कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने तक यानी 19 अक्टूबर तक ये गुट किसी भी मीटिंग में शामिल नहीं होगा. इसके साथ शर्तें भी रख दी कि सरकार बचाने वाले 102 विधायकों यानी गहलोत गुट से ही सीएम बने. दूसरी शर्त ये थी कि सीएम तब घोषित हो, जब अध्यक्ष का चुनाव हो जाए. तीसरी शर्त भी रखी कि जो भी नया मुख्यमंत्री हो, वो गहलोत की पसंद का ही होना चाहिए.
आलाकमान से बगावत कर बुलाई थी दूसरी बैठक
इस बैठक के लिए पार्टी ने राजस्थान प्रभारी अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे को जयपुर भेजा. इधर, गहलोत समर्थक विधायकों ने बगावत बुलंद कर दी और बैठक से पहले अपनी अलग मीटिंग की. मंत्री शांति धारीवाल के घर पर विधायक जुटे. इस बैठक के बाद गहलोत खेमे के विधायक विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के घर पहुंचे और करीब 80 से ज्यादा विधायकों ने पायलट के सीएम बनाए जाने के विरोध में अपना इस्तीफा सौंप दिया. जिसके बाद पार्टी की अनुशासन समिति ने गहलोत के तीनों करीबियों को कारण बताओ नोटिस भेजा.
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