किसानों की आंखों से निकल रहे आंसू, प्याज के दाम गिरने से लागत निकालना भी मुश्किल

Onion Prices Low: झालावाड जिले मे प्याज की फसल ने किसानों के आंखों मे आंसू निकल रहे हैं. नई प्याज की फसल की बम्पर आवक होने के कारण पुरानी प्याज के भाव नहीं मिल रहे हैं, इससे परेशान होकर किसान प्याज को ट्रैक्टर एवं बैलगाड़ी मे भरकर जानवरों के चराने के लिए मजबूर हो गए […]

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फिरोज खान

• 02:59 AM • 22 Dec 2022

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Onion Prices Low: झालावाड जिले मे प्याज की फसल ने किसानों के आंखों मे आंसू निकल रहे हैं. नई प्याज की फसल की बम्पर आवक होने के कारण पुरानी प्याज के भाव नहीं मिल रहे हैं, इससे परेशान होकर किसान प्याज को ट्रैक्टर एवं बैलगाड़ी मे भरकर जानवरों के चराने के लिए मजबूर हो गए हैं. पिछले साल प्याज के अधिक रहने के कारण किसानों ने प्याज की फसल की ज्यादा बुआई की, जिसकी वजह से प्याज की बम्पर फसल हुई. भाव बढ़ने की जगह लगातार कम होते जा रहे हैं. भाव बढ़ने की आस में किसानों ने भारी संख्या में प्याज को घर में रखकर स्टोक कर लिया था. पुरानी रखी हुई प्याज नई प्याज के मुकाबले कमजोर है. इस कारण इस प्याज की सही कीमत नहीं मिलने से किसान परेशान हैं. वो प्याज को जानवरों को खिलाने के लिए मजबूर हैं.

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झालावाड़ जिले के रटलाई और आसपास के कई गांवों में किसान प्याज को फेंकने को मजबूर हैं. किसानों ने प्याज और लहसुन का भंडारण कर लिया लेकिन भाव कम रहने से उनकी सालभर की मेहनत पर पानी फिर गया है और फसल की लागत भी नहीं निकल पा रही है. इस वर्ष विदेश में लहसुन व प्याज का निर्यात नहीं हुआ. इस कारण भावों में तेजी नहीं रही. लहसुन की सरकारी खरीद भी नहीं हो पाने से भी उचित दाम नहीं मिले सके.

गौरतलब है कि प्याज और लहसुन को घर में रखने के बजाए किसान औने पौने दाम में बेच रहे हैं या फिर पशुओं को डाल रहे हैं. किसानों का कहना है कि एक बीघा जमीन में प्याज की बुवाई से लेकर फसल घर तक लाने में करीब 25 हजार रुपए का खर्चा आता है, जबकि मण्डी में अभी भाव 1 से 5 रुपए किलो तक ही मिल रहा है.

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वहीं झालरापाटन तहसील के श्योपुर गांव के किसानों ने बताया कि इस साल चार माह की कड़ी मेहनत करके प्याज की फसल की बुवाई की थी और दवा एव टॉनिक भी दिया था, जिसमें करीब 30 से 35 हजार रुपए खर्च कर प्याज की बुआई की लेकिन प्याज के दाम पांच रूपए से ज्यादा नहीं है. वहीं दूसरे किसान का कहना है कि जितनी लगात प्याज बोने में लगाई है, वो निकलती हुई दिखाई नही देती है. अब किसानों के आंखों में आंसू निकलने के सिवा कोई रास्ता नहीं है.

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